रंग पंचमी पूरे भारत में मनाई जा रही है। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और उन्हें गुलाल लगाने से वह प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। शास्त्रों में इसे देव पंचमी भी कहा जाता है, क्योंकि इस तिथि पर देवी-देवता अपने भक्तों साथ होली खेलने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। इसलिए सभी भक्तजन रंग पंचमी पर अबीर-गुलाल को इंदौर में ऐसे हुई रंगपंचमी पर गेर की शुरुआत, आपसी मनमुटाव से जुड़ते चले गए नए रंग
76 साल पहले हुई थी गेर की शुरूआत
इंदौर शहर में रंगपंचमी पर राजवाड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में गेर निकाली जाएगी। इसकी शुरुआत 76 साल पहले हुई थी। टोरी कार्नर पर सबसे पहले रंगों के कढ़ाव का उपयोग शुरू हुआ था। इंदौर शहर के इतिहास के साक्षी राजवाड़ा पर रंगपंचमी 19 मार्च को एक बार फिर रंगों का उत्सवी उल्लास दिखाई देगा। यहां रंगों का खेल यूं तो होलकरों के शासनकाल से जमकर खेला जा रहा है, लेकिन मतवालों की टोली को संस्था के बैनर तले निकालने की शुरुआत 76 साल पहले हुई थी।
चार गेर बढ़ाएंगी इंदौर का गौरव
इंदौर में रंगपंचमी के दिन चार गेर और एक फाग यात्रा निकलती है, वहीं समय के साथ कुछ गेर आयोजकों ने इसे निकालना बंद भी कर दिया। आपसी मनमुटाव से भी रंगपंचमी की गेर में नए रंग जुड़ते चले गए। सबसे पहले टोरी कार्नर की गेर में रंगों के कढ़ाव का उपयोग किया गया। वहीं बैलगाड़ी पर बैठने के विवाद के बाद रसिया कार्नर की गेर की शुरुआत हुई। गेर को पारिवारिक स्वरूप देने का श्रेय राधाकृष्ण फाग यात्रा को जाता है।
शहर के सबसे जागृत ठिये पर जन्मी टोरी कार्नर की गेर
एक समय शहर के सबसे जागृत ठिये के रूप में टोरी कार्नर की खास पहचान थी। देश के बड़े राजनीतिक मुद्दे हों या शहर की कोई भी जानकारी, सबसे पहले यहां पहुंचती थी। टोरी कार्नर गेर के संयोजक शेखर गिरि कहते हैं कि बाबूलाल गिरि, छोटेलाल गिरि, रामचंद्र पहलवान ने रंगों से भरा कढ़ाव लगाना शुरू किया, जिसमें लोगों को डुबोया जाने लगा।
इसके बाद लोग बाल्टियों में भरकर रंग लेकर राजवाड़ा पर जमा होने लगे और गेर की योजना बन गई। इसके साथ ही सबसे पहली गेर की शुरुआत हुई। इस बार गेर की थीम ‘प्यार किया तो डरना क्या’ रहेगी।
गेर में हाथी-घोड़े देखकर चौंके लोग
71 साल पहले संगम कार्नर की गेर में हाथी-घोड़े देखकर लोग चौंक गए। यह गेर नाथूलाल खंडेलवाल ने साथियों के साथ मिलकर निकाली। इसके बाद इसमें मिसाइलों के जरिए रंग-गुलाल उड़ाने का प्रयोग भी लोगों को खूब भाया। आयोजकों द्वारा गेर क्रम में बदलाव को लेकर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी लगाए गए। संयोजक कमलेश खंडेलवाल बताते हैं कि बिना बाहरी सहयोग से गेर का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष मिसाइलों से रंग उड़ाकर तिरंगा बनाया जाएगा।
500 युवा हेलमेट पहनकर शामिल होते हैं गेर में
रसिया कार्नर नवयुवक मित्र मंडल की गेर इस बार भले ही नहीं निकाली जा रही है, लेकिन रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर में यह खास स्थान रखती है। गेर में रमेश जोशी और प्रेम शर्मा के बीच बैलगाड़ी पर बैठने को लेकर कहासुनी हो गई। इससे रसिया कार्नर का जन्म हुआ। गेर ओल्ड राजमोहल्ला से निकाली जाने लगी। सात साल पहले गेर में होली पर संयोजक पं. राजपाल जोशी के मित्र की बाइक से गिरने से दुर्घटना में मौत हो गई, तब से गेर में 500 युवा हेलमेट पहनकर शामिल होते हैं ताकि लोगों को हेलमेट पहनने के प्रति जागृत किया जाए।
51 वर्ष से रंग में भिगो रही मारल क्लब की गेर
51 वर्ष से मारल क्लब की गेर लोगों को रंग में भिगो रही है। यह मल्हार पल्टन से निकाली जा रही है। संयोजक अभिमन्यु मिश्रा बताते हैं कि इस गेर ने आपसी एकजुटता को बल दिया है। इस वर्ष गेर में डीजे, भजन मंडली, रंग-बिरंगी गुलाल उड़ाती आधुनिक मशीनें और पानी के टैंकर की विशेष रूप से व्यवस्था की गई है। सांप्रदायिक सौहार्द एवं सुरक्षा बनी रहे, इसे ध्यान में रखते हुए 100 से अधिक सुरक्षाकर्मियों और वालंटियर की तैनाती की जा रही है।
फाग यात्रा ने दिया शालीन स्वरूप
एक समय ऐसा भी आया कि हुड़दंग के आरोपों के बीच लोग गेर में शामिल होने से किनारा करने लगे थे। ऐसे में नृसिंह बाजार से 27 साल पहले राधाकृष्ण फाग यात्रा स्व. लक्ष्मण सिंह गौड़ ने शुरू की। इसमें यात्रा का धार्मिक और शालीन स्वरूप देकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी शुरू की गई। संयोजक एकलव्य सिंह गौड़ बताया कि एक बार फिर रंगपंचमी पर यात्रा अपने स्वरूप में निकलेगी। इस बार फिर परिवार के साथ शामिल महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षा घेरा चलेगा। इस बार नाथद्वारा का श्रीनाथ मंदिर आकर्षण का केंद्र होगा।