अमित शाह ने की घोषणा: नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति जल्द, राज्यों को मिलेगी लचीलापन

अमित शाह : केंद्र सरकार जल्द ही राष्ट्रीय सहकारिता नीति लागू करेगी, जो 2025 से 2045 तक लागू रहेगी। राज्यों को इसकी मदद से अपनी ज़रूरतों के अनुसार नीति बनाने की आज़ादी मिलेगी। केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बताया कि इस नीति का मकसद हर गांव तक सहकारिता पहुंचाना है ताकि भारत आज़ादी के 100 साल पूरे होने तक एक आदर्श सहकारी देश बन सके। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पुराने सहकारी ढांचे को नया रूप देने के लिए सहकारिता मंत्रालय बनाया। शाह ने यह भी बताया कि बीते 10 सालों में करोड़ों लोगों को बुनियादी सुविधाएं जैसे घर, पानी, गैस और अनाज मिला।

सहकारिता से हर गांव में आएगी नई रोशनी

अमित शाह ने कहा कि आज करोड़ों लोग कुछ नया करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास पैसा नहीं है। ऐसे लोगों की छोटी-छोटी पूंजी को जोड़कर बड़ा काम सिर्फ सहकारिता से ही संभव है। भारत जैसे बड़े देश में रोजगार बढ़ाना और आर्थिक विकास करना जरूरी है, और यह काम सहकारिता से ही अच्छे तरीके से हो सकता है।

ग्रामीणों की जरूरतों को समझना समय की मांग

शाह ने कहा कि देश के करोड़ों छोटे किसानों और ग्रामीणों के विकास के लिए सहकारिता को फिर से मजबूत करना जरूरी है। इसमें बहुत संभावनाएं हैं। इसे सफल बनाने के लिए सरकार ने 60 कदम उठाए हैं। इनमें एक बड़ा कदम राष्ट्रीय सहकारी डाटाबेस बनाना है, जिससे यह समझा जा सके कि कहां कमी है। यह डाटाबेस यह दिखाएगा कि किस राज्य, जिले या गांव में सहकारी संस्था नहीं है, ताकि वहां नई संस्थाएं बनाई जा सकें।

त्रिभुवन विश्वविद्यालय की भूमिका होगी और मजबूत

शाह ने कहा कि भारत में सहकारिता आंदोलन कमजोर होने की तीन मुख्य वजहें थीं—पुराने कानून नहीं बदले गए, समय के साथ सहकारी कामकाज में बदलाव नहीं हुआ, और भर्तियों में भाई-भतीजावाद था। मोदी सरकार ने इन कमियों को सुधारते हुए त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी बनाई। शाह ने राज्यों से आग्रह किया कि वे कम से कम एक सहकारी प्रशिक्षण संस्था को इस यूनिवर्सिटी से जोड़ें ताकि बेहतर प्रशिक्षण मिल सके।

नई बहु-राज्य सहकारी समितियों की गतिविधियों पर फोकस

बैठक में तीन नई बनी राष्ट्रीय बहु-राज्य सहकारी समितियों – राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड, राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड और भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड – में राज्यों की भूमिका की समीक्षा की गई। साथ ही, एक मजबूत और टिकाऊ डेयरी व्यवस्था बनाने के लिए ‘श्वेत क्रांति 2.0’ पर चर्चा हुई, जिससे दूध उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सके।