जाति वर्ग विशेष के लोगो को पूजारी पद पर नियुक्ति से सम्वधित राज्य सरकार के कानून को हाईकोर्ट में चुनौती

13 मई 2025 को जबलपुर हाईकोर्ट में मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (AJJAKS) द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें मध्य प्रदेश शासन के अध्यात्म विभाग द्वारा जारी दिनांक 04.10.2018 एवं 04.02.2019 की नीतियों तथा “मध्य प्रदेश विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019” की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।

याचिका का मुख्य आरोप है कि इन नीतियों के तहत राज्य नियंत्रित मंदिरों में केवल ब्राह्मण जाति के लोगों को पुजारी नियुक्त करने का प्रावधान है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 व 21 के विरुद्ध है।

राज्य द्वारा वेतनभोगी पुजारियों की नियुक्ति पर सवाल

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और पुष्पेंद्र शाह ने कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित कर, उन्हें राज्य नियंत्रित मंदिर घोषित किया है। इसके तहत केवल एक जाति (ब्राह्मण) को ही पुजारी नियुक्त करने और उन्हें राज्य कोष से वेतन देने की नीति अपनाई गई है, जो पूरी तरह असंवैधानिक है।

समानता के अधिकार की मांग

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि हिन्दू धर्म में ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग भी सम्मिलित हैं, फिर भी केवल एक जाति को पुजारी बनने का विशेषाधिकार देना अनुचित और असंवैधानिक है। संविधान लागू होने के बाद भारत में सभी नागरिक समान हैं और छुआछूत व वर्ण व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है।

राज्य सरकार का पक्ष और हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभीजीत अवस्थी ने याचिका की वैधता पर प्रश्न उठाया कि अजाक्स एक कर्मचारी संगठन है, जिसे ऐसी याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं है। लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि जब राज्य सरकार मंदिरों में हस्तक्षेप करते हुए वेतनभोगी पुजारी नियुक्त कर रही है, तो यह विषय सार्वजनिक हित से जुड़ा है।

बी.पी. मंडल और रामजी महाजन आयोग का हवाला

याचिकाकर्ताओं ने बी.पी. मंडल आयोग और रामजी महाजन आयोग की रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताया कि हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ओबीसी वर्ग को “छूने योग्य शूद्र” तथा एससी/एसटी को “अस्पृश्य शूद्र” कहा गया है। परंतु संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 17 लागू होने के बाद यह सामाजिक विभाजन अब मान्य नहीं रहा।

राजकोष से व्यय का मामला: आरक्षण अनिवार्य

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि जब किसी भी पद पर नियुक्ति हेतु राज्य कोष से वेतन दिया जा रहा हो, तो वहां आरक्षण की व्यवस्था लागू होनी चाहिए। अनुच्छेद 226 और 32 के तहत ऐसी असमानता को चुनौती दी जा सकती है।

हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

इन सभी तर्कों को सुनने के बाद मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने याचिका को विचारार्थ स्वीकार कर लिया है। साथ ही राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव (GAD), सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व विभाग तथा लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।