इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के पट्टाचार्य पद प्रतिष्ठा संस्कार महा महोत्सव में भाग लिया। इस विशेष अवसर पर महापौर ने कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर आचार्य श्री का आशीर्वाद लिया और आयोजन की भव्यता की सराहना की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य श्री का आध्यात्मिक मार्गदर्शन समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है और उनके सान्निध्य में धर्म और संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन होता है। महापौर भार्गव ने महोत्सव में शामिल श्रद्धालुओं से भी मुलाकात की और आयोजन की सफलतापूर्वक व्यवस्था के लिए समिति के सदस्यों की प्रशंसा की। समारोह में धार्मिक अनुष्ठानों, प्रवचनों और विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों के माध्यम से एक दिव्य वातावरण बना रहा, जिसमें महापौर की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ा दिया।
इंदौर में महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव ने परम पूज्य आचार्य श्री १००८ विशुद्धसागर जी महाराज के पट्टाचार्य पद प्रतिष्ठा संस्कार महा महोत्सव के अंतर्गत आयोजित भव्य चल समारोह में भाग लिया। यह शोभायात्रा महावीर बाग से प्रारंभ होकर सुमतिधाम एयरपोर्ट रोड तक निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में समाजजन श्रद्धा और उत्साह के साथ उपस्थित रहे। महापौर भार्गव ने श्रद्धालुओं के साथ मिलकर चल समारोह में सहभागिता की और इस ऐतिहासिक आयोजन की भव्यता की सराहना की। कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक और कैबिनेट मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय भी विशेष रूप से मौजूद रहे, जिनकी उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और बढ़ा दिया। देशभर से आए जैन समाज के अनेक गुरुओं और साधु-साध्वियों की उपस्थिति ने इस महा महोत्सव को आध्यात्मिक रंग में रंग दिया। यह आयोजन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, प्रवचनों और संस्कार कार्यक्रमों के साथ आगामी २ मई तक संपन्न होगा, जिसमें देशभर से श्रद्धालु हिस्सा लेंगे और धर्म, साधना तथा संस्कृति के इस विराट संगम का साक्षी बनेंगे।
इंदौर में जैन समाज का भव्य महाकुंभ आज से शुरू हो रहा है, जिसमें परम पूज्य आचार्य श्री १००८ विशुद्धसागर जी महाराज के पट्टाचार्य पद प्रतिष्ठा महोत्सव का शुभारंभ मंगल प्रवेश के साथ किया जाएगा। यह आयोजन आगामी सात दिनों तक गांधी नगर स्थित गोधा स्टेट में चलेगा, जहां देशभर से श्रद्धालु, साधु-साध्वियाँ और समाजजन बड़ी संख्या में एकत्र होंगे। इस धार्मिक आयोजन की खास बात यह है कि किन्नर समुदाय भी इसमें विशेष रूप से शामिल हुआ है, जो आयोजन की विविधता और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन रहा है। महोत्सव के दौरान भव्य शोभायात्रा, धार्मिक अनुष्ठान, प्रवचन और विभिन्न आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा, जो सम्पूर्ण वातावरण को धर्ममय बना देगा।
27 अप्रैल 2025 को सुमति धाम में मंगल प्रवेश के साथ पहला दिन बड़े उत्साह और धार्मिक भावना के साथ प्रारंभ होगा। सुबह 6 बजे महावीर बाग से सुमति धाम तक संसंघ का मंगल प्रवेश होगा, जिसके बाद प्रातः 8 बजे प्रवचन का शुभारंभ देशना मंडप में होगा। इसके पश्चात, प्रातः 10 बजे आहार चर्या का आयोजन होगा। दोपहर 2 बजे देशना मंडप में पत्रकार सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसके बाद 2:30 बजे वात्सल्य मंडप में स्वाध्याय का कार्यक्रम होगा। दोपहर 3 बजे पुनः देशना मंडप में प्रवचन होगा। शाम 6 बजे आरती मंडप में आचार्य भक्ति एवं प्रतिक्रमण का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। शाम 7:30 बजे आरती मंडप में आरती की पूजा होगी, जिसके बाद रात 8 बजे प्रोजेक्शन मैपिंग और 8:30 बजे लेजर शो का भव्य आयोजन होगा। दिन का समापन रात 9 बजे देशना मंडप में आदिनाथ गाथा के प्रथम भाग के सांस्कृतिक कार्यक्रम और रात 11 बजे आरती मंडप में पुनः प्रोजेक्शन मैपिंग से होगा।
इंदौर नगर, जो अपनी “डग-डग रोटी-पग-पनीर” की कहावत के लिए मशहूर है, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है। यहां 150 से अधिक दिगंबर जैन मंदिर हैं, जिनमें से गोधा एस्टेट स्थित देवाधिदेव 1008 श्री सुमतिनाथ जिनालय अपनी भव्यता और पवित्रता के कारण विगत एक वर्ष में विशेष पहचान बना चुका है। यह जिनालय श्वेत संगमरमर और गुलाबी पत्थरों से निर्मित अद्वितीय वास्तुकला एवं शिल्प कला का उदाहरण है। मंदिर का मकराना मार्बल से निर्मित भवन और वियतनाम के मार्बल से बनी 51 इंच की पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ जी की प्रतिमा इसके मुख्य आकर्षण हैं।
यह प्रतिमा अत्यंत मनोहर और अतिशय से आच्छादित है, जिसने प्रतिष्ठा से पूर्व ही युवा दंपत्ति सपना और मनीष गोधा को एक विशाल सम्मान दिलाया। मूर्तिकार ने प्रतिष्ठा ग्रंथों के अनुसार सुमति धाम में बैठकर इस प्रतिमा का निर्माण किया, जिससे यह न केवल जैन अनुयायियों बल्कि आम लोगों के बीच भी प्रसिद्द हो गई।
सुमति धाम के विकास में ‘मां’ प्रभा का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने देव-शास्त्र-गुरु की उपासना और परिवार में संस्कृति के प्रति समर्पण की भावना को अपने सरल स्वभाव से मजबूत किया। सुरेश गोधा और प्रभा के घर में जन्मे मनीष गोधा और उनकी पत्नी सपना ने मिलकर गोधा परिवार की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनका समर्पण और मेहनत सुमति धाम को एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनाने में सहायक रहा।
सुमति धाम युवा सोच, जोश और भावना का प्रतीक है। युवा दंपत्ति सपना और मनीष गोधा की आधुनिक सोच ने इस धार्मिक स्थल को एक नया रूप दिया है, जहां आधुनिकता और परंपरा का सुंदर मेल है। उनका प्रयास सुमति धाम को न केवल आध्यात्मिक केंद्र बनाता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी यह इंदौर का एक प्रमुख आकर्षण स्थल बन चुका है। इस भव्य तीर्थ स्थल की परिकल्पना और साकार रूप हर किसी के दिल में गहरी छाप छोड़ रही है, जो सम्पूर्ण जैन समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
21वीं सदी गुरु विशुद्ध के नाम
मध्य प्रदेश के भिण्ड जिले के छोटे से गांव रूर में 18 दिसंबर 1971 को जन्मे राजेन्द्र लाला, जिन्हें आचार्य विशुद्ध सागर जी के नाम से जाना जाता है, ने अपने जीवन को धर्म के प्रति समर्पित कर दिया। मात्र 17 वर्ष की आयु में उन्होंने आचार्य विराग सागर जी के संघ में दीक्षा लेकर 1989 में मुनि दीक्षा ग्रहण की। 31 मार्च 2007 को आचार्य श्री विराग सागर जी ने उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
आचार्य विशुद्ध सागर जी ने अपने गुरु के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में कठोर तपस्या, योग और धर्म प्रचार के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया। वे जैन धर्म के महान आचार्यों में गिने जाते हैं और युवाओं को धर्म और योग की ओर प्रेरित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
उनके व्यापक योगदान और आध्यात्मिक कर्तव्यों के सम्मान में उन्हें न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी अत्यधिक मान्यता मिली है। आचार्य विशुद्ध सागर जी का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और यू.एस.ए. बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है, जो उनकी महत्ता और प्रभाव को दर्शाता है। वे आज 21वीं सदी के एक महान गुरु और धर्म प्रचारक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
बार्य श्री विराग सागर जी महाराजः एक युग शिरोमणि आचार्य
आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज को उनके अद्वितीय योगदान, गहन साधना और जैन धर्म के प्रति अपार निष्ठा के लिए व्यापक सम्मान प्राप्त है। उन्होंने 1983 में दीक्षा ग्रहण की और मात्र नौ वर्षों बाद, 1992 में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होकर धर्म प्रचार में अपनी अमिट छाप छोड़ी। अपने 41 वर्षों के दिगंबर मुनि जीवन और 32 वर्षों के आचार्य जीवन के दौरान उन्होंने 500 से अधिक साधकों को दीक्षा दी, जिससे जैन धर्म की प्रतिष्ठा और विस्तार दोनों में वृद्धि हुई।
आचार्य श्री विराग सागर जी का जीवन हमेशा जैन जगत के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है। अपने जीवन के अंतिम समय में, जब वे 61 वर्ष के थे और अपनी मृत्यु का आभास था, उन्होंने अपने भक्त अरुण कोटडिया को एक वीडियो संदेश रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया। इस संदेश में उन्होंने कहा, “जीवन क्षणभंगुर है, पता नहीं किसके जीवन का कब समापन हो जाए, इसलिए आचार्य सदैव तैयार रहते हैं और योग्य शिष्य को जिम्मेदारी सौंपकर संघ का संचालन करते हैं।” यह संदेश उनकी जीवनदृष्टि और संघ के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब था।
आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज की अंतिम इच्छा के अनुसार, आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को पट्टाचार्य के पद पर आसीन किया जा रहा है, ताकि वे अपने निष्कलंक भाव और समर्पण के साथ जैन समाज को एक सशक्त और प्रभावशाली नेतृत्व प्रदान कर सकें। यह कदम जैन धर्म की परंपरा और उसके आदर्शों की निरंतरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इंदौर नगर ने अपने गौरवशाली इतिहास में अनेक स्वर्णिम पृष्ठ जोड़े हैं, और अब सुमति धाम का पट्टाचार्य महोत्सव, जो 27 अप्रैल से शुरू हो रहा है, इंदौर, मालवा और पूरे जैन जगत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और यादगार अध्याय साबित होगा। इस भव्य महोत्सव में लगभग 388 से अधिक संतों की उपस्थिति होगी, जिनमें 12 आचार्य, 8 उपाध्याय, 9 गणिनी आर्यिका, 140 मुनिराज, 123 आर्यिका माता, 2 एलक जी, 34 क्षुल्लक जी, 60 क्षुल्लिका जी और तीन हजार से अधिक बाल ब्रह्मचारी शामिल हैं। यह आयोजन मालवा क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा और अनूठा जैन धार्मिक समागम होगा, जिसमें दिगम्बर जैन परंपराओं के सभी प्रमुख साधु-संत एकत्र होकर जैन एकता और धर्म की मजबूती का सशक्त संदेश देंगे।
इस महोत्सव की खास बात यह है कि संतों ने पाँच महीनों से पैदल यात्रा कर इंदौर की ओर अग्रसर होकर इस आयोजन में भाग लेने के लिए अथक प्रयास किया है। खासकर चर्मा शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज, जो अपने विशाल संघ के साथ 27 अप्रैल को सुमति धाम पहुंचेंगे, इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण होंगे। इस पैदल यात्रा में संतों ने भीषण गर्मी में प्रतिदिन 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तय की, जो जैन जगत के इतिहास में एक अविस्मरणीय और प्रेरणादायक घटना के रूप में दर्ज होगी।
इस आयोजन को सफल बनाने में सपना और मनीष गोधा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने पूरे देश से संतों को बड़े ही विनम्रता और श्रद्धा के साथ आमंत्रित किया। उनकी भावना और समर्पण ने सम्पूर्ण समाज को प्रेरित किया तथा समारोह में सम्मिलित होने वाले सभी संतों के लिए एक विशेष नव निर्मित आमंत्रण पत्रिका भी भेंट की, जो इस महोत्सव का एक अमूल्य और यादगार उपहार बन गई है। इस प्रकार सुमति धाम का यह पट्टाचार्य महोत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इंदौर की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक बन कर उभरा है।
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नवाचार और समयबद्धता
सुमति धाम और गोधा दंपत्ति द्वारा आयोजित यह महोत्सव न केवल इंदौर, बल्कि पूरे देश में अपने महत्व को लगातार बढ़ा रहा है। देश-विदेश के जैन समाज की नजरें इस आयोजन पर टिकी हैं, क्योंकि यहां नवाचार और समयबद्धता के साथ हर आयु वर्ग के लोगों को कुछ नया देखने और अनुभव करने का अनूठा अवसर मिलता है। सुमति धाम अब केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र बन चुका है, जहां श्रद्धा, समर्पण और आधुनिक सोच का सुंदर संगम देखने को मिलता है। गोधा दंपत्ति ने इस आयोजन को इतने बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक आयोजित कर इसे जैन समाज के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बना दिया है।
पट्टाचार्य महोत्सव क्यों?
इस बार इंदौर के सुमति धाम में आयोजित होने वाला पट्टाचार्य महोत्सव जैन जगत के इतिहास में एक नई मिसाल स्थापित करने जा रहा है। यह महोत्सव न केवल इंदौर में, बल्कि हर जैन परिवार के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इसका मुख्य कारण है आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज का पट्टाचार्य पद पर विराजमान होना। 30 अप्रैल, अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर, वे इस उच्चतम पद को ग्रहण करेंगे और जैन समाज में अपनी प्रतिष्ठा को और भी दृढ़ बनाएंगे।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज दिगम्बर जैन धर्म के एक महान आचार्य हैं, जिन्होंने अपने गुरु आचार्य विराग सागर जी के मार्गदर्शन में संघ का सफल नेतृत्व किया है। अब उनके अधीन लगभग 500 शिष्य और प्रशिष्य अपने जीवन को उनकी शिक्षाओं और मार्गदर्शन के अनुरूप व्यतीत करेंगे। यह कदम जैन संघ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि आचार्य पद पर आसीन होना बड़ी जिम्मेदारी और सम्मान का प्रतीक है, और आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने इसे पूरी कुशलता और समर्पण के साथ निभाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
सामाजिक कार्यों में समर्पण का नया रूप
सामाजिक कार्यों में चंदा देना एक सामान्य मानव वृत्ति हो सकती है, लेकिन जब यह धर्म और भावनाओं से जुड़ जाती है, तो उसका स्वरूप कुछ और ही बन जाता है। इस दृष्टिकोण को बदलने में धर्मनिष्ठ दंपत्ति सपना और मनीष गोधा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुमति धाम में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव (6-11 मार्च 2024) ने जैन समाज और इंदौर की धार्मिक परंपरा में एक नया आयाम स्थापित किया। इस महोत्सव के दौरान आयोजित लेजर शो, ड्रोन शो, महाआरती और समयबद्ध धार्मिक आयोजनों ने एक अनूठी छाप छोड़ी। यह आयोजन न केवल भव्यता के लिए, बल्कि भावनात्मक शुद्धता और श्रद्धा के लिए भी उल्लेखनीय रहा।
सपना और मनीष गोधा – जैन दर्शन के सशक्त स्तंभ
सपना और मनीष गोधा का दाम्पत्य जीवन जैन दर्शन की निर्मल भावनाओं का जीता-जागता उदाहरण है। उनका जीवन आपसी सामंजस्य, समर्पण और समन्वय से पूर्ण है। उनका मानना है कि ‘गुणवत्ता’ पर ध्यान देना और प्रत्येक कार्य को श्रेष्ठता से संपन्न करना सफलता की कुंजी है। उन्होंने अपने परिवार का गौरव बढ़ाते हुए समाज में सकारात्मक योगदान दिया है। उनका यह समर्पण केवल जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि समग्र समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके अथक प्रयासों ने सुमति धाम को एक अद्वितीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
सुमति धाम का देवाधिदेव सुमतिनाथ जिनालय
सुमति धाम में स्थित देवाधिदेव सुमतिनाथ भगवान का जिनालय अपनी भव्यता और अनूठे स्थापत्य के लिए विख्यात है। यह जिनालय एक वर्ष के भीतर ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गया है। यहां आने वाला हर श्रद्धालु मंदिर की सजावट, आभा मंडल, अष्ट प्रतिहार्य, परिकर, हार, खिड़कियां, पूजन सामग्री कक्ष और आस-पास के पेड़-पौधों की शोभा देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। इस मंदिर का आकर्षक वातावरण यहां आने वाले हर व्यक्ति को सेल्फी लेने के लिए प्रेरित करता है। यह सब सपना-मनीष गोधा के समर्पित प्रयासों और उच्चतम भावों का परिणाम है।
विशेष मानस्थम – 24 तीर्थंकरों का अनूठा समूह
सुमति धाम में स्थित मानस्थम भी अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है। सामान्यतः मानस्थम में चार तीर्थंकरों की प्रतिमाएं होती हैं, लेकिन सुमति धाम के मानस्थम में 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं, जो विश्व में पहली बार हुआ है। यह मानस्थम जैन धर्म की एक अनूठी और ऐतिहासिक धरोहर है।
भगवान सुमतिनाथ जी, जिनका जन्म अयोध्या में हुआ था, जैन धर्म के पंचम तीर्थंकर हैं। उनका चिन्ह ‘चकवा’ है। उनके पिता का नाम सुमंगलादेवी और माता का नाम मेघप्रभ था। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद वैराग्य की प्राप्ति की और समवशरण में 116 गणधर थे।