मध्य प्रदेश भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की उलटी गिनती शुरू हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी ने पूरी प्रक्रिया तय कर ली है। इसके साथ ही केंद्रीय नेतृत्व ने भी हरी झंडी दे दी है। इसके बाद चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसके बाद सब की निगाहें कल, बुधवार को होने वाली चुनावी गतिविधियों पर टिकी हैं।
नामांकन की प्रक्रिया शाम तक चलेगी
अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की प्रक्रिया शाम तक चलेगी, इसके बाद नामांकन पत्रों की जांच और वापसी की प्रक्रिया होगी । यह प्रबल संभावना है कि जुलाई को प्रदेश के नए भाजपा अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाएंगी। जिसकी तैयारी पूरी हो चुकी है। चुनाव की कमान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को सौंपी गई है।
हेमंत खंडेलवाल है सबसे प्रबल दावेदार
प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे मजबूत नाम हेमंत खंडेलवाल का सामने आ रहा है। बैतूल से विधायक और पूर्व सांसद हेमंत संघ और संगठन दोनों में गहरी पकड़ रखते हैं। इनके पिता विजय कुमार खंडेलवाल भी तीन बार बैतूल से सांसद रह चुके हैं। हेमंत खुद भी लोकसभा और विधानसभा दोनों स्तरों पर जनप्रतिनिधि रह चुके हैं। माना जा रहा है कि वर्तमान में प्रमोशन में आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों को देखते हुए भाजपा सामान्य वर्ग के मजबूत चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है।
चौंकाने वाला नाम भी हो सकता है पेश
मुकाबला एकतरफा नहीं है। वैश्य समाज से आने वाले हेमंत खंडेलवाल के अलावा आदिवासी और महिला वर्ग से भी कई नाम चर्चा में हैं। बैतूल सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके, गजेंद्र पटेल, सुमेर सिंह सोलंकी, हिमाद्री सिंह, रंजना बघेल जैसे नाम भी रेस में हैं। ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग से भी संभावित चेहरे आगे लाए जा सकते हैं। चर्चा यह भी है कि पार्टी कोई चौंकाने वाला नाम सामने ला सकती है।
सर्वसम्मति से बनते है अध्यक्ष
भाजपा के इतिहास पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष अधिकतर बार सर्वसम्मति से चुने गए हैं। केवल दो बार 1990 के दशक में लखीराम अग्रवाल और कैलाश जोशी के बीच, और वर्ष 2000 में शिवराज सिंह चौहान और विक्रम वर्मा के बीच खींचतान पर मतदान कराने की नौबत आई थी।
379 मतदाता करेंगे फैसला
इस बार चुनाव में कुल 379 मतदाता वोट डाल सकेंगे, जिनमें प्रदेश परिषद के सदस्य, चार सांसद और 17 विधायक शामिल हैं। बड़ी संख्या में वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी दो दिवसीय कार्यसमिति बैठक में मौजूद रहेंगे, जिससे राजनीतिक गतिविधियां और भी गरमा गई हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी सर्वसम्मति की परंपरा कायम रहती है या कोई अप्रत्याशित मोड़ राजनीतिक समीकरणों को बदल देता है।