2 दिसंबर 1984 को हुई भोपाल गैस त्रासदी को देश की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है। इस हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े कारखाने में जमा हुआ 337 टन जहरीला कचरा आज भी पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ था। इस कचरे को नष्ट करने को लेकर कई सालों से विवाद और कानूनी लड़ाई चल रही थी। आखिरकार हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस खतरनाक कचरे को भोपाल से हटाकर पीथमपुर लाया गया।
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद हुआ कचरा हटाने का काम
दिसंबर 2024 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सख्त आदेश जारी करते हुए कहा कि इस कचरे को जल्द से जल्द हटाया जाए। कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई और पूछा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पहले दिए गए निर्देशों के बावजूद जहरीले कचरे को क्यों नहीं जलाया गया। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि राज्य सरकार ने मार्च 2024 में जो योजना पेश की थी, उसके अनुसार कचरे को अधिकतम 377 दिनों में जलाना था, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। कोर्ट ने 4 हफ्तों के भीतर कचरा हटाने का आदेश भी दिया।
1 जनवरी को पहुंचा पीथमपुर, जून में जलाया गया
हाईकोर्ट के आदेश के बाद 1 जनवरी 2025 को यह कचरा विशेष कंटेनरों में भरकर कड़ी सुरक्षा के बीच भोपाल से धार जिले के पीथमपुर स्थित रामकी ग्रुप के औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र में लाया गया। यहां पर पूरी निगरानी के बीच धीरे-धीरे करके इस कचरे को जलाने की प्रक्रिया शुरू की गई। आखिरकार 29 और 30 जून की मध्य रात्रि को रात 1 बजे तक सभी 337 टन कचरे को सुरक्षित रूप से जला दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की गई।
लंबे संघर्ष के बाद मिली राहत
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों और पर्यावरणविदों के लिए यह एक बड़ी राहत की बात है कि 40 साल पुराने इस जहरीले कचरे से आखिरकार छुटकारा मिला। इस कचरे के कारण आसपास के इलाकों के पानी और मिट्टी में प्रदूषण फैल रहा था। वर्षों से लोग इसके निपटान की मांग कर रहे थे। अब जब यह कचरा नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से जला दिया गया है, तो उम्मीद की जा रही है कि भोपाल और पीथमपुर दोनों क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे कम होगा और लोगों को राहत मिलेगी।