Papmochani Ekadashi : कब है पापमोचनी एकादशी? जाने कैसे मिलेगा अंजाने में हुए पापों से छुटकारा, ज़रूर करें ये व्रत और पढ़ें व्रत कथा

Papmochani Ekadashi : हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिससे जाने-अनजाने में पाप न हुआ हो। पाप एक प्रकार की गलती है, जिसके लिए दंड भोगना पड़ता है। लेकिन ईश्वरीय विधान के अनुसार, पाप के दंड से बचा जा सकता है यदि पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाए। यह एकादशी भगवान श्री विष्णु को समर्पित होती है और इसका अर्थ होता है– समस्त पापों का नाश करने वाली एकादशी। यह व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन विष्णु पुराण का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना गया है।

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह 5 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर 26 मार्च को सुबह 3 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि (सूर्योदय के समय की तिथि) को मान्यता दी जाती है, इसलिए पापमोचिनी एकादशी का व्रत 25 मार्च 2025 को रखा जाएगा। इस दिन भक्तजन भगवान श्री विष्णु की पूजा-अर्चना कर व्रत रखते हैं और विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु पुराण का पाठ कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

पापमोचनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और जीवन के सभी पापों से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ साधन माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से साधक को सहस्त्र गोदान (हज़ार गायों का दान) के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इसके प्रभाव से न केवल पूर्व जन्मों के पाप नष्ट होते हैं, बल्कि वर्तमान जीवन के कष्ट, संकट और दुःख भी दूर हो जाते हैं। इस दिन उपवास, भगवन्नाम-स्मरण, व्रत-कथा श्रवण और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से विशेष फल मिलता है।

पापमोचनी एकादशी व्रत के धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं। इसके प्रमुख लाभों को इस प्रकार एक पैराग्राफ़ में संक्षेपित किया जा सकता है:

पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और यह मोक्ष की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। इस व्रत के प्रभाव से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट और दुःख समाप्त होते हैं तथा साधक को सहस्त्र गोदान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। मानसिक शांति, आरोग्य लाभ, संतान प्राप्ति की संभावनाएं और भगवान विष्णु की कृपा इस व्रत के विशेष फल माने जाते हैं। इस एकादशी को श्रद्धापूर्वक व्रत, उपवास और पूजन करने से साधक को आध्यात्मिक उन्नति और परम शांति प्राप्त होती है।

पापमोचनी एकादशी व्रत की महिमा से जुड़ी कथा में वर्णित है कि एक बार राजा मान्धाता के प्रश्न के उत्तर में लोमश ऋषि ने बताया कि च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। चैत्ररथ वन में भ्रमण करती हुई मंजुघोषा नामक अप्सरा उन पर मोहित हो गई और कामदेव की सहायता से उन्हें भोग में लिप्त कर तपस्या से विरत कर दिया। वर्षों बाद जब ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का बोध हुआ, तो उन्होंने अप्सरा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया। पश्चाताप स्वरूप जब अप्सरा ने क्षमा मांगी, तब ऋषि ने उसे चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से न केवल अप्सरा को पिशाच योनि से मुक्ति मिली, बल्कि ऋषि के पाप भी नष्ट हो गए। भविष्योत्तर पुराण में वर्णित इस व्रत का पालन विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन श्रीहरि की षोडशोपचार पूजा, भजन-कीर्तन, जागरण और द्वादशी पर ब्राह्मण भोजन सहित पूजन के पश्चात व्रत पूर्ण किया जाता है।