खामोश कश्मीर की वादियों में अब गूंज रही रोजी-रोटी की तलाश, बेरोज़गारी, के दौर से गुजर रही वादियां  

कश्मीर जो कभी अपनी सुंदरता और सुकून के साथ खामोश वादियों के लिए मशहूर था। जब से कश्मीर की वादियां गोलियों की गुंज के गुंजी है तब से यहां के स्थानिय नागरिक रोजगार की तलाश में भटक रहे है। पहलगाम की घटना के बाद देश-भर से कश्मीर की ओर रूख करने वाले पयर्टकों ने कश्मीर को यात्रा को रद्द कर दिया है। इसके कारण अब कश्मीर एक नए दौर से गुजर रहा है। यहाँ की हवाओं में अब सिर्फ़ फूलों की ख़ुशबू नहीं, बल्कि रोज़ी-रोटी की तलाश में भटकते लोगों की सिसकियाँ भी घुल चुकी हैं। घाटी के शांत माहौल में अब बेरोज़गारी, आर्थिक अस्थिरता और बदलते सामाजिक ढांचे की आहटें सुनाई देने लगी हैं।

धारा 370 हटने पर जागी थी आस

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव देखने को मिले। यहां पर  विकास के नए रास्ते खुलने की उम्मीदें जगीं, लेकिन ज़मीनी हकीकत आज भी संघर्ष की कहानी कह रही है। युवा डिग्रियाँ लेकर घर में बैठने को मजबूर हैं, और स्थानीय व्यापार, खासकर पर्यटन, बार-बार की बंदिशों और अस्थिरता से प्रभावित हुआ है।

पर्यटकों की संख्या घटने से छाया रोजगार का संकट
श्रीनगर के बटमालू क्षेत्र में रहने वाले लोगों का कहना है कि पहले टूरिस्ट आते थे,  दुकानें चलती थी। अब तो हालात ऐसे हैं कि घर चलाना ही मुश्किल हो गया है। महिला हस्तशिल्पयों का कहना है कि कश्मीरी शॉल और कढ़ाई का काम विदेशों तक जाता था, पर अब ऑर्डर आना लगभग बंद हो गए है।

सरकारी प्रयास और चुनौतियाँ
सरकार की ओर से ‘प्रधानमंत्री रोजगार योजना’, ‘हिमायत’ और ‘मिशन यूथ’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को स्वरोज़गार और स्किल डेवलपमेंट की दिशा में प्रेरित करना है। हालांकि, इन योजनाओं का प्रभाव सीमित नजर आ रहा है, और ज़्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों तक इनकी पहुँच नहीं बन पाई है।
आतंक को फैलाने वाले तो अपने हित के लिए देश को दांव पर लगा देते है। लेकिन उनके द्वारा किए गए हमलों का असर पूरे प्रदेश वासियो को भुगतना पड़ता है। इसी का नतीजा है कि आज भी कश्मीर में पर्यटन के अलावा कुछ भी नहीं है। रोजगार के साधन सीमित है। कश्मीर के लोगों ने दो देशो की लड़ाई का खमियाजा भुगतते हुए बहुत कुछ दांव पर लगा दिया है।

शांति की उम्मीद, बेरोजगारी की टीस
श्रीनगर के लाल चौक पर दुकान वाले व्यापारी कहते है कि पहलगाम हमले ने इस सीजन को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। अमरनाथ यात्रा से थोड़ी उम्मीद बची है, लेकिन फिलहाल ग्राहक नहीं हैं, सिर्फ ताले खुले हैं। पर्यटन पर निर्भर सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी पर संकट है। अब समय है कि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर उस कश्मीर को फिर से जिंदा करें, जिसे कभी “धरती का स्वर्ग” कहा जाता था।