इंदौर. शहर में गरीबों के लिए भोजन, दवाईयां और अन्य सामग्री उपलब्ध करवाने वाले कई ग्रुप कार्यरत हैं। लेकिन शहर में चरण पादुका एक ऐसा ग्रुप है, जो शहर में नंगे पांव चलने वालों को चप्पलें भेंट कर रहे हैं। ग्रुप की शुरुआत करने वाले रत्नेश रमेश जी टोंगिया बताते हैं, कि 2016 में 1 जोड़ी चप्पल से शुरू हुआ यह ग्रुप इस साल रामनवमी के इन 45 दिनों में 31 हज़ार चप्पलें भेंट करेगा।
सवाल. किस तरह चप्पलें भेंट की जाती हैं
जवाब. हम गर्मी के समय में रामनवमी से लेकर 45 दिनों तक सतत अपनी गाड़ियों की डीक्कियों में चप्पलों की 100 से ज्यादा जोड़ियां लेकर घूमते हैं। जिसमें 2 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक के बुजुर्गों के चप्पल की जोड़ी कार में रखकर चलते हैं। रास्ते में कोई नंगे पांव या टूटी फटी चप्पल मिल जाए तो उन्हें भेंट कर देते हैं। यह सिलसिला लगभग पिछले 7 सालों से जारी है।
सवाल. इसकी शुरुआत कैसे हुई
जवाब. बात साल 2016 की है, में अपनी वाइफ निशा टोंगिया के साथ गोम्ममटगिरी मंदिर जा रहा था, तो गांधीनगर क्षेत्र में एक बुजुर्ग महिला और उनके साथ एक बच्ची कड़ी धूप में नंगे पांव जा रहे थे। मैने गाड़ी रोकी और कहा की आप नंगे पांव चल रहे हैं, आपके पांव जल गए होंगे. आप चप्पल क्यूं नहीं पहनते. उन्होंने बड़ी ही मार्मिक भाषा में कहा कि बेटा खाने को ही नहीं तो चप्पल कहां से लाएं. उनके इन शब्दों से मेरा दिल पसीज गया.में उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर अपने साथ ले गया और चप्पल दिलवाई और खाना खिलाया. उन्होंने अंतर्मन से मुझे दुआएं दी। इसके बाद मैंने घर आकर मम्मी को बताया तो वह खुश हुए. और मुझे 1100 रुपए देकर कहा यह सिलसिला रूकना नहीं चाहिए. उस दिन से यह सेवा करने का संकल्प लिया।
Also Read – इंदौर में हनुमान जन्मोत्सव की धूम, रणजीत हनुमान मंदिर में दिखा अनोखा नजारा, आरती में शामिल हुए हजारों भक्त
सवाल. क्या इन सात सालों में आपके साथ लोग जुड़े
जवाब.शुरू में तो हम अकेले चलें लेकिन धीरे धीरे कारवां बढ़ता गया. आज हमारे ग्रुप में कई लोग शामिल है। जिसमें मनीष सोमानी, आनंद जैन, योगेश कौशिक, प्रवीण नीमा, भूपेंद्र नीमा, पिंकेश टोंगिया, सौरभ पाटोदी और अन्य लोग इस ग्रुप का हिस्सा है। सभी मेंबर अपनी गाड़ियों में चप्पल के बैग्स लेकर चलते हैं. जहां कोई दिखता हैं उन्हें निश्वार्थ भाव से चप्पल भेंट करते हैं। हम किसी से पैसे नहीं मांगते हैं, हम 8 लोग अपनी स्वेच्छा से पैसे एकत्रित कर उससे चप्पल खरीद लेते हैं। हमने इस साल 31 हजार चप्पलें खरीदी है। वहीं हमारा एक व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें कई लोग अपनी स्वेच्छा से डोनेट करते हैं। इसी के साथ जहां से हम चप्पल खरीदते हैं, वह नोबल फुटवेयर के मालिक कम कीमत में चप्पल देते हैं, साथ ही उनकी तरफ से चप्पल डोनेट करते हैं।
सवाल. क्या आप सड़कों के साथ कहीं और भी चप्पलें डोनेट करते हैं
जवाब. शहर की सड़कों पर नंगे पैर चलने वालों के साथ साथ हमने शहर के 29 आश्रम को भी अपनी लिस्ट में शामिल किया हैं। इन आश्रम में हम जाकर बुजुर्गों और बच्चों को अपनी और से चप्पल भेंट करते हैं। इसी के साथ शहर के छात्रावास, एमवायएच हॉस्पिटल और अन्य जगह जाकर लोगों को चप्पल भेंट करते हैं। पीछले साल हम सभी ने मिलकर लगभग 25 हज़ार चप्पलें भेंट की थी। इस बार 1 लाख की 31 हज़ार चप्पलें भेंट करने का लक्ष्य तय किया हैं।
सवाल. संकल्प का नाम चरण पादुका कैसे पड़ा
जवाब. जब हमने हमारे इस प्रकल्प के बारे में शहर के वास्तु कंसल्टेंट मृदुल गंगवाल जी को बताया तो उन्होंने कहा की इस प्रकल्प का नाम चरण पादुका रखो। यह वही चरण पादुका है जब भगवान राम को 14 साल का वनवास हुआ था। तब उनके छोटे भाई ने चरण पादुका को सिंघासन पर रखकर इस देश पर राज किया। वर्तमान में उज्जैन, कसरावद, और राजस्थान के मामा परिवार और मिलने वालों ने हमसे प्रेरणा लेकर इस ग्रुप की शुरुआत की है। वहां भी अब इस प्रकल्प को आगे बढ़ाया जा रहा है।