MP में अतिथि विद्वानों पर संकट के बादल, सेवाएं खत्म होने की आशंका, संघर्ष मोर्चा समिति ने जताई नाराजगी

मध्यप्रदेश के महाविद्यालयों में वर्षों से शिक्षण सेवाएं दे रहे हजारों अतिथि विद्वानों की सेवाएं अब खतरे में नजर आ रही हैं। राज्य सरकार की नई नियुक्ति प्रक्रिया के चलते इन विद्वानों की जगह अब नियमित प्रोफेसरों की नियुक्ति की जा रही है, जिससे अतिथि विद्वानों को दोबारा मौका मिलने की संभावना बेहद कम हो गई है। इस स्थिति से नाराज़ अतिथि विद्वानों ने जून महीने में आंदोलन की चेतावनी दी है।

वर्षों की सेवा, फिर भी नहीं मिला स्थायित्व

अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने बताया कि इन विद्वानों ने 20 से 25 वर्षों तक प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में सेवाएं दी हैं। इनमें से कई के पास पीएचडी, नेट और स्लेट जैसी उच्च योग्यताएं हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें स्थायी नियुक्ति नहीं मिल सकी। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान आयोजित अतिथि विद्वान महापंचायत में इनसे कई वादे किए गए थे, लेकिन वे अभी तक अधूरे हैं।

चुनावी वादे अभी भी अधूरे

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी दौर में घोषणा की थी कि अतिथि विद्वानों को ₹1500 प्रतिदिन मानदेय की बजाय ₹50,000 मासिक फिक्स वेतन दिया जाएगा। साथ ही उन्हें शासकीय सेवकों जैसी सुविधाएं देने का वादा भी किया गया था। इसके अतिरिक्त, रिक्त पदों पर अतिथि विद्वानों को प्राथमिकता से नियुक्त करने की बात कही गई थी। लेकिन ये वादे अब सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं।

नई नियुक्तियों से छंटनी की आशंका

सरकार द्वारा कॉलेजों में पीएससी (मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग) के माध्यम से नए प्रोफेसरों की नियुक्ति की जा रही है। इसके चलते जो अतिथि विद्वान वर्षों से कार्यरत हैं, उन्हें सेवा से हटाया जा रहा है और पद भर जाने के बाद दोबारा नियुक्ति की कोई संभावना नहीं बचती। अतिथि विद्वानों का मानना है कि यह एक तरह की छंटनी है, जिससे उनका रोजगार पूरी तरह खतरे में पड़ गया है।

जून में सड़कों पर उतरेंगे अतिथि विद्वान

सरकार की बेरुखी और वादाखिलाफी से आक्रोशित अतिथि विद्वानों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द समाधान नहीं निकला तो वे जून में व्यापक आंदोलन करेंगे। उनका कहना है कि वे अब सिर्फ आश्वासनों से संतुष्ट नहीं होंगे, बल्कि न्यायपूर्ण स्थायित्व की मांग को लेकर सड़कों पर उतरेंगे।