MP Government Employee: नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है। इसके साथ ही, उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं।
नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं। हालांकि, ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण संबंधी विचाराधीन प्रकरण में पारित होने वाले अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। इसी प्रक्रिया के आधार पर अब अन्य विभागों में भी सशर्त पदोन्नति दी जा सकती है, जिसकी मांग कर्मचारी लंबे समय से कर रहे थे।
नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं। हालांकि, ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण संबंधी विचाराधीन प्रकरण में पारित होने वाले अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। मई 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों का मामला विचाराधीन है, जिसके कारण पदोन्नतियां बंद थीं। अब इसी प्रक्रिया के आधार पर अन्य विभागों में भी सशर्त पदोन्नति दी जा सकती है, जिसकी मांग कर्मचारी लंबे समय से कर रहे थे।
नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं। हालांकि, ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण संबंधी विचाराधीन प्रकरण में पारित होने वाले अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। मई 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों का मामला विचाराधीन है, जिसके कारण पदोन्नतियां बंद थीं। इस दौरान हजारों कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो गए। सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के कई प्रयास किए, लेकिन कभी एकराय नहीं बन पाई। इस बीच, विधि एवं विधायी विभाग के कर्मचारियों ने पदोन्नति न मिलने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति में केवल आरक्षण नियम निरस्त हुए हैं, न कि विभागीय भर्ती नियम। अब इसी प्रक्रिया के आधार पर अन्य विभागों में भी सशर्त पदोन्नति दी जा सकती है, जिसकी मांग कर्मचारी लंबे समय से कर रहे थे।
नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं। हालांकि, ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण संबंधी विचाराधीन प्रकरण में पारित होने वाले अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। मई 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों का मामला विचाराधीन है, जिसके कारण पदोन्नतियां बंद थीं। इस दौरान हजारों कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो गए। सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के कई प्रयास किए, लेकिन कभी एकराय नहीं बन पाई। इस बीच, विधि एवं विधायी विभाग के कर्मचारियों ने पदोन्नति न मिलने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति में केवल आरक्षण नियम निरस्त हुए हैं, न कि विभागीय भर्ती नियम। इन नियमों के तहत एक निश्चित अवधि के बाद वरिष्ठताक्रम के आधार पर उच्च पद पर पदोन्नति दी जाती है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने आर.पी. गुप्ता एवं अन्य विरुद्ध मध्य प्रदेश शासन एवं अन्य के प्रकरण में आदेश पारित किया, जिसके अनुसार समिति बनाकर भर्ती नियम 2010 के प्रावधानों के अंतर्गत नए पदों को सम्मिलित करते हुए पदोन्नति दी गई। साथ ही, विभाग के प्रमुख सचिव नरेंद्र प्रताप सिंह ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में लंबित आरक्षण संबंधी प्रकरण के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। अब इसी प्रक्रिया के आधार पर अन्य विभागों में भी सशर्त पदोन्नति दी जा सकती है, जिसकी मांग कर्मचारी लंबे समय से कर रहे थे।
नौ वर्षों से मध्य प्रदेश में रुकी हुई पदोन्नतियों का मार्ग विधि एवं विधायी विभाग ने खोल दिया है। विभाग ने विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार, वरिष्ठता क्रम में एक जनवरी 2024 से सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को पदोन्नति प्रदान की है, साथ ही उन्हें आर्थिक लाभ भी दिया गया है। इस प्रक्रिया में महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं। हालांकि, ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण संबंधी विचाराधीन प्रकरण में पारित होने वाले अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। मई 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों का मामला विचाराधीन है, जिसके कारण पदोन्नतियां बंद थीं। इस दौरान हजारों कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो गए। सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के कई प्रयास किए, लेकिन कभी एकराय नहीं बन पाई। इस बीच, विधि एवं विधायी विभाग के कर्मचारियों ने पदोन्नति न मिलने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति में केवल आरक्षण नियम निरस्त हुए हैं, न कि विभागीय भर्ती नियम। इन नियमों के तहत एक निश्चित अवधि के बाद वरिष्ठताक्रम के आधार पर उच्च पद पर पदोन्नति दी जाती है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने आर.पी. गुप्ता एवं अन्य विरुद्ध मध्य प्रदेश शासन एवं अन्य के प्रकरण में आदेश पारित किया, जिसके अनुसार समिति बनाकर भर्ती नियम 2010 के प्रावधानों के अंतर्गत नए पदों को सम्मिलित करते हुए पदोन्नति दी गई। साथ ही, विभाग के प्रमुख सचिव नरेंद्र प्रताप सिंह ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि ये पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में लंबित आरक्षण संबंधी प्रकरण के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी।
उधर, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार पदोन्नति का रास्ता निकालने को लेकर गंभीर है और काफी समय से प्रयास कर रही है। इसके लिए मंत्री समिति बनाई गई, विधिक परामर्श लिया गया और कर्मचारी संगठनों से चर्चा की गई, लेकिन एक राय नहीं बन पाई। अब सभी परिस्थितियों को देखते हुए आगामी कदम उठाए जाएंगे। वहीं, मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि पदोन्नति का सबसे बेहतर विकल्प समयमान वेतनमान देकर पदनाम देना हो सकता है, जिससे समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। इससे कर्मचारियों को बढ़ा हुआ वेतन भी मिलेगा और उनका पदनाम भी बदल जाएगा।