बिलासपुर के देवांगन समाज से जुड़ी एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है, जिसने समाज की पुरानी सोच को झकझोर कर रख दिया है। यहां के रहने वाले श्यामलाल और सीता देवांगन ने अपनी विधवा बहू गायत्री की दूसरी शादी कराकर यह साबित कर दिया कि बहू भी बेटी के समान होती है और वह भी दोबारा खुश रहने का हक रखती है। समाज में जहां विधवा महिलाओं को तिरस्कृत किया जाता है, वहां श्यामलाल और सीता ने समाज की रूढ़ियों को तोड़कर एक नई मिसाल पेश की है।
बेटे की मौत के बाद टूट गया था परिवार
श्यामलाल देवांगन के इकलौते बेटे पारस की शादी रायगढ़ की गायत्री से हुई थी, लेकिन कोरोनाकाल के दौरान पारस की मृत्यु हो गई। बेटे की असमय मौत से परिवार टूट गया, लेकिन गायत्री ने कभी सास-ससुर का साथ नहीं छोड़ा और पूरे मन से उनकी सेवा करती रही। जब भी श्यामलाल और सीता अपने बेटे की तस्वीर के पास बैठते, तो गायत्री का अकेलापन उनकी आंखों में आंसू ले आता।
बहू को बेटी मानकर किया कन्यादान
श्यामलाल और सीता ने मिलकर यह तय किया कि बहू को जीवनसाथी देने का वक्त आ गया है। उन्होंने गायत्री को अपनी बेटी की तरह मानते हुए उसका कन्यादान करने का निर्णय लिया। देवांगन समाज में ही एक शिक्षित युवक आशीष ने गायत्री से विवाह करने की इच्छा जताई। इसके बाद पूरे रीति-रिवाजों के साथ श्यामलाल और सीता ने गायत्री का कन्यादान किया और उसे विदा किया। इस दौरान उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन मन में सुकून था कि उन्होंने अपनी बहू को फिर से खुशियों की ओर भेजा है।
सिर्फ 1 रुपए उपहार लेकर किया स्वागत
शादी के आयोजन में समाज के लोगों को ससम्मान बुलाया गया और सबके सामने यह नेक काम किया गया। खास बात यह रही कि विवाह समारोह में श्यामलाल और सीता ने किसी से कोई महंगा तोहफा नहीं लिया, बल्कि प्रतीक रूप से सिर्फ 1 रुपए का उपहार स्वीकार कर सभी का सम्मान किया। इस पहल की चर्चा अब पूरे छत्तीसगढ़ में हो रही है। यह कहानी न सिर्फ भावुक करने वाली है, बल्कि समाज के लिए एक गहरी सीख भी देती है – कि बेटी हो या बहू, हर औरत को दूसरा मौका मिलना चाहिए।