लेखक
दिलीप कुमार पाठक
स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है । छोटे-छोटे बच्चों के स्कूल ( Private schools ) जाने की बड़ी-बड़ी चिंताएं पैरेंट्स के चेहरों पर साफ़ तौर पर देखी जा सकती हैं ।ये विकसित भारत के रास्ते पर बढ़ते हुए नए भारत की नई इबारत है जो बच्चों की पढ़ाई के नाम पर जमकर लूटकर लिखी जा रही है । हम दूसरों के उदहारण बताते रहते हैं दर-असल मेरे भतीजे के लिए नए स्कूल का चुनाव बड़ा कठिन था क्योंकि सुविधाओं के नाम पर प्राईवेट स्कूलों में पढ़ाई की फीस के नाम पर डाका ड़ाला जा रहा है ।
Private schools के टीचरों की सैलरी सरकार टीचरों से कम
हमारे 4 साल के भतीजे के स्कूल ( Private schools ) में एडमिशन फीस 35 हज़ार लिए गए । वही 8 साल के बच्चे के एडमिशन के लिए 50 हज़ार लिए गए । इसको फीस के नाम पर डाका क्यों न कहा जाए ? हमारे देश में अधिकांश लोग मुश्कि़ल से रोज़ी-रोटी कमा पाते हैं, अब सवाल ये उठता है कि जब देश की अधिकांश जनता अभी आर्थिक रूप से कमज़ोर है तो क्या ये स्कूल गरीबों के मखौल उड़ाने के लिए खुले हैं? इन स्कूलों में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है कि 5 साल के बच्चों की फीस 50 हज़ार रुपए उगाह ली जाती है ।किसी किसी स्कूलों में तो ये फीस लाखों में है । जबकि इन्हीं स्कूलों के अध्यापकों की फीस देखा जाए तो ज्य़ादा से ज्य़ादा 20-25 हज़ार होती है ।सरकारी स्कूल के अध्यापकों की सैलेरी लाखों में है वही प्राईवेट स्कूलों के अध्यापक कुछ ही हज़ार रुपए में गुजऱ – बसर कर रहे हैं ।सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापकों के बच्चे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि प्राईवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं ।सोचकर देखा जाए तो समझ आता है कि शिक्षा के नाम पर देश के लोगों का कितना कबाड़ा बनाया जा रहा है ।अध्यापकों सहित पूरे देश को पता है कि सरकारी स्कूलों में ढंग से पढ़ाई ही नहीं होती, तो वे अपने बच्चों को क्यों पढ़ाएं ! क्योंकि उन्हें पता है कि वे क्या पढ़ा रहे हैं ।सरकारी स्कूलों में जो थोड़ा बहुत ढंग के अध्यापक होते हैं तो उनसे तरह – तरह के सर्वे कराए जाते हैं ।जैसे कहीं पोलियो कहीं टीका, कहीं जानवरों की गणना तो कहीं जानवरों का बीमा कराया जाता है ।और बांकी वोटिंग कराने में व्यस्त रहते हैं ।अब पढ़ाई कब होगी? हमारे देश को इस सिस्टम ने अंधेर नगरी में तब्दील कर दिया है ।सबसे प्रमुख बात प्राईवेट स्कूलों में सरकार एवं बड़ी – बड़ी संस्थाएं उन्हें मान्यता, रजिस्ट्रेशन दे देती हैं फिर कभी झांकने नहीं जातीं ।जब प्राइवेट स्कूलों में नहीं जाते तो सरकारी स्कूलों में भला कौन जाता होगा ।स्कूलों के लिए एक नियमावली बनना चाहिए कि कितनी फीस हो सकती है, एक पाठ्यक्रम होना चाहिए हर स्कूल अपना पाठ्यक्रम खोलकर बैठा हुआ है! शिक्षा विभाग हाथों में मेहंदी लगाकर क्यों बैठा है! प्राईवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाओ तो क्या यह भी नियम होना चाहिए कि बच्चों की स्कूल ड्रेस, किताबें सामाग्री सबकुछ स्कूलों ऐ क्यों खरीदा जाए? स्कूल चला रहे हैं या मार्केट? हालांकि पूरी तरह उनका दोष नहीं है क्योंकि शिक्षा विभाग ने पूरी तरह से उन्हें लूटने के लिए छोड़ रखा है, और प्राईवेट स्कूलों वाले जमकर लोगों को लूट रहे हैं ।ये तो हद ही हो गई है हमारे एक मित्र अपने बच्चों की किताबें लाएं हैं और किताबें आई हैं 14 हजार 635 रुपये की…किताबें कागज की ही हैं या चांदी का वर्क लगा है? समझ नहीं आ रहा पुस्तकों एवं शिक्षा के नाम पर ये लूट पाट कब बंद होगी? कब लगाम लगेगी ।प्रशासन स्कूलों के खिलाफ मुकम्मल कार्रवाई नहीं कर रहा जिससे उनके इरादे बुलंद होते जा रहे हैं। अभिभावकों के लिए बढ़ी फीस अदा करना चुनौती के समान है। ट्यूशन फीस, स्कूल मेनटेनेंस फीस, इंटरनेट फीस सहित विभिन्न मदों में निजी स्कूलों ने अपनी सुविधा के अनुसार बढ़ोतरी की है। कुल मिलाकर फीस में पंद्रह से बीस फीसद तक का इजाफा किया गया है। जिन अभिभावकों के दो या तीन बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, उनकी परेशानी बढ़ गई है।
सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंड्री एजुकेशन (सीबीएसई) के द्वारा हर स्टेट में एक एडमीशन एंड फी रेगुलेटरी कमेटी का गठन किया जाता है।
कमेटी की जिम्मेदारी होती है कि वह हर वर्ष यह तय करेगी कि स्कूलों में कितनी फीस बढ़ाई जाए। लेकिन स्कूल अपनी मनमर्जी दिखाते हुए फीस बढ़ाते हैं। यही कारण है कि स्कूलों के द्वारा बढ़ाई गई फीस अलग-अलग है। कोई नियम कानून नहीं है। फीस में हर वर्ष हजारों रुपये की बढ़ोतरी कर स्कूल अपनी जेब भर रहे हैं। आम आदमी अपने बच्चों को किस प्रकार पढ़ा रहा है स्कूलों को इससे कोई लेना देना नहीं है। सैलरी डेढ़ दो हजार रुपये बढ़ती है। स्कूल में बच्चों की फीस हज़ारों रुपये तक बढ़ गई है। ऐसे में परेशानी बढ़ गई है। प्रशासन को चाहिए करोड़ों अभिभावकों की परेशानी को देखते हुए स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करे। जिन अभिभावकों के दो बच्चे निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। उनकी परेशानी सबसे अधिक बढ़ गई है। प्रशासन को चाहिए कि निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाए। बच्चों की फीस देने के लिए अभिभावक अपने दूसरे खर्चों में कटौती करने को विवश हैं। अभिभावकों की जेब काटकर स्कूल अपनी जेब भर रहे हैं। इस पर सरकार को नियम बनाना चाहिए।
साथ ही आदेश पारित होना चाहिए कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वालों के बच्चे अब प्राईवेट स्कूलों में नहीं पढ़ पाएंगे ।जब सरकारी स्कूल के कर्मचारियों के बच्चे केवल सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो गुणवत्ता में सुधार होगा और प्राइवेट स्कूलों में कुछ दबाव कम होगा जिससे उनकी दादागिरी कुछ कम होगी ।साथ ही सरकारी स्कूल के अध्यापकों से अनावश्यक काम न लिए जाएं जिससे अध्यापक बहाना न करें! साथ ही प्राईवेट स्कूलों में अध्यापकों की वेतन में कुछ बढोत्तरी होना चाहिए ।साथ ही देश के अध्यापकों को एवं स्कूल चलाने वालों को नैतिकता नहीं त्यागना चाहिए आप शिक्षा से जुड़े हुए हैं कृपया डाका मत डालें ।हमारे मुल्क में लोग सख्ती से ही सुधरते हैं इस समस्या का समाधान जल्द ही होना चाहिए अन्यथा ये एकदिन विकराल रूप धारण कर लेगी! हालांकि अब तो कर भी चुकी है।
(लेखक /पत्रकार)
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है)