हनीमून की खुशी शिलांग में बनी कब्रगाह…सोनम की न आंखें नम हुई न निकली उफ..आह…

प्रखर – वाणी

राजा रघुवंशी की हनीमून हत्या कहानी का रहस्य खुला…सोनम बेवफा निकली उसका दिल राज के चक्कर में राजा को भूला…कहाँ जा रही है नवपीढ़ी की ये विचित्र दास्तान…अपने निजी सुख की खातिर इंसान बन रहा शैतान…परिणय पूर्व प्रेम को बयां कर देती…परिजनों को दिल की बात कह देती…जिससे प्रणय किया उसी से परिणय कर लेती…निर्दोष राजा रघुवंशी की जान तो नहीं लेती…क्या अब समग्र समाज को यही दशा व दिशा देखने को मिलेगी…संस्कारों वाले देश में कब तक ये कुप्रवृत्ति चलेगी…खुली छूट और खुलेपन ने सब खुला खुला कर दिया है…

समाज का समाज में ही परिणय इरादा मिला जुला कर दिया है…सोशल मीडिया से दोस्ती कब प्यार में बदल जाती है…पता ही नहीं चलता कब पापा की परी पापा के हाथ से निकल जाती है…पराये और अजनबी से अपनापन अपनों से पराया बना देता है…जिंदगी के एकांकी मार्ग को हुस्न कैसे चौराया बना देता है…कच्ची उम्र की फिसलन मसलन गुनाह की गैर इरादतन हकीकत बन जाती है…अपनी जिन्दगी में अड़चन खुरचन की तरह कढ़ाई से मसल दी जाती है…नए सोच की नई आबादी अब हवाई ख्वाबों की उड़ान उड़ रही है…अक्सर अपरिचितों से जुड़कर आकर्षित होकर उनकी तरफ मुड़ रही है…शहरों में अब लिव इन का चलन चरम पर है…युवा सोच का बर्ताव उनके व्यवहार से ज्यादा करम पर है…मोबाइल का गोपनीय लॉक फिर माता – पिता तक से निजी हवाला देकर छुपाना…संवाद के अनेक सेतु सोशल मीडिया पर उपलब्ध जिनपर घण्टों बतियाना…

उम्र के पहले उम्र से जवान और फिर रूप सौंदर्य का अभिमान…हष्ट पुष्ट नहीं खूबसूरत कोमल अंग प्रदर्शन का बढ़ता अभियान…अंग प्रदर्शन आकर्षण की अनूठी कला में निपुणता…शहरों में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले होटलों की प्रबलता…किस किस सिरे पर अंकुश लगाकर हथिनी रोकी जाएगी…गुस्सैल प्रवृत्तियों की हसीनाएँ किस हरकत पर टोकी जाएगी…ज्यादा बंदिशें लगाकर नौजवान पीढ़ी को रोक भी नहीं सकते…उनके बेचलर इरादों को आधुनिक केंद्रों पर मस्ती करने से टोक भी नहीं सकते…रूढ़िवादी सोच का हवाला देकर तितलियां उड़ सकती है…उनकी बातों को सुनने वाले और हमदर्दी रखने वालों की तरफ मुड़ सकती है…आजकल लगभग हर समाज में नव परिणय सम्बन्ध विच्छेद के प्रकरण आ रहे हैं…सोच , विचार , अभिच्छाएँ , स्वायत्तता सहित अनेक प्रकल्प दूल्हा – दुल्हन को नहीं भा रहे हैं…पहले तो शहरों की जगह गांवों में विवाह न करने की धारणा…

फिर वर की काबिलियत से ज्यादा उसकी रोमांस करने की कूबत वाली अवधारणा…सबकुछ बदल रहा है अब नए दौर में…अंधियारा ही पसर रहा है दमकती भोर में…हनीमून की खुशी शिलांग में बनी कब्रगाह…सोनम की न आंखें नम हुई न निकली उफ..आह…कहाँ से सात जन्मों तक साथ रहने के इरादे निभाओगे…जो सात फेरे के साथ सात वचन लिए उनको कैसे अपनाओगे…महबूबा की माशुकी मोहब्बत की छद्म दास्तान है…वो क्या वफ़ा निभाएगी जो नौकर के लिए ले लेती जान है…