संसद की ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में अहम बदलावों की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि इस योजना के तहत काम के दिनों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 150 दिन किया जाना चाहिए और मजदूरी को कम से कम ₹400 प्रतिदिन तय किया जाना चाहिए।
वर्तमान मजदूरी अपर्याप्त, खर्चों को पूरा करना मुश्किल
समिति का कहना है कि मौजूदा मजदूरी दर ग्रामीण मजदूरों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में नाकाफी है। इसलिए मजदूरी को ₹400 प्रतिदिन तक बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि श्रमिकों की जीवन गुणवत्ता सुधर सके। वर्तमान दरें लगातार बढ़ती महंगाई और खर्चों के मुकाबले काफी कम हैं।
योजना की प्रभावशीलता पर स्वतंत्र सर्वेक्षण कराने का सुझाव
कांग्रेस सांसद सप्तगिरि शंकर उलाका की अध्यक्षता में बनी समिति ने सिफारिश की है कि मनरेगा की प्रभावशीलता को समझने के लिए एक स्वतंत्र और राष्ट्रीय स्तर का सर्वेक्षण कराया जाए। इस सर्वे में मजदूरों की संतुष्टि, भागीदारी, वेतन मिलने में देरी और वित्तीय गड़बड़ियों पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है।
सामाजिक लेखापरीक्षा पर विशेष जोर
रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा के सही क्रियान्वयन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक लेखापरीक्षा जरूरी है। समिति ने इस दिशा में प्रयास तेज करने की बात कही है ताकि योजनाओं में गड़बड़ी को समय रहते सुधारा जा सके।
जलवायु और आपदा से प्रभावित क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था
समिति ने सिफारिश की है कि जलवायु परिवर्तन, सूखा और आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में मनरेगा के तहत कार्य दिवसों की सीमा 150 से बढ़ाकर 200 दिन की जाए। खासकर वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय और वन अधिकार अधिनियम के तहत पात्र लोगों के लिए यह बढ़ोतरी लाभकारी सिद्ध होगी।
मजदूरी भुगतान में देरी पर चिंता
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया कि मजदूरी भुगतान में अक्सर देरी होती है, जिससे श्रमिकों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए समिति ने सिफारिश की है कि देरी से भुगतान पर मिलने वाले मुआवजे की दर को भी बढ़ाया जाए ताकि श्रमिकों को समय पर न्याय मिल सके।
समिति की ये सिफारिशें आने वाले समय में मनरेगा योजना को और प्रभावी, जवाबदेह और श्रमिकों के लिए ज्यादा फायदेमंद बना सकती हैं।