डियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (आईएसजी) के इंदौर चैप्टर और मेदांता हॉस्पिटल द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय वार्षिक बैठक 2025 का आज समापन हो गया। बैठक के दूसरे और अंतिम दिन, पेट और पाचन तंत्र से संबंधित रोगों के विशेषज्ञों ने नवीनतम एंडोस्कोपिक तकनीकों और चिकित्सा के क्षेत्र में हुए आधुनिक विकास पर गहन चर्चा की।
इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, इंदौर सिटी चैप्टर के अध्यक्ष डॉ. हरि प्रसाद यादव ने बताया कि बैठक के दूसरे दिन कई महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए। डॉ अजय जैन ने शराब के अत्यधिक सेवन से होने वाली जानलेवा मेडिकल इमरजेंसी के इलाज के नवीनतम और प्रमाणित दिशा- निर्देशों पर बात की। उन्होंने मरीज की स्थिति की गंभीरता जानने के लिए स्कोरिंग सिस्टम के उपयोग किये जाने पर बात की, दवाओं के प्रयोग विशेष कर स्टेरॉयड्स के चुनाव पर बात की और लिवर ट्रांसप्लांट के आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
कॉमन बाइल डक्ट यानि पित्त की मुख्य नली में फंसी हुई पथरी, जिसे स्टैंडर्ड तरीके से निकालना मुश्किल या असंभव है, इसके प्रबंधन पर डॉ एम टी नूर ने बात की, साथ ही इन चुनौतीपूर्ण पथरियों को निकालने के लिए किन उन्नत तकनीकों और उपकरणों का उपयोग कब और कैसे किया जाए ताकि मरीज़ को बड़े ऑपरेशन से बचाया जा सके।
एसिड रिफ्लक्स की सबसे आम और गंभीर बीमारी जी ई आर डी के इलाज के मौजूदा और भविष्य के तरीकों पर डॉ अमित अग्रवाल ने बात की। उन्होंने बताया कि यह सिर्फ सीने में जलन नहीं है, बल्कि एक पुरानी स्थिति है जहाँ पेट का एसिड बार-बार भोजन नली में वापस आता है, जिससे भोजन नली को नुकसान पहुँचता है। डॉ अग्रवाल ने पेट में एसिड बनने से रोकने वाली पी पी आई मेडिसन से आगे जाकर किस मरीज़ के लिए कौन सा इलाज सबसे बेहतर है इस बात पर एक व्यक्तिगत और आधुनिक उपचार रणनीति बनाने पर ज़ोर दिया।
डॉ. अमित सिंह बरफा ने अपने प्रेज़न्टैशन में मरीजों की आंतों की कठिन और ज़िद्दी बीमारी अलसरेटिव कोलाइटिस के कारण लिवर में चर्बी जमने जैसी जटिल स्थिति और फैटी लिवर के प्रबंधन पर बात की।
डॉ. भगवान सिंह ठाकुर ने बिना ऑपरेशन या चीर-फाड़ के, मुंह के रास्ते (एंडोस्कोप) डालकर पैन्क्रियाज की स्थायी बीमारी के कारण होने वाली समस्याओं जैसे दर्द, पथरी और नली में रुकावट का इलाज करने के बारे में बात की। डॉ बरफा ने बताया कि पैंक्रियाज की नली में फंसी पथरियों को निकालना, स्टेंट डालना जिस से दर्द और रुकावट को कम हो, यह जरूरी है।
डॉ अश्मीत चौधरी ने दवाइयों या इंजेक्शन का उपयोग करके वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से वजन कम करने की प्रक्रिया में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट की भूमिका पर बात की। डॉ चौधरी ने बताया वजन काम करने में सिर्फ दवाई खाने की बात नहीं, बल्कि एक समग्र, चिकित्सकीय रूप से नियंत्रित वेट मैनेजमेंट प्रोग्राम शामिल है। आज हमारे पास वैज्ञानिक रूप से सिद्ध दवाएं हैं जो वज़न घटाने में मदद कर सकती हैं, लेकिन ये केवल उन मरीज़ों के लिए हैं जिन्हें इसकी चिकित्सकीय ज़रूरत है। इन दवाओं का उपयोग एक विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में, जीवनशैली में बदलाव के साथ ही किया जाना चाहिए।
डॉ. शुभम मेहता ने बताया कि अकैलेज़िया यह भोजन नली की एक गंभीर गतिशीलता की बीमारी है जिसमें नली की मांसपेशियों का संकुचन खत्म हो जाता है, जिससे वह भोजन को नीचे नहीं धकेल पाती और निचला वाल्व ठीक से खुलता नहीं है, नतीजतन, भोजन और तरल पदार्थ भोजन नली में ही अटक जाते हैं, जिससे मरीज़ को निगलने में अत्यधिक कठिनाई, छाती में दर्द, और बिना पचे भोजन का वापस मुंह में आने जैसी समस्याएं होती हैं। इसके मरीज़ के लिए इलाज के ऑप्शन पर बात की
डॉ एच पी यादव ने केस स्टडीज़ के माध्यम से भोजन नली, पेट/आमाशय, और छोटी आंत के शुरुआती हिस्से में से किसी एक में खून के बहने पर किये जाने वाले मैनेजमेंट पर बात की। उन्होंने बताया कि यह एक गंभीर और जानलेवा इमरजेंसी है, जिसके लक्षण के रूप में मरीज को अचानक और तेजी से खून की उल्टी और काला और चिपचिपा मल होने लगता है। ऐसी स्थिति में तत्काल एंडोस्कोपी करके रक्तस्राव के स्रोत का पता लगाना और उसे रोकना जरूरी होता है।
डॉ रवि राठी ने बताया कि अल्सरेटिव मरीज़ को स्टेरॉयड से बचाकर बायोलॉजिक्स या स्मॉल मॉलिक्यूल्स जैसी आधुनिक और सुरक्षित दवाओं से कैसे ठीक किया जा सकता है, ताकि बीमारी लंबे समय तक शांत रहे और मरीज़ एक सामान्य जीवन जी सके।
डॉ. रवींद्र काले ने बताया कि ‘वैरिसियल बलीड’ में लिवर की गंभीर बीमारी के कारण भोजन नली की नसों के फटने से खून बहने लगता है, जिसके इलाज के लिए एक इमरजेंसी प्रक्रिया करनी होती है जिसमें मरीज़ को निगरानी में रखकर, ब्लीडिंग रोकी जाती है और भविष्य में इसे दोबारा होने से रोकने के उपाय किए जाते हैं।
डॉ अतुल शेंडे ने भारत में एच. पाइलोरी बैक्टीरिया द्वारा होने वाली समस्याओं का इलाज करते समय, दवाओं के बेअसर होने की सबसे बड़ी चुनौती को ध्यान में रखते हुए एक असरदार और व्यावहारिक रणनीति बनाने के बारे में बात की। इसमें मरीज़ के लिए सही जांच चुनना, सही दवाओं का कॉम्बिनेशन देना और यह पक्का करना शामिल है कि इलाज के बाद बैक्टीरिया पूरी तरह से खत्म हो गया है।
आई एस जी, इंदौर चैप्टर के अध्यक्ष डॉ एच पी यादव और इस दो दिवसीय मीटिंग के ऑर्गनाइज़िंग सेक्रेटरी डॉ अरुण सिंह भदौरिया ने इस सफल आयोजन पर सभी का धन्यवाद किया। इस बैठक ने शहर के डॉक्टरों को पेट और पाचन रोगों के इलाज में हो रहे आधुनिक बदलावों को समझने और उन्हें अपनाने का एक बेहतरीन मौका दिया।