पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी: “अगर जासूसी आतंकियों की हो रही है, तो दिक्कत क्या है?

देश की सबसे बड़ी अदालत ने पेगासस जासूसी कांड की सुनवाई के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसने बहस को एक नया मोड़ दे दिया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सवाल उठाया—”अगर सरकार स्पाइवेयर का इस्तेमाल आतंकियों के खिलाफ कर रही है, तो इसमें गलत क्या है?” अदालत का स्पष्ट रुख था: देश की सुरक्षा सर्वोपरि है, लेकिन नागरिकों की निजता भी अड़िग अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट का दो-टूक संदेश
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जो भी रिपोर्ट देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा और न ही उससे छेड़छाड़ होगी। हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिए कि अगर कोई व्यक्ति यह जानना चाहता है कि उसका नाम रिपोर्ट में है या नहीं, तो उस स्तर तक जानकारी साझा की जा सकती है।

संतुलन की, तलवार की धार पर सुप्रीम कोर्ट
याचिकाकर्ता की ओर से वकील दिनेश द्विवेदी ने अदालत के सामने कहा कि सवाल यह है कि सरकार के पास पेगासस जैसा सॉफ्टवेयर है या नहीं, और अगर है तो क्या वो इसका इस्तेमाल कर सकती है? इस पर कोर्ट की टिप्पणी थी—स्पाइवेयर रखना अपराध नहीं, यह देखा जाना चाहिए कि उसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हो रहा है।

रिपोर्ट सड़कों पर नहीं, अदालत के भीतर
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट को ‘सड़कों पर चर्चा’ का विषय नहीं बनने दिया जाएगा। अदालत जांच कर रही है कि किस हद तक रिपोर्ट को संबंधित व्यक्तियों के साथ साझा किया जा सकता है। जिसकी अगली सुनवाई की तारीख 30 जुलाई तय की गई है।

क्या है पेगासस मामला?
2021 में एक विस्फोटक खुलासा हुआ था कि इज़राइली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए भारत में पत्रकारों, राजनेताओं और कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन की जासूसी की गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच के लिए एक तकनीकी समिति गठित की, जिसकी निगरानी कर रहे हैं पूर्व न्यायाधीश आर वी रवींद्रन और साथ में हैं साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और पूर्व आईपीएस अधिकारी,