एमपी में खुली टीकाकरण की पोल, छिंदवाड़ा में गलघोंटू का कहर- दो मासूमों की मौत

टीकाकरण को लेकर किस तरह से लापारवाही बरती जाती है। इसक भयावह सच्चाई सबके सामने आ गई है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव दलेलढाना में गलघोंटू की बीमारी फैंलने से एक ही परिवार के दो बच्चों की मौत हो गई। गांव में चारों तरफ खामोशी पसरी है। गांव के रहने वाले दुखलाल ककोडिया के परिवार में मातम पसरा है उनके छह बच्चों में से दो की डिप्थीरिया (जिसे आमतौर पर गलघोंटू कहा जाता है) जैसी घातक बीमारी ने जान ले ली, जबकि तीन बच्चे अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।

गले में तेज दर्द की थी शिकायत
कुछ दिन पहले बच्चों को बुखार, गले में तेज दर्द और सूजन की शिकायत हुई। पहले तो स्थानीय अस्पताल में इलाज हुआ, लेकिन हालात बिगड़ते ही उन्हें जिला अस्पताल रेफर किया गया। वहां पहुंचते ही सबसे छोटा बच्चा, राजकुमार (6 वर्ष), दम तोड़ चुका था। बाकी तीन सपना (14), अंकित (10) और समित (8) को भी तुरंत भर्ती किया गया है।

WHO तक पहुंचा मामला
डिप्थीरिया की पुष्टि होते ही स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की टीम मौके पर पहुंची और जांच के लिए नमूने भोपाल भेजे गए हैं। गांव में विशेष स्क्रीनिंग अभियान शुरू कर दिया गया है ताकि अन्य बच्चों को समय रहते बचाया जा सके।

टीकाकरण का अभाव है मुख्य कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि डिप्थीरिया आज के समय में दुर्लभ हो चुकी बीमारी है। लेकिन इसका मुख्य कारण समय पर टीकाकरण है। दुख की बात यह है कि इस परिवार के किसी भी बच्चे को कोई टीका नहीं लगाया गया था। इसी लापरवाही से परिवार दांव पर लग गया। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग की भी लापरवाही सामने आती है कि इन परिवारों तक टीकाकरण की जागरूकता नहीं पहुंचाई गई। इस कारण बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गए। जबकि टीकाकरण के लिए आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता को सतत घर-घऱ संपर्क करके जानकारी पहुंचाना है।

डिप्थीरिया बीमारी को कहते है गलघोंटू
ग्रामीण क्षेत्रो में बीमारी के लक्षण के अनुसार बीमारी का नाम रख दिया जाता है। ऐसे ही इस बीमारी में गले में दर्द और सुजन आ जाती है। इसलिए इस बीमारी का ग्रामीण इलाकों में गलघोंटू कहते है। यह बीमारी कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। इससे संक्रमित व्यक्ति की छींक, खांसी या संपर्क से गले में झिल्ली बनना, तेज बुखार, सांस लेने में परेशानी, निगलने में कठिनाई, थकान, गले की ग्रंथियों में सूजन आ जाती है।

इलाज में देरी हो जाती है जानलेवा
यदि गलघोंटु बीमारी का समय पर इलाज न हो, तो दिल, किडनी और तंत्रिका तंत्र पर असर डाल सकता है। इसका इलाज एंटीबायोटिक और डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन से संभव हो सकता है।  लेकिन इलाज में देरी जानलेवा हो सकती है।

कागजों में हो रहा टीकाकरण
राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने टीकाकरण अभियान को और मजबूत करने का दांवा किया है। कागजों में तो प्रत्येक हफ्ते “शालेय टीकाकरण दिवस” के तहत सरकारी स्कूलों में DPT (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस) और Td (टेटनस, डिप्थीरिया) के टीके लगाए जाते हैं। लेकिन यदि इसके बाद भी एक ही परिवार के बच्चों में गलघोंटु से दो बच्चों की मौत हो गई तो यह एक बड़ी लापरवाही की गाथा कहती है कि स्वास्थ्य विभाग सिर्फ कागजों में ही टीकाकरण अभियान चला रहा है।