देशहित में है National Security Policy का निर्धारण


लेखक
मेज. जन. अशोक के. मेहता (अ.प्रा.)

रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति ( National Security Policy ) बनाने की पुरजोर सिफारिश करने वाले एनएन वोहरा एक समय रक्षा सचिव और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। ‘भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां’ नामक किताब वोहरा द्वारा संपादित निबंधों का एक मौलिक संग्रह है, जिसको लेकर उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में दिवंगत जनरल बिपिन रावत और जनरल अनिल चौहान -दोनों चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ- के साथ चर्चा की थी और कई सार्वजनिक व्याख्यान भी दिए हैं।

National Security Policy का अभाव

गत 28 फरवरी को हुई नवीनतम चर्चा में, उन्होंने दो मुद्दों पर जोर दिया : राष्ट्रीय सुरक्षा नीति ( National Security Policy ) का अभाव; और राष्ट्रीय सुरक्षा वार्ता में पारदर्शिता की कमी। उन्होंने कई समस्याओं को सूचीबद्ध किया एकल मंच दृष्टिकोण, अपर्याप्त उच्च रक्षा प्रबंधन, क्रॉस-डोमेन संपर्क की कमी और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों के साथ आंतरिक सुरक्षा को मिलाकर देखने में विफलता। उन्होंने आंतरिक सुरक्षा के लिए अलग से मंत्रालय बनाए जाने पर सुझाव दिया। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन के साथ, उन्होंने याद दिलाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के तीन मसौदे तैयार किए गए थे, जिनमें से एक तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने अनुमोदित भी कर दिया था, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व की जवाबदेही तय होने के डर से कोई एक भी सार्वजनिक नहीं हुआ। चौथा मसौदा संभवत: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पास अटका धूल फांक रहा है।
पिछले साल जनरल चौहान के साथ आमने-सामने की बातचीत के दौरान वोहरा उन्हें सहमत कर पाए कि राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की असल में जरूरत है और ‘कुछ लिखा जा रहा है।’ हालांकि, इससे पहले, 29 मई, 2024 को लेफ्टिनेंट कर्नल गौतम दास (से.नि.) की पुस्तक ‘इंडियन आर्ट ऑफ वॉर फॉर फ्यूचर चैलेंजेज’ के विमोचन के दौरान, जब राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के बारे में पूछा गया, तो जनरल चौहान ने जवाब दिया था : ‘ लिखित नीति की आवश्यकता नहीं हैज्हमने बीतेे 70 वर्षों में कई युद्ध लड़े हैं और प्रबंधन बढिय़ा ढंग से कियाज्।’ उसी वर्ष बाद में, जनरल चौहान के समान विचार वाले, एक ‘अक्लमंद’ जनरल ने सुरक्षा नीति को कलमबद्ध न किए जाने का अनुमोदन यह कहकर किया :‘यह हमारे दिमाग में है।’ आधुनिक शासन कला में राष्ट्रीय हितों का प्रबंधन और सुरक्षा हेतु विभिन्न संस्थानों के काम का निष्पादन लिखित योजनाओं एवं आकस्मिकता पर क्रियान्वयन करने पर टिका है। सुरक्षा रणनीति समग्र रणनीतिक, रक्षा और सुरक्षा की समीक्षा कर बनाई जानी चाहिए, इससे जीडीपी के प्रतिशत आधारित संसाधन आवंटन, उच्च रक्षा संगठन और अनिश्चितताओं एवं बड़े पैमाने की व्यवधानों के युग में अंतर्निहित लचीलेपन के साथ रक्षा और सुरक्षा नियोजन में सकल क्षमता का निर्माण हो सकेगा। निवारण उपायों, कूटनीति और विकास को परिवर्तनों के अनुकूल ढलना होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करने की अपनी योजना पेश करके खलबली मचा दी है। अचानक, यूरोप और नाटो, जो संभवत: अमेरिका से अलग हो जाएंगे, अपने रक्षा बजट को न केवल 2 प्रतिशत, बल्कि 5 प्रतिशत तक बढ़ाने को हाथ-पैर मार रहे हैं। रूस दुश्मन है, लेकिन लगता है अब अमेरिका के लिए नहीं रहा। 1991 में, सोवियत संघ के विघटन के बाद, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ फील्ड मार्शल लॉर्ड ब्रैमल ने इस लेखक से कहा था कि ब्रिटेन का अब कोई दुश्मन नहीं रहा। उन्होंने कहा : ‘हम कोई ढूंढ़ रहे हैं’। और उन्हें एक मिल गया।
दीर्घकालिक रक्षा नियोजन न होने ने भयावह परिचालन स्थितियों को जन्म दिया। इनमें से एक, जो पिछले दो दशकों से भारत के सामने मुंह बाए खड़ी थी,अब विस्फोटक रूप धर चुकी है : भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान स्कवाड्रनों की संख्या घटकर 31 से भी कम रह गई, जबकि प्रावधान 42 स्क्वाड्रन बनाए रखने का है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को अभूतपूर्व कड़ाई से एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में कहा :‘हल्के लड़ाकू विमानों की जो संख्या देने का एचएएल ने वादा किया, वह उनकी आपूर्ति देने में विफल रहा है’, उन्होंने आगे कहा : ‘मुझे एचएएल पर भरोसा नहीं रहा। वह मिशन मोड में नहीं है।’ भारतीय वायुसेना को हर साल 35-40 नए लड़ाकू विमान चाहिये, एचएएल ने 2025 में 24 एलसीए एमके-1ए देने का वादा किया है। एपी सिंह कहते हैं कि बाकी निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराए जा सकते हैं। लेकिन 114 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों पर ‘आवश्यकता की स्वीकार्यता’ वाली स्थिति की अनदेखी होगी।