लेखिका
निर्मल रानी
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कुट्टू का मिलावटी ( Adulteration ) व विषाक्त आटा इस्तेमाल करने के कारण 100 से अधिक लोग फ़ूड पॉइज़निंग का शिकार हो गये। नवरात्रि के व्रत रखने वाले इन व्रत धारियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
लोग Adulteration आटा खा रहे थे सीएम शहरों के नाम बदल रहे थे
जिस समय राजधानी देहरादून में यह विषाक्त या मिलावटी ( Adulteration ) आटा बेचा जा रहा था और लोग इसे खऱीद रहे थे ठीक उसी समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देहरादून,हरिद्वार,उधम सिंह नगर व नैनीताल जि़लों में अनेक शहरों व क़स्बों के प्राचीन नाम बदलने में व्यस्त थे। इसे संयोग कहें या प्रयोग कि ईद के दिन जब मुसलमानों को कोई सौगात दिया जाना चाहिये था ठीक उसी दिन मुख्यमंत्री धामी मुग़ल काल या ब्रिटिशकाल में रखे गये या उर्दू फ़ारसी भाषा के नामों को बदलकर अपने संस्कारित दूरगामी एजेंडे को लागू कर रहे थे और उसी समय बड़े गर्व से नाम बदलने की अपनी इस क़वायद को जनभावनाओं के मद्देनजऱ और भारतीय संस्कृति और विरासत के अनुरूप बता रहे थे। धामी ने ख़ान पुर,मुहम्मदपुर व नवाबी रोड जैसे नामों को भी बदल डाला। बहरहाल,कथित तौर पर जिन लोगों की भावनाओं के मद्देनजऱ मुख्यमंत्री धामी नाम बदल रहे थे उसी समय वही उत्तराखंड निवासी देहरादून में सरे आम बिक रहा ज़हरीला कुट्टू का आटा खाने के लिये मजबूर थे। साफ़ है कि सरकार की प्राथमिकताओं में शुद्ध,स्वच्छ व पौष्टिक खाद्य सामग्री की बिक्री सुनिश्चित करना नहीं बल्कि नफऱती एजेंडे को लागू करना था।
उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने भी नवरात्रों के दौरान अवैध बूचडख़ानों को बंद करने और धार्मिक स्थलों के 500 मीटर के दायरे में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का सख़्त आदेश जारी किया है। जबकि 6 अप्रैल 2025 को राम नवमी के दिन मांस बिक्री पर विशेष प्रतिबंध लागू होगा। इस दिन पशु वध और मांस की बिक्री दोनों पूरी तरह बंद रहेगी। इसतरह के फ़ैसले भी जनभावनाओं का हवाला देते हुये लिये जाते हैं। सवाल यह है कि जब सरकार इस तरह केफ़ैसलों से स्वयं को जन भावनाओं का पक्षधर दिखाने की कोशिश करती है तो क्या आम जनता को विशेषकर नवरात्रों का व्रत रखने वाले व्रतधारियों को शुद्ध,स्वच्छ व पौष्टिक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना जनभावनाओं का आदर सम्मान नहीं ।
जिलों,शहरों व मार्गों के नाम बदलना ज्यादा जरूरी
यह हिन्दू राष्ट्र निर्माण के शगूफ़े,विश्व महाशक्ति बनने का सपना,दो देशों के बीच छिड़े युद्ध रुकवाने की क्षमता जैसा प्रोपेगंडा,बुलेट ट्रेन के सपने,हवाई चप्पल वालों को हवाई यात्रा कराने जैसी लफ्फ़़ाज़ी,नाले की गैस से चाय बनाने की तकनीक, बादलों में रडार की कार्यक्षमता निष्प्रभावी होने जैसे अवैज्ञानिक दावे और इसतरह की अनेक फ़ालतू बातों को सुनसुनकर देश की जनता का कान पक चुका है। हक़ीक़त यही है कि स्वयं सरकारी दावों के मुताबिक़ आज देश के 80 करोड़ लोग सरकार के रहम ो करम पर मिलने वाले मुफ़्त राशन के लिये मोहताज हैं। परन्तु सरकार है कि मिलावटख़ोरी जैसी बुनियादी चीज़ों पर नियंत्रण करने के बजाये कहीं बुलडोजऱ चलवाकर लोगों के घर गिरवाने में व्यस्त है, भले ही उसे इसकेलिए बार बार अदालत की डांट फटकार क्यों न पड़ती रहे। कहीं मदरसे बंद करने में ख़ुश है,कहीं नमाज़ पर पाबंदी तो कहीं मस्जिदों व क़ब्रों की खुदाई इनकी प्राथमिकता,कहीं रेलवे स्टेशन,जि़लों,शहरों व मार्गों के नाम बदलना ज़्यादा ज़रूरी।
गोया साम्प्रदायिकता पूर्ण व विवादित फ़ैसलों व कामों में पूरी दिलचस्पी दिखाने वाली सरकार की नजऱों में बाज़ारों में खुले आम बिकने वाली मिलावटी व ज़हरीली सामग्री पर नियंत्रण पाना और भ्रष्टाचारियों द्वारा इनका संरक्षण किया जाना कोई मुद्दा ही नहीं बेशक मिलावट ख़ोरी कोई नई समस्या नहीं, परन्तु जो सरकार देश बदलने के दावे कर रही हो,जो धर्मध्वजा के ही सहारे अपनी सत्ता की नाव चला रही हो,देशवासियों को विकसित राष्ट्र बनाने के सपने दिखा रही हो,हिन्दू जागरण का दंभ भर रही हो, कम से कम उस सरकार का मिलावटख़ोरी व ज़हरीले खाद्य सामग्री के सरेआम उत्पादन व बिक्री पर तो नियंत्रण पाना पहली प्राथमिकता तो होनी ही चाहिये। जो भी व्रतधारी कुट्टू का मिलावटी व विषाक्त आटा इस्तेमाल करने की वजह से मौत के मुंह तक पहुँच गये वे भी तो हिन्दू ही हैं और रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आने वाली खाद्य सामग्री में होने वाली मिलावट का उपभोग करने वाले भी देश के बहुसंख्य हिन्दू ही हैं ।
लिहाज़ा इसतरह के अपराध को केवल अपराध की नजऱों से देखने की ज़रुरत है। ऐसा अपराध किसी का धर्म नहीं देखता। ऐसा अपराध जब पनपता है तो इसे संरक्षित करने वाले लोग भी भ्रष्ट व रिश्वतख़ोर लोग होते हैं। सरकार यदि यह दावे कि करती है कि उसका शासन अपराधमुक्त हो गया है या अपराध पर नियंत्रण के दावे करती है तो क्या खाद्य सामग्री में मिलावटख़ोरी करने पर भी नियंत्रण हो चुका है ऐसे धंधे में लिप्त लोगों को सरकार का भय क्यों नहीं आखिऱ कब तक आम लोगों व भक्त व्रतधारियों पर मिलावट का क़हर यूँही टूटता रहेगा कब तक सरकार यह बहाना करती रहेगी कि -कल मिला वक़्त तो सुलझाऊंगा ज़ुल्फ़ें तेरी -आज उलझा हूँ मैं हालात को सुलझाने में
(यह लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है)