Lathmar Holi Kab Hai 2025: वृंदावन, बरसाना, नंदगांव और मथुरा सहित पूरे ब्रज क्षेत्र में हर साल 40 दिनों तक होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे ‘ब्रज की होली’ के नाम से जाना जाता है। देश और दुनिया से हजारों-लाखों लोग इस रंगोत्सव में शामिल होने के लिए यहां आते हैं। अगर आप भी लंबे समय से ब्रज की होली को करीब से देखने और इसमें भाग लेने की योजना बना रहे हैं, तो यहां कुछ जरूरी जानकारी आपके लिए है। दरअसल, ब्रज में होली कई अलग-अलग तरीकों से खेली जाती है, और इसके लिए विशेष दिन निर्धारित किए गए हैं। इन दिनों पूरे क्षेत्र में एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है, जहां पारंपरिक रंगों, फूलों और गुलाल के बीच भक्तिरस से सराबोर होली का आनंद लिया जा सकता है।
ब्रज की होली कई प्रकार से खेली जाती है, जिसमें पारंपरिक रीति-रिवाजों का विशेष महत्व होता है। यहां की लठमार होली सबसे प्रसिद्ध है, जहां महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं, और यह अनोखी परंपरा देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। रासलीला भी होली का एक खास हिस्सा है, जिसमें नृत्य और संगीत के माध्यम से राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम को दर्शाया जाता है। इसके अलावा, फूलों वाली होली भी बेहद लोकप्रिय है, जिसमें रंगों की जगह सुगंधित फूलों की वर्षा की जाती है, और हर कोई इसमें शामिल होने की इच्छा रखता है। इन विविध परंपराओं के कारण ब्रज की होली दुनियाभर में मशहूर है और भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक और आनंदमय अनुभव लेकर आती है।
ब्रज में होली रंगोत्सव की शुरुआत बसंत पंचमी (फरवरी) के दिन वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में विशेष श्रृंगार आरती के साथ हो गई थी, जहां सबसे पहले ठाकुर जी को गुलाल अर्पित किया गया। इसी के साथ, 3 फरवरी को बरसाना के लाडली जी मंदिर में ध्वजारोहण किया गया था, जिससे पूरे ब्रज क्षेत्र में होली के शुभारंभ का संकेत मिल गया। इसके बाद, दिन-ब-दिन यहां होली के रंग और उल्लास बढ़ते गए, और भक्त राधा-कृष्ण की इस अद्भुत होली का आनंद लेने के लिए बड़ी संख्या में उमड़ने लगे।
ब्रज की होली रंगोत्सव में कई अनोखी परंपराएं शामिल होती हैं, जिनमें लठमार होली, फूलों की होली, लड्डू होली और हुरंगा प्रमुख हैं। इस साल इन होली उत्सवों की तारीखें इस प्रकार हैं:
• 8 मार्च – बरसाना में लठमार होली
• 9 मार्च – नंदगांव में होली
• 10 मार्च – वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली
• 13 मार्च – होलिका दहन
• 14 मार्च – रंगों वाली होली (धुलेंडी)
• 15 से 22 मार्च – बलदेव के दाऊजी मंदिर और अन्य स्थानों पर हुरंगा समारोह
दाऊजी का हुरंगा, मथुरा के बलदेव गांव में होली के बाद खेला जाता है, जिसका नाम भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव (दाऊ) के नाम पर रखा गया है। मान्यता है कि यह परंपरा भाभियों और देवरों के बीच खेली जाती है। हुरंगा समारोह की तारीखें और आयोजन स्थल इस प्रकार हैं:
• 15 मार्च – हुरंगा, बलदेव का दाऊजी मंदिर
• 16 मार्च – हुरंगा, नंदगांव
• 17 मार्च – पारंपरिक हुरंगा, जाओ गांव
• 18 मार्च – चरकुला नृत्य, मुखराई
• 19 मार्च – हुरंगा, बताइन
• 20 मार्च – हुरंगा, गिदोह
• 21 मार्च – रंग पंचमी, हुरंगा खैरा
• 22 मार्च – होली उत्सव, रंगनाथ जी मंदिर, वृंदावन
ब्रज की होली की इन अलग-अलग परंपराओं का अनुभव करना भक्तों और पर्यटकों के लिए एक अनोखी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा होती है, जहां हर दिन उल्लास और भक्ति के रंगों से सराबोर रहता है।
ब्रज की होली अपनी अनोखी परंपराओं और रंग-बिरंगे उत्सवों के लिए मशहूर है, जहां विभिन्न प्रकार की होलियां खेली जाती हैं।
• लट्ठमार होली: यह परंपरा राधा-कृष्ण की चंचल लीलाओं को दर्शाती है, जिसमें महिलाएं लाठियों से पुरुषों का पीछा करती हैं और उन पर रंग डालती हैं, जबकि पुरुष ढाल लेकर अपना बचाव करते हुए नजर आते हैं। यह उत्सव बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से मनाया जाता है।
• फूलों की होली: वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में खेली जाने वाली यह होली रंगों की बजाय फूलों की पंखुड़ियों से खेली जाती है। जैसे ही श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं, चारों ओर बिखरे फूलों का नजारा मन को मंत्रमुग्ध कर देता है, और भक्त आनंद से सराबोर हो जाते हैं।
• हुरंगा: बलदेव के दाऊजी मंदिर में होली के बाद हुरंगा समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें संगीत और नृत्य के साथ उत्सव मनाया जाता है। यह उन लोगों के लिए खास अवसर होता है जो किसी कारणवश मुख्य होली उत्सव में शामिल नहीं हो पाते। यहां भाभियां और देवर एक-दूसरे पर रंग उड़ाते हैं और होली की खुशियों में डूब जाते हैं।
ब्रज की होली अपने अनोखे रंग और परंपराओं के कारण हर साल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है, जो इसे एक अविस्मरणीय अनुभव बनाता है।