दिल्ली की गर्मी हर साल लोगों की परीक्षा लेती है। इस बार भी तापमान तेजी से बढ़ रहा है और लू का प्रकोप शरीर को झुलसा रहा है। राजधानी की गर्मी का इतिहास भी कम चौंकाने वाला नहीं है। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाया था, तब भी उन्हें इस गर्मी से काफी परेशानी होती थी।
100 साल पहले कितना चढ़ता था पारा?
पुराने रिकॉर्ड्स बताते हैं कि दिल्ली में 100 साल पहले भी गर्मी कम भयानक नहीं थी। उस समय तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला जाता था। 1945 में दिल्ली में 46.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ था। इसके बाद 1971 में भी पारा 44.9 डिग्री तक पहुंचा। अंग्रेजों के लिए दिल्ली की गर्मी सहना मुश्किल हो जाता था। वे गर्मी से बचने के लिए अपने बंगलों और दफ्तरों में खास इंतजाम करते थे। खिड़कियों पर गीला कपड़ा टांगते थे, जिनमें ठंडा पानी डाला जाता था ताकि गर्म हवाएं अंदर न आएं। बड़े-बड़े दफ्तरों में बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं। दोपहर के वक्त तो दिल्ली की सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, जैसे किसी महामारी का साया हो।
गर्मी से शरीर पर पड़ने वाला असर
हमारे शरीर का सामान्य तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस होता है। लेकिन जब बाहर का तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है, तो शरीर को ठंडा रखने वाला सिस्टम, यानी हाइपोथैलेमस, ठीक से काम नहीं करता। इससे शरीर का तापमान अनियंत्रित होने लगता है और लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। लू लगने से चक्कर, सिरदर्द, उल्टी, कमजोरी और कई बार जान का खतरा भी हो सकता है।
गर्मी से बचाव के आसान उपाय
दिल्ली की भीषण गर्मी में कुछ जरूरी सावधानियां अपनाकर खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है। तेज धूप में जाने से बचें और बाहर निकलते समय टोपी, कैप या गमछा जरूर पहनें। हल्के, ढीले और सूती कपड़े पहनें, गहरे रंग से परहेज करें। खूब पानी पिएं ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे। शराब, चाय और कॉफी से बचना फायदेमंद होगा। दोपहर 12 से 3 बजे के बीच बाहर निकलने से बचें। अगर चक्कर, कमजोरी या ज्यादा पसीना आए तो तुरंत ठंडी जगह पर जाकर डॉक्टर से संपर्क करें। गर्मी में सतर्क रहना ही सबसे अच्छा उपाय है।