जगन्नाथ में “धड़कता है भगवान श्री कृष्ण का दिल”, अहसास करते पुजारी-देखने पर हो जाती है मौत

भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी की मान्यता है। जिन्हें सुन कर आज भी भक्त आश्चर्य में पड़ जाते है। लेकिन आज हम आपको बता रहे है कि भगवान श्री कृष्ण का दिल आज भी धड़कता है। लेकिन अब आप सोच रहे होगे कि वह दिल कहां धड़क रहा है तो आप को भी जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान श्री कृष्ण का दिल ओडिशा के पुरी में विराजे भगवान जगन्नाथ में धड़क रहा है। भगवान जगन्नाथ ही वह अवतार है जिसमें भगवान श्री कृष्ण का दिल धड़कता है।

हर 12 साल में होता है नवकलेवर
नवकलेवर का अर्थ तो सभी जानते ही होंगे कि नवकलेवर का मतलब होता है नया रुप धारण करना ऐसा ही नवकलेवर हर 12 वर्षों बाद जगन्नाथ पुरी में होता है। जहां भगवान जगन्नाथ में धड़कने वाला भगवान श्री कृष्ण का दिल जिसे हम ‘ब्रह्म पदार्थ’ के रुप में जानते है। भगवान के नए रूप में रखा जाता है। याने हर 12 साल बाद भगवान जगन्नाथ नयारूप गृहण करते है जिसमें भगवान का श्री कृष्ण का दिल धड़कता है।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में ‘ब्रह्म पदार्थ’ के रूप में उनका हृदय मौजूद होने की मान्यता है, जो आज भी धड़कता है। हर 12 साल में होने वाले ‘नवकलेवर’ अनुष्ठान के दौरान, पुरानी मूर्ति से ‘ब्रह्म पदार्थ’ निकालकर नई मूर्ति में स्थापित किया जाता है, जिससे यह परंपरा जारी रहती है।

100 साल पुराने नीम से बनते है जगन्नाथ
जगन्नाथ मंदिर, पुरी में भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का हृदय, जो उनके शरीर त्यागने के बाद भी नहीं जला, आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति के भीतर ‘ब्रह्म पदार्थ’ के रूप में मौजूद है। हर 12 साल में होने वाले ‘नवकलेवर’ अनुष्ठान में, पुरानी मूर्तियों को बदल दिया जाता है। इस दौरान, पुरानी मूर्ति से ‘ब्रह्म पदार्थ’ निकालकर नई मूर्ति में स्थापित किया जाता है, जिससे मूर्ति में भगवान का हृदय धड़कता रहता है।
रहस्यमयी परंपरा का होता पालन
नवकलेवर के दौरान, मंदिर में विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिसमें पुजारियों की आंखों पर पट्टी बांधकर और हाथों में दस्ताने पहनाकर, ‘ब्रह्म पदार्थ’ को नई मूर्ति में स्थापित किया जाता है, ऐसी मान्यता है कि यह अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को बदलने की एक जटिल प्रक्रिया है। इस दौरान, नीम की विशेष लकड़ी से नई मूर्तियां बनाई जाती हैं, यह वह लकड़ी होती है  जो 100 साल से अधिक पुरानी होनी चाहिए। मान्यता है कि नवकलेवर के दौरान, पुरानी मूर्ति से ‘ब्रह्म पदार्थ’ निकालकर नई मूर्ति में स्थापित करने से, भगवान जगन्नाथ की ऊर्जा और दिव्यता नई मूर्ति में बनी रहती है।
‘ब्रह्म पदार्थ’ है या दिल आज तक है रहस्य
‘ब्रह्म पदार्थ’ को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का हृदय माना जाता है, जो आज भी धड़कता है। यह एक रहस्यमय पदार्थ है, कुछ लोगों का मानना है कि ‘ब्रह्म पदार्थ’ एक नीले रंग का पदार्थ है, जो सांप की तरह लहराता रहता है। यह भी मान्यता है कि यदि इस पदार्थ को कोई देख लेता है तो उसकी मुत्यु हो जाती है। माना जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न को सपने में श्रीकृष्ण ने नीम की लकड़ी से मूर्तियां बनाने का आदेश दिया था। इसलिए राजा ने यह मंदिर बनवाया। यहां के पुजारियों का कहना है कि इसे बदलते समय उन्हें कुछ उछलता हुआ महसूस होता है। किसी ने उसे कभी नहीं देखा। लेकिन छूने पर वह उछलते हुए खरगोश जैसा महसूस होता है। यह एक अनोखा अनुभव है। माना जाता है कि इस पदार्थ को देखने वाली की आंखें चली जाती हैं। उसकी मृत्यु भी हो सकती है, इसलिए पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर यह काम करते हैं।