मध्य प्रदेश में यु तो कई मशहूर किले है। आज हम मध्यप्रदेश के एक ऐसे किले के बारे में बात करेंगे जो न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पुरे विश्व में प्रशिद्ध है |इस किले से जुडी कई कहानियां लोक चर्चित है।आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किले की जो न सिर्फ अपने विशाल आकार और आर्किटेक्ट के लिए मशहूर है ,बल्कि इससे जुड़ी रहस्यमयी कहानियां भी लोगों को लुभाती हैं। कहा जाता है कि आज भी महाभारत के पात्र अश्वत्थामा इस किले में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।आपको बता दे की असीरगढ़ किला 250 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। ये सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ है,ये किला बुरहानपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है। ये इंदौर-इच्छापुर हाईवे पर स्थित है।
असीरगढ़ किले का इतिहास
इतिहासकारों की माने तो , इस किले को रामायण काल यानि 14वीं शताब्दी में बनवाया था। किले के नाम के पीछे भी एक कहानी है ।असीरगढ़ कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। रहवासियों का कहना है कि इस स्थान पर एक बार आशा अहीर नामक व्यक्ति आया था, जो अपने पशुओं की सुरक्षा के लिए ईंट, मिट्टी और पत्थरों से मजबूत दीवारें बनवाने लगा। जिसके बाद यह समय के साथ असीरगढ़ का किला बन गया।वर्षों तक यह किला चौहान वंश के शासकों के अधीन रहा और कई युद्धों और राजवंशों का गवाह बना।
महाभारत और अश्वत्थामा से जुड़ी लोककथाएं
असीरगढ़ किले का संबंध महाभारत के एक प्रमुख पात्र अश्वत्थामा से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण ने युगों-युगों तक भटकने का श्राप दिया था। लोक मान्यताओं के अनुसार, अश्वत्थामा आज भी अमावस्या और पूर्णिमा की रात को किले में स्थित गुप्तेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। हालांकि, इस मान्यता की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
किले की विशेषताएं
असीरगढ़ किला तीन हिस्सों में बटा हुआ है ऊपरी हिस्से को असीरगढ़ कहते है । बीच का हिस्सा कामरगढ़ कहलाता है। निचले हिस्सा मलयगढ़ कहलाता है।करीब 60 एकड़ में फैले इस विशाल किले में पांच बड़े तालाब मौजूद हैं जिनकी सब से खास बात ये है कि जो साल भर कभी सूखते नहीं हैं। यहां, गंगा और यमुना कुंड नामक दो कुंड भी हैं। लोगा का कहना है कि, युद्धों के दौरान मारे गए दुश्मनों को इन कुंडों में डाल दिया जाता था।किले में दो संस्कृति का मेल देखा जा सकता है एक ओर मंदिर और दूसरी ओर मस्जिद भी दिखाई देती है, जो यहां की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं।किले के चारों ओर गहरी खाइयां और घने पेड़ किले के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं।
अकबर और असीरगढ़ किला
असीरगढ़ किले की इतनी प्रसिद्धि बढ़ गई थी। कि मुगल सम्राट अकबर तक इसकी चर्चा पहुंची। अकबर ने 1600 के दशक में इस किले पर कब्जा करने का निर्णय लिया। उस समय किला बहादुरशाह फारूखी के साम्राज्य में था, जिन्होंने किले की सुरक्षा और बड़ा दी थी । किले की दीवारों की वजह से अकबर इसे भेदने में नाकाम रहा और 6 महीने तक बाहर रहकर रणनीति बनता रहा।आखिर में दोखाधड़ी से अकबर ने किला हतियाँ लिया।17 जनवरी 1601 को अकबर ने असीरगढ़ किले पर अधिकार कर लिया।