Sawan 2025: 11 जुलाई से विश्व प्रसिद्ध अजगैवीनाथ धाम से कांवड़ यात्रा की शुरुआत होगी। शिवभक्तों की यह पवित्र यात्रा बाबा बैद्यनाथ धाम तक जाएगी, जहां बोल बम के जयकारों से वातावरण गूंजेगा। यह पूरा मार्ग केसरिया रंग में रंगा दिखाई देगा और श्रद्धालु 105 किलोमीटर का पैदल सफर तय करेंगे।
सावन में गूंजेगा शिव नाम, प्रशासन की तैयारियां शुरू
श्रावण माह के आगमन से पहले ही प्रशासनिक तैयारियां तेज़ हो चुकी हैं। अब तक जिला प्रशासन ने कई बैठकों के माध्यम से सुरक्षा, चिकित्सा और ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर रणनीति बनाई है। चारों ओर शिवमय वातावरण और अध्यात्म की धारा बहेगी।
इस बार सावन रहेगा 30 दिनों का, चार सोमवारी का विशेष योग
इस वर्ष सावन मास 30 दिनों का रहेगा, जिसकी शुरुआत शुक्रवार, 11 जुलाई से होगी और समापन शनिवार, 9 अगस्त को होगा। इस अंतिम दिन रक्षाबंधन और सावन पूर्णिमा का पर्व एक साथ मनाया जाएगा। इस बार श्रावण माह में चार पावन सोमवार पड़ेंगे, जो शिव आराधना के लिए अत्यंत शुभ माने जा रहे हैं।
चार सोमवारी के पावन अवसर पर शिव मंदिरों में उमड़ेगी श्रद्धा
इस सावन की सोमवारी तिथियां इस प्रकार हैं — पहली सोमवारी 14 जुलाई, दूसरी 21 जुलाई, तीसरी 28 जुलाई और चौथी सोमवारी 4 अगस्त को पड़ेगी। हर सोमवार को श्रद्धालु व्रत रखकर शिवलिंग का जलाभिषेक करेंगे और “हर हर महादेव” से मंदिरों का वातावरण गूंजेगा।
सावन में शिवभक्ति से खुलते हैं कृपा के द्वार
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस दौरान उपासना, व्रत और संयमित जीवन शैली अपनाने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है। विशेष रूप से सोमवार के दिन प्रदोष काल में शिव पूजन का विशेष महत्व होता है।
शिव आराधना से दूर होते हैं जीवन के तीनों ताप
सावन में शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाकर रुद्राभिषेक करना, शिव-पाठ करना, पार्थिव पूजन और लघु रुद्र जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। इससे दैहिक (शारीरिक), दैविक (प्राकृतिक) और भौतिक (सांसारिक) कष्टों का निवारण होता है और व्यक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है।
सावन में व्रत और पूजा का विशेष महत्व
भारतीय परंपरा में व्रत और उपासना को जीवन का एक आवश्यक हिस्सा माना गया है। ऋषि-मुनियों ने इन्हें केवल धार्मिक क्रियाएं नहीं बल्कि आत्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम बताया है। सावन में शिव की आराधना अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है, जिससे व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कल्याण प्राप्त करता है।
कांवड़ यात्रा: भक्ति और तप का संगम
श्रावण मास में लाखों कांवड़िए दूर-दूर से गंगाजल लाकर बाबा बैद्यनाथ को अर्पित करते हैं। यह केवल एक यात्रा नहीं बल्कि भक्ति, समर्पण और आत्मिक तपस्या की प्रतीक है। सावन में शिवभक्ति की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को जीवित रखती है, बल्कि समाज को एकजुट करने का कार्य भी करती है।