आतंकवाद का स्थाई रुप से अंत करना जरूरी,यह लोकतंत्र पर है एक प्रश्नवाचक चिन्ह

पहलगाम आतंकी हमला होना भारतीय सुरक्षा में बहुत बड़ी चूक है। आखिर ये समझ में नहीं आता है कि जो सुरक्षा एजेंसियां व इंटेलिजेंस ब्यूरो आतंकवादी हमला होने के बाद मुस्तैद हो जाते है वो हमला हुआ तब क्या कर रहे थे???

आतंकवादी विमान से यात्रा करके तो अचानक पहलगाम (मिनी स्विट्जरलैंड) वाले टूरिस्ट प्लेस या काश्मीर की धरती‌ पर आए नहीं। जब भारत सरकार को , जम्मू कश्मीर के स्थानीय प्रशासन, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों, सैन्य विभाग व पुलिसिया प्रशासन को यह भलीभांति जानकारी है कि संपूर्ण जम्मू कश्मीर का हिस्सा संवेदनशील परिक्षेत्र है, जहां प्रत्येक पल पैनी नजर व चौकसी रखना जरूरी है वहां इतनी बड़ी चूक करना व ढील देना क्या बेमानी नहीं है। ये एकीकृत रुप में सरकारी तंत्र की विफलता व सुरक्षा प्रशासन द्वारा की गई घोर लापरवाही है। एक तरफ सरकारी नुमाइंदे चिल्ला चिल्ला कह रहे हैं कि ये कर देंगे वो कर देंगे वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में बैठे हुए आका ढोल बजा बजाकर कह रहे हैं कि हम भी ऐसा कर देंगे वैसा कर देंगें लेकिन यह कहना उपयुक्त होगा कि समय रहते आतंकवाद का स्थाई रुप से अंत करना जरूरी है। यह केन्द्र व राज्यों की सरकारों का एकीकृत प्रयास होगा कि आगे आकर इस हेतु अहम् भूमिका निभाए। काश्मीर में पलने वाले भाड़े के आतंकियों को चिन्हित कर उनका सफाया होना भी जरूरी है। देश में बैठे विधर्मी मानसिकता के नेताओ व उनके शागिर्दों व अन्य सरकारी राशन पर पलने वाली खरपतवारों को समूल रूप से नष्ट किया जाना भी महत्वपूर्ण कदम होगा। आखिर यह भी सोचना होगा कि काश्मीर में रहने वाले अल्पायु के या नौजवानों को किस तरह पाकिस्तानी आकाओं द्वारा ब्रेनवाश कर व धन के बल पर प्रलोभित कर आतंक के दल-दल में धंसाया जा रहा है ? कितने दशकों से आतंक का यह दंश हम झेल रहे है। इसके सायें में हम घुट घुट कर जी रहे हैं। किस प्रकार निर्दोष हिन्दुओं को सरेआम मारा जा रहा है यह लोकतंत्र पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह है। यह मानवता को कलंकित करने वाला घृणित कृत्य है, जिसकी जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। नेहरू व जिन्ना की हठधर्मिता वाली नीति ने किस तरह भारतीय एकता व अखंडता को नष्ट भ्रष्ट करने का कुत्सित कार्य किया है चाहे उस समय की परिस्थितियां कैसी भी रही हो?

किस तरह पश्चिम बंगाल में दीदी के राजनीतिक संरक्षण में आतंकवाद पनप रहा है। किस तरह मणिपुर में दो समुदायों के मध्य तांडव हो रहा है । क्षेत्र विशेष में महिला हिंसा बढ़ रही है । ये किसी से छुपा हुआ नहीं है। किस तरह तुष्टिकरण के नाम पर निर्दोष हिन्दुओं का पलायन व कत्लेआम किया जा रहा है। आखिर इस्लामिक आतंक का सबसे आसान टारगेट हिन्दू ही क्यों है ? चाहे मुर्शिदाबाद हो या जम्मू-कश्मीर के विभिन्न हिस्से – ये सब एक सोचा समझा षड्यंत्र है। संपूर्ण भारत में हिन्दुओं को दहशत फैलाकर कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जातिगत मानसिकता से ग्रस्त राजनेता, आरक्षण की वकालत करने वाले अयोग्य राजनेता व  धर्म, पंथ, वर्ग, समुदाय व भाषा के आधार पर अलग थलग मानने वाले नेता भारत को बांटने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। जब तक हिन्दू विभिन्न जातियों में बंटा हुआ रहेगा और अवसरवादी राजनेता वोटबैंक की राजनीति करते रहेंगे तब तक हिन्दू संगठित नहीं हो पाएगा। वर्तमान में अधम श्रेणी के कुछ राजनेता जो लोकतंत्र की सबसे बड़ी महापंचायत संसद में खड़े होकर तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए एक  वर्ग विशेष को व धर्म विशेष के लोगों को खुश करने के लिए बाबर, औरंगजेब व अकबर जैसे म्लेच्छ विदेशी आक्रांताओं का गुणगान कर रहे हैं उनको अपना आइडियल बता रहे हैं। संसद की गरिमा को तार तार करते हुए वर्ग विशेष में अलगाववाद के बीज बोए जा रहे है । यही कारण है कि भरी संसद में बाबरवादी सोच के के नेताओं द्वारा महाराणा सांगा जैसे शूरवीर को गद्दार बताया जाता है और देशभक्ति की डींग हांकने वाले नामर्द सांसद चुपचाप ये सब सुनते हैं। ये इस प्रक्रार के आतंकी हमले लंबे समय तक की सरकारी चुप्पी, अलगाववादी व राष्ट्र की एकता व अखंडता को खंडित करने वाले टट्टू छाप नेताओं की तुच्छ मानसिकता के परिणामस्वरूप भी होते है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ये दोगले व दोमुंहे नेता  आंतरिक रुप से देश को खोखला करने का प्रयास करते है और इनकी पनाहों में कट्टरपंथी विषैले लोग पनपते है जिसकी वजह से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। देश के अन्दर बैठे हुए ऐसे गद्दारों व विधर्मी मानसिकता से ग्रस्त लोगों को सबक सिखाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि आतंकवाद को समूल नष्ट किया जाए और घर में घुसकर पाकिस्तानी आकाओं व उनके प्रश्रय में पनपने वाली खरपतवारों को सबक सिखाया जाए । महज थोथी भाषणबाजी व हवाई बातें करने से इस प्रकार की कायराना करतूतों पर लगाम लगाना असंभव कार्य होगा। नेताओं का सेकुलर गिरोह व गोद लिए मीडिया के कुछ लोग ये भी कहते हुए नजर आ ही जाते हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता लेकिन पहलगाम में धर्म पूछकर कट्टरपंथी आतंकियों द्वारा किए गए हमले से ये सिद्ध हो गया कि आतंकी का वास्तव में धर्म होता है। अब हमें पीओके लेने के लिए आर पार की लड़ाई हेतु भी तैयार होकर सिर पर केसरिया बाँधना होगा व समय रहते हुए पाकिस्तान व पाकिस्तान में बैठे आकाओं व जेहादी गद्दारों को सबक सिखाना होगा।

©️ डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया

( ये लेखक के निजी विचार है जो किसी धर्म, जाति, समुदाय व वर्ग से संबंधित नहीं है और न ही राजनीति से प्रेरित है)