मध्य प्रदेश की जनता आज यह सवाल पूछने पर मजबूर है कि जो इंदौर मेट्रो परियोजना पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सितंबर 2019 में प्रदेश को सपना दिखाकर शुरू की थी, वह आज क्यों अधर में लटक गई है? यह परियोजना, जो भोपाल और इंदौर के नागरिकों के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव साबित होने वाली थी, आज भाजपा सरकार की अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार और गलत नीतियों के कारण न केवल देरी का शिकार हो चुकी है, बल्कि घोटालों और अनियमितताओं की भेंट चढ़ गई है। कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को लेकर जनता के बीच सच्चाई लाने और भाजपा सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है।
मेट्रो का सपना और भाजपा की विफलता
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सितंबर 2019 में भोपाल के लिए भोज मेट्रो और इंदौर के लिए इंदौर मेट्रो का शिलान्यास कर प्रदेशवासियों को एक ऐतिहासिक उपहार दिया था। योजना के तहत, भोपाल में दिसंबर 2022 और इंदौर में अगस्त 2023 में मेट्रो ट्रेन की सेवाएं शुरू होनी थीं। लेकिन आज, अप्रैल 2025 तक, मेट्रो तो दूर, जनता को केवल ट्रायल रन का तमाशा देखने को मिल रहा है। यह देरी सिर्फ समय की बर्बादी नहीं, बल्कि जनता के टैक्स के पैसे की लूट और विकास के साथ विश्वासघात का प्रतीक बन चुकी है।
जो रूट तैयार हूआ है उससे जनता को कई बड़ा फायदा नहीं
इंदौर मेट्रो के पहले चरण की कुल लागत 7,500.80 करोड़ रुपये निर्धारित की गई थी, जिसका शिलान्यास 14 सितंबर 2019 को हुआ था। मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमपी मेट्रो) ने सितंबर 2023 में गांधी नगर और नंबर 3 स्टेशनों के बीच 5.9 किलोमीटर के प्राथमिकता वाले खंड पर ट्रायल रन किया, लेकिन इसके बाद भी काम पूरा नहीं हो सका। 31.54 किलोमीटर लंबी इस परियोजना में 29 स्टेशन प्रस्तावित हैं, जिनमें 23 एलिवेटेड (24.06 किमी) और 6 अंडरग्राउंड (7.48 किमी) हैं। लेकिन रूट में बदलाव, निर्माण में देरी और घोटालों के कारण लागत में निरंतर वृद्धि हो रही है, और जनता को इसका कोई वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा।
110 करोड़ के घोटालों का हो चुका है पर्दाफाश इंदौर मेट्रो परियोजना में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं, जो भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हैं। प्राथमिकता वाले गलियारे के निर्माण में 110 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। ठेकेदारों ने निविदा और अनुबंध की शर्तों को नजरअंदाज कर उन कार्यों के लिए बढ़ा-चढ़ाकर बिल पेश किए, जो पहले से उनके दायित्वों में शामिल थे। मलबे का निपटान, गड्ढों को भरना और चट्टानों को हटाने जैसे कार्यों के लिए संदिग्ध भुगतान किए गए, जिन्हें तत्कालीन मुख्य लागत नियंत्रक एम. वेंकटेश की आपत्तियों के बावजूद मंजूरी दी गई। एक मीडिया एंजेसी की जांच में 17 करोड़ रुपये के अतिरिक्त भुगतान का खुलासा भी हुआ, जो इस भ्रष्टाचार की गहराई को दर्शाता है।इसी तरह, मेट्रो स्टेशन शेड में 5 करोड़ रुपये का एक और घोटाला सामने आया। भोपाल मेट्रो के शेड में स्टैंडिंग सीम शीट का उपयोग किया गया था, जो 140 किमी प्रति घंटे की हवा का दबाव सहन कर सकती है, जबकि इंदौर में सामान्य रूफ शीट लगाई गई, जो 50 किमी प्रति घंटे की हवा भी नहीं झेल सकती। टेंडर में स्टैंडिंग सीम शीट का प्रावधान था, लेकिन ठेकेदार ने सामान्य शीट का इस्तेमाल कर जनता के पैसे की लूट की। यह धोखाधड़ी स्पष्ट रूप से मेट्रो परियोजना में किए गए भ्रष्टाचार को उजागर करती है।
अंडरग्राउंड मेट्रों का रूट ही तय नहीं कर पाई सरकार
300 दिन से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, यह तय नहीं हो सका कि इंदौर में अंडरग्राउंड मेट्रो रेल कहां से गुजरेगी। बंगाली चौराहे से रीगल तिराहे के बीच रूट को लेकर मध्य प्रदेश नगरीय प्रशासन विभाग खुद असमंजस में है। 17 जून 2024 को मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और अन्य जनप्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में भी कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। व्यस्त एमजी रोड पर मेट्रो रूट को लेकर व्यापारिक संगठनों ने कई बार विरोध किया, लेकिन सरकार ने उनकी आवाज को नजरअंदाज किया। पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन ने भी मेट्रो की विसंगतियों और रूट पर आपत्ति जताई, लेकिन भाजपा सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
DPR बनाने में ही खर्च हो गया करोड़ों रूपए
रूट में बदलाव के कारण 1600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत का बोझ जनता पर क्यों डाला जा रहा है? पहले स्व. बाबूलाल गौर के समय तैयार की गई DPR को शिवराज सिंह चौहान ने बदल दिया, और अब वही खेल दोहराया जा रहा है। क्या केवल DPR बनाने में करोड़ों रुपये खर्च कर दिए जाएंगे?
प्लानिंग में खामियां: पार्किंग की व्यवस्था तक नहीं
इंदौर मेट्रो के पहले चरण में 16 स्टेशन बनाए जा रहे हैं, जिनमें से आधे पर 90% से अधिक काम पूरा हो चुका है। लेकिन एक चौंकाने वाली बात यह है कि शहीद पार्क, रेडिसन होटल चौराहा, विजय नगर, मेघदूत गार्डन, बापट चौराहा, हीरानगर, चंद्रगुप्त चौराहा, आईएसबीटी, एमआर-10 रोड, भौंरासला चौराहा, और सुपर कॉरिडोर के स्टेशनों पर पार्किंग की कोई योजना नहीं है। जबकि दिल्ली में 80% मेट्रो स्टेशनों के पास पार्किंग उपलब्ध है, इंदौर में यह बुनियादी सुविधा भी नहीं दी जा रही। इससे मेट्रो का उपयोग जनता के लिए असुविधाजनक और घाटे का सौदा साबित होगा।
जापान की फंडिंग का मौका गंवाया कांग्रेस प्रवक्ताओं ने खुलासा किया कि 7 मार्च 2017 को तत्कालीन शहरी विकास मंत्री माया सिंह ने स्वीकार किया था कि जापान की कंपनी जेआईसीए इंदौर और भोपाल मेट्रो को फंड करने को तैयार नहीं थी। लेकिन भाजपा सरकार ने 50% कमीशन की डील न होने के कारण इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यदि उस समय यह प्रोजेक्ट जापान को सौंपा गया होता, तो आज इंदौर और भोपाल में मेट्रो अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही होती।कांग्रेस की मांग
कांग्रेस पार्टी ने उठाई मध्य प्रदेश की जनता
मेट्रो परियोजना में हुए 110 करोड़ और 5 करोड़ रुपये के जांच की मांग
दोषी ठेकेदारों और अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग
रूट और लागत को लेकर पारदर्शिता बरतने की मांग
जनता को समयबद्ध तरीके से मेट्रो की सुविधा दी जाए।
पार्किंग और अन्य मूलभूत सुविधाओं को प्रोजेक्ट में शामिल किया जाए।
भाजपा सरकार का यह तमाशा अब और नहीं चलने वाला। जनता को मेट्रो का लाभ देने के बजाय, यह सरकार केवल घोटालों और देरी का रिकॉर्ड बना रही है। कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को विधानसभा से लेकर सड़क तक उठाएगी और जनता के हक के लिए लगातार लड़ती रहेगी।