तेजी से गिर रहा Ground water स्तर

लेखक
राव इंद्रजीत सिंह

देश के अनेक राज्यों में लगातार भूजल ( Ground water ) स्तर घटता जा रहा है। ख़ासकर उत्तर भारत के राज्यों में यह स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। विश्व जल दिवस वैश्विक जल संकट की कठोर याद दिलाता है। जिसमें 2.2 बिलियन लोग अभी भी स्वच्छ पानी की पहुंच से वंचित है । भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी निवास करती है इसलिए हमें गिरते भूजल स्तर पर गंभीर मंथन करने की आवश्यकता है।

हरियाणा में तेजी से गिर रहा Ground water लेवल

हरियाणा राज्य का निवासी होने के नाते मैं हरियाणा की चर्चा करते हुए जल संकट पर अन्य राज्यों को आगाह करते हुए हरियाणा जहां कृषि, अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख भूमिका निभाता है वहीं शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। हरियाणा भारत में सबसे अधिक जल-संकटग्रस्त राज्यों में से एक है, जिसके 60′ से अधिक ब्लॉकों को केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) द्वारा ओवर एक्सटलॉइटेड या गंभीर श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह राज्य कृषि, पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है। हालांकि, अत्यधिक निकासी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। अभी के अनुमानों से पता चलता है कि राज्य के कुछ हिस्सों में भूजल स्तर प्रति वर्ष 1-1.2 मीटर की खतरनाक दर से कम हो रहा है। यदि यह प्रवृत्ति अनियंत्रित रूप से जारी रही तो हरियाणा को भयंकर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, जिसका असर यहां के लोगों की आजीविका और आर्थिक विकास दोनों पर पड़ेगा।
हरित क्रांति ने हरियाणा को भारत के अग्रणी गेहूं और चावल उत्पादक राज्यों में से एक बना दिया है, लेकिन इस सफलता के लिए एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है। धान जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों की खेती के लिए व्यापक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे भूजल स्तर में भारी कमी आती है। किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पर निर्भर हैं, लेकिन भूजल के अनियंत्रित दोहन ने राज्य के जलस्त्रोतों पर अत्यधिक दबाव पड़ा है।
हरियाणा के शहरों गुरुग्राम, फरीदाबाद और पानीपत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, जिससे भूजल की मांग अभूतपूर्व रूप से बढ़ रही है। नगर निगम की आपूर्ति प्रणालियां बढ़ती हुई आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिससे स्थानीय निवासियों और व्यवसायों को अंधाधुंध तरीके से भूजल निकालने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। औद्योगिक केंद्र, विशेषकर कपड़ा और ऑटोमोबाइल क्षेत्र, उत्पादन के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिससे संकट और भी बढ़ गया है।
अनियमित मानसून पैटर्न ने हरियाणा के जल संकट को और बदतर बना दिया है। लंबे समय तक सूखा रहने और उच्च वाष्पोत्सर्जन दर के कारण भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है, जबकि तीव्र वर्षा के कारण अत्यधिक जल व्यर्थ बह जाता है, जिससे जलस्त्रोतों में रिसाव रुक जाता है। भूजल निष्कर्षण और पुन:पूर्ति के बीच यह असंतुलन राज्य को लगातार जल असुरक्षा की ओर धकेल रहा है।
अत्यधिक मात्रा में अपशिष्ट जल उत्पन्न होने के बावजूद, हरियाणा ने अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग का अपर्याप्त उपयोग किया है। उचित रूप से उपचारित अपशिष्ट जल को सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए पुन: उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे भूजल पर निर्भरता कम हो जाएगी। हालांकि, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और नियामक चुनौतियों के कारण इसे अपनाने की गति धीमी बनी हुई है।महेंद्रगढ़, भिवानी और हिसार सहित कई जिले गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। भूजल स्तर में गिरावट के कारण, किसानों को विश्वसनीय सिंचाई स्रोतों तक पहुंचने में कठिनाई हो रही है, जिसके कारण उन्हें अधिक गहरी और अधिक महंगी निकासी विधियों में निवेश करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे किसानों जो पहले से ही बाजार में उतार-चढ़ाव और जलवायु परिवर्तनशीलता से जूझ रहे हैं, उनके बीच वित्त संकट पैदा हो जाता है।
भूजल संसाधन घटने से कृषि उत्पादकता खतरे में है। जल उपलब्धता में कमी से फसल की पैदावार कम हो सकती है, जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। भारत की खाद्य आपूर्ति में प्रमुख योगदानकर्ता हरियाणा को, यदि भूजल में कमी अनियंत्रित रूप से जारी रही, तो बाहरी खाद्य स्रोतों पर अधिकाधिक निर्भरता का सामना करना पड़ेगा।हरियाणाभर में नदियां, झीलें और आर्द्रभूमि सूख रही हैं। गिरता जल स्तर मिट्टी की लवणता को बढ़ाने, कृषि उर्वरता को कम करने और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने में भी योगदान देता नींव के खिसकने के कारण संरचनात्मक क्षति की रिपोर्ट पहले ही आ चुकी है।
केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)