Gold-Silver Rate: जनवरी से सोने के भाव में लगातार तेजी देखी जा रही थी, जिसका मुख्य कारण अमेरिका के टैरिफ प्लान से उपजी वैश्विक अनिश्चितता को माना गया। निवेशक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में सोने की ओर रुख कर रहे थे। अब जबकि अमेरिका ने अपने टैरिफ प्लान को लागू कर दिया है, तो दुनियाभर के बाजारों में अस्थिरता और अनिश्चितता और भी बढ़ गई है, जिसका असर सोने की कीमतों पर साफ देखा जा सकता है।
पिछले दो दिनों में अमेरिका समेत कई बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। आमतौर पर जब बाजार टूटते हैं, तो निवेशक सुरक्षित निवेश (Safe Haven) की तलाश में सोने की ओर रुख करते हैं, जिससे इसकी मांग बढ़ती है और दामों में उछाल आता है। लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग रही—बाजारों में गिरावट के बावजूद सोने की कीमतों में अपेक्षित तेजी नहीं आई। इसके उलट, कुछ जगहों पर सोने के भाव में स्थिरता या हल्की गिरावट भी देखने को मिली, जो निवेशकों के व्यवहार में असमंजस और बाजार की असामान्य प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
पिछले तीन दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने और चांदी दोनों की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। सोना जहां पहले 3150 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर था, वहीं अब घटकर 3038 डॉलर प्रति औंस पर आ गया है। इसी तरह, चांदी की कीमत भी गिरकर अब 29.52 डॉलर प्रति औंस रह गई है। यानी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि बाजारों में गिरावट के साथ-साथ, सोने और चांदी जैसे सेफ हेवन एसेट्स में भी गिरावट दर्ज की गई है, जो सामान्य रुझान के विपरीत है। यह संकेत देता है कि निवेशकों में फिलहाल गहरी अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा ने जहां स्टॉक मार्केट को हिला दिया, वहीं उम्मीद के विपरीत सोने की कीमतों में भी गिरावट देखी गई। इस पर वित्तीय विश्लेषक महेश नटानी का कहना है कि यह घटना परंपरागत निवेश सिद्धांतों से हटकर है।
सामान्यतः जब बाजारों में अनिश्चितता होती है, तो सोने को सुरक्षित निवेश (Safe Haven) मानते हुए उसमें मांग और कीमतों में वृद्धि होती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। नटानी बताते हैं कि हालिया तेजी हेज फंडों की भारी खरीदारी के कारण आई थी, न कि केंद्रीय बैंकों की रणनीतिक खरीद के चलते।
अब जब शेयर बाजार गिर रहे हैं, तो हेज फंड्स को अपनी पोजिशन को बनाए रखने के लिए मार्जिन कॉल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वे अपनी अन्य परिसंपत्तियों को भी बेच रहे हैं — इसे ही क्रॉस सेलिंग कहा जाता है। इस वजह से सोने की कीमतों में गिरावट आ रही है, भले ही यह परंपरागत सिद्धांतों के विरुद्ध क्यों न हो।
इससे यह भी संकेत मिलता है कि मौजूदा समय में बाजारों में लिक्विडिटी की तंगी और घबराहट की स्थिति बन रही है, जहां निवेशक मुनाफा नहीं बल्कि नकदी जुटाने पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।
दरअसल, हेज फंड्स एक ही समय में स्टॉक्स, सोना-चांदी, क्रूड ऑयल और बेस मेटल्स जैसी कई संपत्तियों में निवेश करते हैं। जब बाजार में अनिश्चितता बढ़ती है और ज्यादातर एसेट्स (जैसे स्टॉक्स और क्रूड ऑयल) में घाटा होने लगता है, तो इन फंड्स को अपनी पोजिशन बनाए रखने के लिए मार्जिन कॉल का सामना करना पड़ता है।
ऐसे हालात में, भले ही सोने में सीधे नुकसान ना हो, लेकिन नकदी जुटाने के लिए उन्हें सोना बेचना पड़ता है। इसे ही क्रॉस सेलिंग कहते हैं। यानी जिन एसेट्स में अभी भी थोड़ा फायदा या स्थिरता है, उन्हें भी बेचकर नुकसान की भरपाई की जाती है।
इस कारण, सोने की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है — ना कि कमजोर मांग के कारण, बल्कि इसलिए कि हेज फंड्स इसे मजबूरी में बेच रहे हैं। यह परिस्थिति दिखाती है कि बाजार में फिलहाल निवेश निर्णय भावनाओं या रणनीतिक जरूरतों के बजाय तरलता और जोखिम प्रबंधन से प्रभावित हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट का सीधा असर अब घरेलू बाजारों पर भी साफ दिखने लगा है। शनिवार को लगातार तीसरे दिन सोना और चांदी की कीमतें फिसलती नजर आईं। सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार को COMEX (अमेरिकी वायदा बाजार) में सोना 3038 डॉलर/औंस और चांदी 29.52 डॉलर/औंस पर बंद हुई, जो हालिया गिरावट का संकेत है।
इसका सीधा असर इंदौर के स्थानीय बाजार पर पड़ा—
• सोना केडबरी: 1700 रुपये घटकर 91,000 रुपये प्रति 10 ग्राम
• चांदी वायदा: 4000 रुपये गिरकर 90,000 रुपये प्रति किलो
पिछले तीन दिनों में गिरावट का कुल आंकड़ा:
• सोना: 2000 रुपये तक सस्ता
• चांदी: 11,200 रुपये तक सस्ती
2 अप्रैल को इंदौर में सोना 93,000 और चांदी 1,01,200 रुपये पर बिक रही थी।
अब जब कीमतें इस हद तक गिर चुकी हैं, तो 14 अप्रैल से शुरू होने वाले वैवाहिक सीजन में खरीदारी में तेजी आने की पूरी संभावना है। इस गिरावट को ग्राहक एक अवसर की तरह देख सकते हैं।