Ignoring the Majority– मध्यप्रदेश सहित इंदौर शहर में कांग्रेस की नैया पूरी तरह से डूब चुकी है। उसी नैया को तैराने लिए अब कांग्रेस एडी से चोटी तक का जोर लगा रही है। तो यहीं लोकसभा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी बात एक लाइन में कह कर पूरी कांग्रेस को आईना दिखा दिया है कि सिर्फ कांग्रेसी होने का लेबल लगा कर घुमने से कांग्रेस कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगी। यदि कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाना है तो हर कार्यकर्ता को रेस के घोड़े की तरह दौड़ लगानी होगी।
ऐसा ही कुछ संदेश देते हुए कांग्रेस पार्टी में कुछ सुझाव पहुंचे है जिन्हें हम यहां बता रहे है कि कांग्रेस में काम करने वाले रेस के घोडे भी इंदौर की कई खामियों को जानेते है ऐसे ही एक मुद्दे पर आज हम प्रकाश डालते हुए बता रहे है कि ‘इंदौर में कांग्रेस का स्वर्णिम युग’ पंडित कृपा शंकर शुक्ला जी के अध्यक्ष रहते हुए रहा हैं।
शहर कांग्रेस अध्यक्ष आन बान शान और वोट बैंक पंडित जी ने क़ायम रखकर कांग्रेसियों को ज़िंदा रखा था।इस वजह से इंदौर में कांग्रेस ने भाजपा की जड़ें नहीं जमने दी थी। कांग्रेस के पास बड़ा वोट बैंक समाजिक समीकरणों के कारण भी लगातार बना रहा।पंडित जी का ब्राह्मण समाज में वर्चस्व था।जिसका फ़ायदा कांग्रेस को बड़े वोट बैंक के तौर पर मिलता था।
कांग्रेस अध्यक्ष ने उखाड़ी कांग्रेस की जड़े
कांग्रेस का दुर्भाग्य उजागर सिंह चढ्डा के अध्यक्ष बनने के साथ शुरू हुआ। सिख समाज का नाम मात्र का वोट भी कांग्रेस को आज तक नहीं मिलता है। लेकिन कांग्रेस ने सिख समाज से शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाया। इसके बाद कांग्रेस का दूर्भाग्य प्रमोट टंडन की ताजपोशी से शुरू हुआ। जहां प्रमोद टंडन के मोना पंजाबी समाज के सौ लोगों के वोट भी बारह सालों में कांग्रेस को नहीं दिला सके।
लेकिन फिर भी एक दशक तक कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर रखा। इसके बाद कांग्रेस ने जैन समाज के विनय बाकलीवाल को शहर अध्यक्ष बनाकर कमान सौंपी लेकिन जैन समाज को ही कांग्रेस से जोड़ने में बाकलीवाल असफल रहें। इसके पश्चात कांग्रेस ने पुनः ऐतिहासिक गलती को दोहराकर सुरजीत चड्डा को इंदौर शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाया लेकिन चड्डा भी सिख समाज को कांग्रेस से जोड़ने में असफल रहें। इसके पश्चात अरविंद बागड़ी और अमन बजाज को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जो खुद के समाज के सौ लोगों को आज तक कांग्रेस से नहीं जोड़ पाए।
बहुसंख्यक समाज की अनदेखी करती रही कांग्रेस
कांग्रेस का एक बड़ा गंभीर प्रश्न हैं की क्या कांग्रेस बहुसंख्यक समाज के नेताओं को छोड़कर अल्पसंख्यक समाज के असक्षम नेताओं की वजह से सड़क पर आ गई हैं.? इस मुख्य बात पर ध्यान आकृषित कराते हुए इंदौर के कांग्रेसियों ने यह भी कहा है कि यदि राहुल गांधी जी का साफ़तौर पर कहना हैं की जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी तो कांग्रेस को वोट देने वाला 60 प्रतिशत वोटर ओबीसी, 30 प्रतिशत वोटर एससी, एसटी मतलब कुल 90 प्रतिशत वोटरों के छोड़कर मात्र 10 प्रतिशत वोटरों का प्रतिनिधित्व वालों को इंदौर में शहर कांग्रेस अध्यक्ष पिछले 25 सालों में बनाया गया हैं। जिसका नतीजा भी सामने हैं। इसका नतीजा यही है कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया हैं।
भाजपा के रहमोकरम पर कांग्रेस शहर अध्यक्ष
एक नज़र देखें तो पता चलेगा की चड्डा,टंडन,बाकलीवाल,बागड़ी, बजाज ऐसे अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष रहें हैं जो भाजपा से सिद्धान्तों पर लड़ने की जगह भाजपा नेताओं के साथ मिलकर व्यापार -व्यवसाय करने में सालों से लगे हैं। एक अध्यक्ष का ढाबा रहा हैं। एक अध्यक्ष की शराब दूकान हैं। एक अध्यक्ष का दवा का धंधा हैं, एक कार्यकारी अध्यक्ष का यशवंत क्लब में बार रेस्टोरेंट हैं। एक कार्यकारी अध्यक्ष और एक दिन के अध्यक्ष की अवैध कालोनियां हैं। सारे के सारे भाजपा के रहमोकरम पर पलने वाले शहर कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं।
आज भी समय हैं कांग्रेस को अपना नया शहर अध्यक्ष परिक्रमा करने वाले को छोड़कर पराक्रम दिखाने वाले को बनाना चाहिए। कांग्रेस को ओबीसी वर्ग से कांग्रेस का अध्यक्ष 25 साल बाद अब बनाना चाहिए। जिससे की कांग्रेस का वोट बैंक और कांग्रेस मजबूत हो सके।