Sculpture of MP – मध्य प्रदेश में लिए यह खुशखबरी है कि प्रदेश की मुर्तिकला का अब विदेशों तक परचम लहरा रहा है। इसी कड़ी में अब एमपी की मुर्तिकला का धूम अमेरिका तक मचेगी। अमेरिका के टेक्सास शहर में जल्द ही ओशो की प्रतिमा लगने वाली है। यह प्रतिमा प्रदेश के रतलाम शहर में तैयार की जा रही है।
प्रदेश में मूर्तिकला का एक समृद्ध इतिहास है, जो प्राचीन काल से लेकर आज तक विभिन्न शैलियों और रूपों में विकसित हुआ है। एमपी अपनी विभिन्न मूर्तिकला शैलियों और कलाकृतियों के लिए जाना जाता है, जिनमें खजुराहो के मंदिर, गोंड कला, और विभिन्न प्रकार की टेराकोटा मूर्तियां शामिल हैं।
इसी के तहत रतलाम जिले के स्कल्पचर आर्टिस्ट कुलदीप त्रिवेदी एक प्रतिमा तैयार कर रहे है, यह मुर्ति प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य रजनीश (ओशो) की प्रतिमा है जिसे अमरीका के डेनिसन सिटी, टेक्सास में लगाया जाएगा।
मूर्तिकला का मुरीद बना अमेरिका
Sculpture of MP –अमरीका भी अब एमपी की मूर्तिकला का मुरीद बन गया है। जिसके चलते अमेरिका में एमपी में बनी मुर्तियों की मांग बनने लगी है। इसी कड़ी में रत्नपुरी की मूर्तिकला में समाए प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य रजनीश (ओशो) की प्रतिमा अमरीका के डेनिसन सिटी, टेक्सास में लगेगी। यहां बोधिसत्व ओशो केवल्य धाम ध्यान केंद्र में 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर रतलाम में बनी ओशो की मूर्ति लगेगी। मूर्तिकार कुलदीप त्रिवेदी ने इसे बनाकर तैयार किया है।
जीवंत है ओशो ऐसा होगा अहसास
Sculpture of MP- रतलाम के मूर्तिकार कुलदीप का कहना है कि जो मूर्ति वे तैयार कर रहे हैं। उसको देखने वाले को जीवंतता का अहसास होगा । जब मुर्ती तैयार होगी, तब ऐसा लगेगा मानो साक्षात ओशो हमारे बीच बैठे हैं। इसके साथ ही ओशो के भक्तों और साधकों को लगेगा कि वह स्वयं साक्षात ओशो से बातचीत कर रहे है। यहीं मूर्तिकार कुलदीप त्रिवेदी का कहना है कि, उज्जैन में बाबा महाकाल की सवारियों के लिए प्रतिमाएं बनाई थीं। टेक्सास स्थित बोधिसत्व ओशो केवल्य धाम से भी कई अनुयायी आए थे। उन्होंने संपर्क किया। वे रतलाम आए, उन्हें ओशो के नेत्र का डेमो बनाकर दिया। उन्हें यह इतना पसंद आया कि तभी उन्हें ओशो की प्रतिमा बनाने का मौका दे दिया।
- रतलाम शहर में मूर्तिकला के कई उदाहरण पाए जाते हैं, जिनमें मंदिरों में स्थित देवी-देवताओं की मूर्तियां और गुलाब चक्कर जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर स्थित मूर्तियां शामिल हैं। रतलाम में 12वीं शताब्दी के परमार कालीन, खजुराहो शैली की मूर्तियां भी पाई गई हैं.