मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित एक ऐसा किला जो बुंदेलखंड का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। यह अद्भुत किला केन नदी के पूर्व दिशा में बसा हुआ है , यह किला एक पर्वत पर स्थित है। इस किले की विशेषता इसका दुर्गम और अजेय स्वरूप है। हम बात कर रहे है अजयगढ़ किले कि जिसका अर्थ है ऐसा किला ‘जिसे जीता न जा सके’।
भौगोलिक संरचना
अजयगढ़ किला पन्ना से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह किला केन, बाघिन और बेरमा जैसी नदियों से घिरे हुआ है। यह किला विंध्य पर्वतमाला के मध्य में स्थित है और इसके चारों ओर विशाल पत्थर रखे हुए है ।साथ ही इस किला का निर्माण एक यू (U) आकार की खाई पर किया गया है।
इस किले के भीतर जाने के लिए सात भूल-भुलैया जैसे दरवाजो को पार करना पड़ता है। इस किले की चढ़ाई बहुत कठिन है, कहा जाता है की इस किले को एक रणनीतिक प्रणाली के तहत बनाया गया था। इसके ऊपरी दरवाजे से पत्थर गिराकर शत्रु को रोका जा सकता है। किला लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह किला त्रिभुजाकार में बना हुआ है।
इतिहास और अजयगढ़ किला
इस किले के निर्माता के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है, परंतु लोक कथाओ की माने तो इसका निर्माण अजयपाल नामक एक शासक ने करवाया था। वही कुछ इतिहासकारो के अनुसार इसे चंदेल के राजा जयशक्ति द्वारा 830 ईस्वी के आस-पास बनवाया गया था ।ये भी कहा जाता है की पहले इस किले का नाम ‘जय दुर्ग’ था।
अजयगढ़ किला चंदेलों का प्रमुख गढ़ था और समय-समय पर विभिन्न राजवंशों की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा। चंदेलों के बाद से इस क्षेत्र पर बुंदेला राजवंश का प्रभाव बढ़ा। महाराजा छत्रसाल ने इस इलाके को अपने अधीन कर पन्ना को राजधानी बनाया। बाद में मराठों और नवाब अलीबहादुर ने भी इस पर अधिकार किया।
स्थापत्य और कला
अजयगढ़ किले कि परकोटा दीवारे और चट्टानें पर जैन एवं हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। किले में रंगमहल भी है जिसमे , खजुराहो की कला की झलकदिखाई देती है । महल में गंगा कुंड और यमुना कुंड नमक दो कुंड मौजूद है ,जिसमे 12 महीने जल रहता हैं।
धार्मिक स्थल
किले में भूतेश्वर नमक शिव मंदिर भी मौजूद है। यह मंदिर पहाड़ को काटकर बनाया गया है, जिसमें शिवलिंग पर चट्टानों से जल लगातार गिरता रहता है। मंदिर से एक सुरंग रास्ता सीधे रंगमहल तक जाता है।