सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मंत्री विजय शाह को फटकार, कहा- “मंत्री होकर ये कैसी भाषा”

सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मंत्री विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा है कि मंत्री होकर ये कैसी भाषा…’, का प्रयोग किया गया है।  इसके साथ ही  एमपी हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार से नाराजगी जताई है। मध्य प्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह के खिलाफ कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित बयान देने के मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके बाद मंत्री द्वारा इस एफआईआर को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी, जिस पर वहां से भी उन्हें फटकार मिली है। उधर आज सुनवाई में एमपी हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश का विधिवत पालन नहीं करने पर नाराजगी जताई है।

 सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली राहत
प्रदेश से दिल्ली तक सियासी गलियारों में हलचल मचाने वाले भाजपा नेता और मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री कुंवर विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँचे विजय शाह को वहाँ भी राहत नहीं मिल सकी। कोर्ट ने न सिर्फ उनकी याचिका पर तत्काल कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही फटकार लगाई है।

संवैधानिक पद पर बैठ व्यक्ति का जुबान पर नियंत्रण नहीं
सप्रीम कोर्ट के  न्यायाधीश (CJI) ने सख्त लहजे में कहा है कि “देश जिस संवेदनशील दौर से गुजर रहा है, ऐसे में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ही अपनी ज़ुबान पर नियंत्रण नहीं है जबकि वह जिम्मेदार पद पर है उन्हें बोलने से पहले सोचन चाहिए। बता दें कि  वरिष्ठ अधिवक्ता विभा मखीजा ने कोर्ट में दलील दी कि शाह के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और उनके मुवक्किल को इसका खेद है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास पश्चाताप की रिकॉर्डिंग भी की है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ। और सीजेआय ने कहा कि “जब आप मंत्री हों, तो आपकी हर बात नीति की तरह देखी जाती है। आपको जिम्मेदारी के साथ बोलना होगा।

हाईकोर्ट ही देंगी अंतरिम राहत
हालांकि कोर्ट ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करने की सहमति जताई है, लेकिन तब तक कोई राहत नहीं दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के पास अधिकार था, और अगर कोई अंतरिम राहत चाहिए तो वहीं आवेदन करें। वहीं, मखीजा ने यह भी दलील दी कि मामला आज ही हाईकोर्ट में सूचीबद्ध है, और अनुरोध किया कि तब तक कोई कार्रवाई न हो। सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट को इसकी सूचना दी जा सकती है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कर दिया है कि संवैधानिक पद जिम्मेदारी की मांग करता है, न कि बेतुके बयानों की आज़ादी।