झोलाछाप का खौफनाक साम्राज्य- जब डॉक्टर “किड़नी” निकाल कर “मगमच्छ को खिला” देता था शव

देश में एक बार फिर किड़नी कांड सुर्खीयों में है। यह वहीं मामला है जब अलीगढ़ के देवेंद्र शर्मा उर्फ ‘डॉक्टर डेथ’  को दिल्ली पुलिस ने दौसा के आश्रम से पुजारी के वेश में गिरफ्तार किया। उस पर 100 से अधिक हत्याएं और 125 अवैध किडनी ट्रांसप्लांट के आरोप हैं। वह 2023 में पैरोल पर बाहर आकर फरार हो गया था। देवेंद्र शर्मा ने 1984 में बिहार से बीएएमएस (आयुर्वेदिक डॉक्टर) की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उसने राजस्थान के बांदीकुई में ‘जनता क्लीनिक’ नाम से एक क्लिनिक खोला। वह नहीं चला तो उसने कई खेल खेलना शूरू कर दिए। ये खतरनानक खेल साल 2007-08 में सामने आया। जिसने पूरे देश को हिला दिया। गुरुग्राम पुलिस के पास मुरादाबाद के एक युवक की शिकायत आई। उसकी किडनी धोखे से निकाल ली गई थी। ये एक मामूली केस नहीं था, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट की परतें खुलने वाली थीं। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पुलिस एक ऐसे नाम तक पहुंची जिसने मेडिकल पेशे को शर्मसार कर दिया—डॉ. अमित कुमार, वही झोलाछाप डॉक्टर जिसने अपने लालच के लिए इंसानियत को कुचल दिया।

बिना संसाधनों के निकाल देता था किड़नी
डॉ. अमित कोई आम ठग नहीं था। वह अपने हाथों से सर्जरी करता था जिसके पास ना कोई मेडिकल डिग्री थी, ना कोई अनुभव। फिर भी अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, सऊदी अरब और ग्रीस जैसे देशों से आए अमीर ग्राहकों को किडनी ट्रांसप्लांट कर देता था। वह किड़नी लेने के लिए भारत के गरीब और मजबूर लोगों को निशाना बनाना था ।

इसी के साथ जुड़ा देवेन्द्र शर्मा
डॉ. अमित के साथ इस रैकेट का एक और कुख्यात नाम जुड़ा जिसका नाम था डॉ. देवेंद्र शर्मा, जिसे ‘डॉक्टर डेथ’ कहा जाता है। लेकिन पुलिस सूत्रों की मानें तो क्रूरता में अमित शर्मा देवेंद्र को भी पीछे छोड़ चुका था। शिकायत मिलते ही गुरुग्राम पुलिस ने तेजी से कार्रवाई की। जैसे ही इस किडनी रैकेट की खबर फैली, डॉ. अमित और उसका भाई जीवन कुमार अपना नकली ऑपरेशन थिएटर बंद कर फरार हो गए। लेकिन 7 फरवरी 2008 को दोनो को नेपाल से गिरफ्तार कर लिया।

आयुर्वेद से बन गए किड़नी सर्जन
पुलिस ने अमित से पूछताछ शुरू की तो  उसने काले कारनामों की पूरी किताब खोल दी। उसकी निशानदेही पर हरियाणा, यूपी और दिल्ली में छापेमारी हुई और पाँच अन्य झोलाछाप डॉक्टरों को पकड़ा गया। इनमें से सभी ने सिर्फ आयुर्वेदिक की पढ़ाई की थी। सर्जरी का ‘स’ भी नहीं जानते थे।

गेस्ट हाउस को बना दिया था अस्पताल
किड़नी सौदागरों ने फरीदाबाद के एक गेस्ट हाउस को अस्पताल में बदल दिया था, जिसे बाद में पुलिस ने सील कर दिया। जांच में सामने आया कि यह गिरोह पिछले सात सालों से सक्रिय था। ये लोग गरीब और बेरोजगार युवाओं को नौकरी या सरकारी योजना का झांसा देकर बुलाते, और धोखे से उनकी किडनी निकाल लेते। बदले में उन्हें 25 से 30 हजार रुपये थमाकर चुप कराने की कोशिश करते थे। लेकिन असली खेल इसके बाद शुरू होता था। इन किडनियों को 40 से 50 लाख रुपये में विदेशियों को बेचा जाता था। डॉ. अमित ने खुद सीबीआई को बताया कि उसने 750 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट किए, और हर ट्रांसप्लांट से 30 से 35 लाख रुपये की कमाई हुई।

सीरियल किलर का खूनी खेल
2002 से 2004 के बीच देवेंद्र ने अपने गैंग के साथ मिलकर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में 100 से अधिक टैक्सी और ट्रक चालकों की निर्मम हत्या की. वह फर्जी सवारी बनकर ड्राइवरों को बुलाता, फिर गला घोंटकर उनकी हत्या करता था. शवों को वह कासगंज की हजारा नहर में फेंक देता, जहां मगरमच्छ उन्हें खा जाते और सबूत मिट जाते थे. चोरी की गई गाड़ियों को वह 20-25 हजार रुपये में बेच देता था. देवेंद्र ने खुद कबूल किया कि उसने 50 हत्याओं के बाद गिनती करना छोड़ दी थी. इतना ही नहीं, कई मामलों में किडनी निकालने के बाद मरीजों का पेट ठीक से नहीं सिला गया, जिससे कुछ कई लोगों की मौत हो जाती थी।

2013 में हुई थी मुख्य आरोपी को सजा
आखिरकार, सीबीआई की जांच और पुख्ता सबूतों के बाद साल 2013 में गुरुग्राम की अदालत ने डॉ. अमित और उसके साथियों को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने उसे ‘झोलाछाप’ करार दिया—और शायद यह शब्द भी उसकी क्रूरता के सामने बहुत छोटा पड़ जाए।

पैरोल पर छूटकर हो गया था फरार

2020 में देवेंद्र को 20 दिन की पैरोल मिली, लेकिन वह पैरोल खत्म होने के बाद सात महीने तक फरार रहा. फिर 2023 में उसे दो महीने की पैरोल पर दोबारा छोड़ा गया, लेकिन वह इस बार भी जेल नहीं लौटा. वह दौसा जिले के एक आश्रम में पुजारी बनकर छिप गया और साधु का जीवन जीने लगा.जिसे पुलिस ने धरदबोचा