भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को एक बड़ी कानूनी लड़ाई में करारी हार का सामना करना पड़ा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की पूर्व फ्रेंचाइजी कोच्चि टस्कर्स केरल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बीसीसीआई को 538 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है।
मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस आरआई छागला ने BCCI की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला कानूनी रूप से वैध मध्यस्थता का है और इसमें हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मध्यस्थ ने सभी सबूतों का समुचित मूल्यांकन किया था।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
यह विवाद वर्ष 2011 में शुरू हुआ था जब BCCI ने कोच्चि टस्कर्स केरल की फ्रेंचाइजी को खत्म कर दिया। कारण बताया गया कि टीम ने फ्रेंचाइजी अनुबंध के तहत आवश्यक बैंक गारंटी जमा नहीं की थी। लेकिन कोच्चि फ्रेंचाइजी का दावा था कि BCCI ने यह निर्णय जल्दबाज़ी में लिया और अनुचित तरीके से अनुबंध समाप्त किया, जबकि गारंटी पहले ही जमा कर दी गई थी।
कोच्चि टस्कर्स की दलीलें और BCCI की चुनौती
फ्रेंचाइजी ने यह भी कहा कि उन्हें मैचों की संख्या कम करने और स्टेडियम की उपलब्धता में समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से वह गारंटी समय पर नहीं दे पाए। बावजूद इसके, बीसीसीआई ने न केवल अनुबंध समाप्त किया बल्कि पहले से दी गई गारंटी को भी भुना लिया।
विवाद के बाद मामला मध्यस्थता न्यायाधिकरण के पास पहुंचा। 2015 में, न्यायाधिकरण ने फैसला कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में देते हुए कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) को 384 करोड़ और रेंडेजवस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) को 153 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया।
BCCI ने फैसले को कोर्ट में दी चुनौती
बीसीसीआई ने इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की थी और दावा किया कि मध्यस्थता निष्कर्ष अनुचित और पुनर्मूल्यांकन योग्य हैं। लेकिन हाईकोर्ट ने भारतीय साझेदारी अधिनियम के तहत इन आपत्तियों को खारिज कर दिया और मध्यस्थता को वैध करार दिया।
कोच्चि टस्कर्स केरल की टीम को 2011 में इंडियन प्रीमियर लीग में शामिल किया गया था। यह टीम पुणे वॉरियर्स इंडिया के साथ दो नई फ्रेंचाइजियों में से एक थी। इस टीम की बोली 333.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 1533 करोड़ रुपये) में रेंडेजवस स्पोर्ट्स वर्ल्ड द्वारा लगाई गई थी, जो उस समय दूसरी सबसे बड़ी बोली थी।
टीम ने सिर्फ एक ही सीजन में हिस्सा लिया और फिर इसे लीग से बाहर कर दिया गया। इस अचानक लिए गए फैसले को लेकर तब भी विवाद हुआ था, और अब एक दशक बाद कोर्ट ने उस फैसले को अनुचित ठहराया है।
क्या इसका असर भविष्य के IPL फैसलों पर पड़ेगा?
इस फैसले से BCCI की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। साथ ही, यह फैसला एक मिसाल के तौर पर भी देखा जा सकता है कि किसी भी फ्रेंचाइजी के साथ अनुचित व्यवहार की स्थिति में न्यायालय दखल दे सकता है।