Maha Shivaratri 2025: महाशिवरात्रि का पावन पर्व इस वर्ष 26 फरवरी, बुधवार को त्रिग्रही योग में मनाया जाएगा। ज्योतिषीय दृष्टि से यह अत्यंत शुभ संयोग माना जा रहा है, क्योंकि इससे पहले यह योग 60 वर्ष पूर्व बना था। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार, एक शताब्दी में केवल एक बार महाशिवरात्रि पर यह विशेष योग बनता है। धार्मिक मान्यता है कि त्रिग्रही योग में शिव उपासना करने और महाशिवरात्रि का व्रत विधि-विधान से करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर भक्त रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और रात्रि जागरण कर भगवान शिव एवं माता पार्वती की आराधना करेंगे।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार महाशिवरात्रि पर त्रिग्रही युति योग बन रहा है, जो एक अद्भुत संयोग है और इससे पहले 60 साल पहले बना था। इस दिन सूर्य, बुध और शनि की युति कुंभ राशि में होगी। खास बात यह है कि सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं, और सूर्य, शनि की राशि कुंभ में स्थित रहेंगे, जिससे यह एक विशिष्ट ज्योतिषीय संयोग बनता है।
महाशिवरात्रि 26 फरवरी, बुधवार को पड़ रही है, और इस दिन श्रवण नक्षत्र के उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र, परिघ योग, वणिज करण एवं शकुनीकरण योग बन रहे हैं। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, इस दुर्लभ संयोग में भगवान शिव की पूजा, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, और व्रत करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और विशेष शुभ फल प्राप्त होते हैं।
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी श्रद्धालु इस दिन व्रत रखता है और नियमपूर्वक शिवजी की पूजा-अर्चना करता है, उसकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
इसके अलावा, महाशिवरात्रि का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी भी प्रकार की परेशानियां नहीं आतीं। जो अविवाहित लोग सच्चे मन से शिवजी की अराधना करते हैं, उन्हें मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है। इस दिन रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र जाप, बिल्वपत्र अर्पण और रात्रि जागरण करना बेहद फलदायी माना गया है।
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 26 फरवरी को सुबह 11:08 बजे से होगा और यह 27 फरवरी को सुबह 08:54 बजे तक रहेगी। महाशिवरात्रि पर रात्रि के चार प्रहरों में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। यह चार प्रहर निम्नलिखित हैं:
1. प्रथम प्रहर – संध्या के बाद
2. द्वितीय प्रहर – रात 9 बजे से 12 बजे तक
3. तृतीय प्रहर – रात 12 बजे से 3 बजे तक
4. चतुर्थ प्रहर – रात 3 बजे से 6 बजे तक
शास्त्रों के अनुसार, रात्रि जागरण करते हुए चारों प्रहरों में शिवजी का अभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन जल, दूध, शहद, गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, भस्म आदि से भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
महाशिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान भगवान शिव की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा के चार प्रहर के समय:
1. प्रथम प्रहर – शाम 6:39 बजे से रात 9:43 बजे तक
2. द्वितीय प्रहर – रात 9:43 बजे से मध्यरात्रि 12:47 बजे तक
3. तृतीय प्रहर – मध्यरात्रि 12:47 बजे से सुबह 3:51 बजे तक
4. चतुर्थ प्रहर – सुबह 3:51 बजे से सुबह 6:55 बजे तक
पूजन विधि:
• प्रत्येक प्रहर में गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और बेलपत्र से शिवलिंग का अभिषेक करें।
• भगवान शिव को धतूरा, भस्म, भांग और रुद्राक्ष अर्पित करें।
• शिव मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ नमः शिवाय” और महामृत्युंजय मंत्र।
• रात्रि जागरण और शिव चालीसा, शिव पुराण का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।