राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान दमदार अंदाज़ में कहा कि भारत की आत्मा अहिंसा में बसती है, लेकिन जब अत्याचार की सीमाएं लांघी जाती हैं, तो उन्हें जवाब देना भी धर्म है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा – “हम पड़ोसियों को तंग नहीं करते, लेकिन जो उपद्रव करेगा, उसे दंड मिलेगा – यही राजा का कर्तव्य है।”
अन्याय के खिलाफ खड़े होने की है परंपरा
भागवत ने हालिया पहलगाम हमले की पृष्ठभूमि में यह बात कही और ज़ोर देकर कहा कि भारत केवल सहिष्णुता का प्रतीक नहीं है, बल्कि अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने वाली एक सशक्त परंपरा भी है।
हिंदू मैनिफेस्टो एक सत्य की खोज
उन्होंने हिंदू मैनिफेस्टो की चर्चा करते हुए कहा कि यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि सत्य की खोज का औजार है – एक ऐसा माध्यम, जो शास्त्रार्थ की परंपरा को फिर से जीवित करेगा। उनका मानना है कि यह मैनिफेस्टो भारत को फिर से विश्वगुरु बनने की दिशा में ले जाएगा।
धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं
भागवत ने धर्म के सही अर्थ को सामने लाते हुए कहा, “धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं है। यह सत्य, करुणा और शुचिता का नाम है। भ्रष्टाचार को सहन करना अधर्म है – धर्म में अर्थ और काम को मर्यादा में रखना जरूरी है।”
1500 साल से नहीं आया नया शास्त्र
उन्होंने अफसोस जताया कि पिछले 1500 वर्षों में कोई नया शास्त्र नहीं आया, जिससे समाज में जातिवाद और अस्पृश्यता जैसी विकृतियां पनपीं। उन्होंने वेदों के शुद्ध भाष्य की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा, “शास्त्रों में कहीं भी जाति या अस्पृश्यता का स्थान नहीं है – यह बात स्वयं उडुपी के संत समाज भी कह चुका है।” अंत में उन्होंने यह संदेश दिया कि हिंदू समाज को अपने धर्म की गहराइयों को समझना होगा। हिंदू मैनिफेस्टो न केवल हमारी परंपराओं को परिशुद्ध करेगा, बल्कि भविष्य की दिशा भी तय करेगा।