उदयपुर में 80 किलो चांदी के रथ पर निकले भगवान जगन्नाथ, जगदीश मंदिर से 8 किमी लंबी भव्य यात्रा, जानें क्या है विशेष

राजस्थान के उदयपुर में हर साल की तरह इस बार भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ निकाली जा रही है। इस रथ यात्रा की खास बात यह है कि भगवान एक विशेष रथ पर सवार होते हैं, जो लगभग 80 किलो शुद्ध चांदी से बनाया गया है। यह रथ अपनी सुंदरता, भव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

जगदीश मंदिर से होती है यात्रा की शुरुआत

उदयपुर की यह रथ यात्रा प्रसिद्ध जगदीश मंदिर से शुरू होती है। दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे मंगला आरती के साथ होती है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की दैनिक पूजा और अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में सुबह से ही मंदिर में एकत्र होते हैं, और मंदिर परिसर में आध्यात्मिक माहौल बन जाता है।

श्रृंगार और भोग के साथ होती है भगवान की विशेष सज्जा

सुबह 10:30 बजे श्रृंगार आरती की जाती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है। इसके बाद भगवान को भोग अर्पित किया जाता है। इस भोग में विशेष व्यंजन होते हैं, जिन्हें भक्त भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

दोपहर बाद मंदिर की परिक्रमा और रथ पर आरूढ़

भोग और आरती के पश्चात भगवान को मंदिर परिसर में परिक्रमा करवाई जाती है, जो धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बाद, दोपहर 3 बजे भगवान को चांदी के रथ पर विराजित किया जाता है। रथ को फूलों, ध्वजों और रंगीन वस्त्रों से सजाया जाता है।

7 से 8 किलोमीटर लंबी होती है रथ यात्रा

रथ यात्रा की लंबाई लगभग 7 से 8 किलोमीटर होती है। इस दौरान रथ शहर के प्रमुख मार्गों से गुजरता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु रथ के साथ चलते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और भगवान की जय-जयकार करते हैं। यह यात्रा एक चलते-फिरते उत्सव की तरह होती है जिसमें धर्म, संस्कृति और परंपरा का संगम दिखाई देता है।

मंदिर वापसी पर होती है विशेष आरती

यात्रा समाप्त होने के बाद रथ वापस जगदीश मंदिर लौटता है, जहां भगवान को फिर से मंदिर में विराजमान किया जाता है। इसके पश्चात एक विशेष संध्या आरती का आयोजन होता है, जिसमें शहरवासी और दूर-दराज से आए भक्त भाग लेते हैं।

भक्ति, परंपरा और एकता का प्रतीक

उदयपुर की यह रथ यात्रा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भक्ति, परंपरा और समाज में एकता का प्रतीक बन चुकी है। यहां जात-पात, वर्ग, धर्म का कोई भेद नहीं होता। हर कोई भगवान की सेवा और दर्शन के लिए एक साथ आता है और रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करता है।