इंदौर: शहर का सराफा दिन भर सोने और चांदी की चमक को अपने आप में ओढ़े रहता है, शाम होते होते ही यह बाजार व्यापारियों से चटखारों का अड्डा बन जाता हैं। सराफा में वैसे तो कई स्वादिष्ट पकवानों के ठिए लगते हैं, लेकिन यहां लगने वाली नागौरी शिकंजी की दुकान काफी प्रचलित है।दुकान लगाने वाले विनय नागोरी बताते हैं, उनकी दादी दुर्गादेवी यह खास रेसिपी बनाया करती थी। दादी के हाथ की नागोर की यह शिकंजी सब को पसंद आती थी। इसका स्वाद शहर में बांटने के मकसद से दादाजी विजय राज और पिताजी विवेक प्रकाश ने इसे व्यावसायिक रूप देने का प्रयास किया। पहले हमारी सन्नी 1976 में मिठाई की पुश्तैनी दुकान हुआ करती थी। इसके बाद इस पेय के साथ बाजार में आए। वह कहते हैं कि नागौर में भी यह शिकंजी नहीं मिलती है। यह शिकंजी आम शिकंजी से काफी अलग होती है।
1980 में जब इस सिकंजी की शुरुआत हुई थी तब इसकी कीमत 2 से 3 रुपये प्रति गिलास थी। धीरे धीरे यह प्रचलित होती गई और इसके स्वाद का जादू लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। अब इसके ग्लास की कीमत 65 रुपये प्रति गिलास तक पहुंच गई है। इसे पीने वालों की कतार हमेशा लगी रहती है। कई लोग बाहर से आते हैं तो नागोरी शिकंजी पीने के लिए हमारे ठिए पर चले आते हैं। आने वाले इस शिकंजी का मज़ा उठाने के साथ साथ पैक करवाकर ले जाते हैं।
शहर में आज से लगभग 50 साल पहले इस शिकंजी ने दस्तक दी। तब से लेकर अब तक इसके स्वाद ने लोगों की खान पान की फेहरिस्त में अपनी जगह बना ली है। 80 के दशक में शहर में अपने स्वाद से भरपूर शिकंजी को दूध, दही, शकर, इलायची, किशमिश और केसर से बनाया जाता है। इसे एक खास विधि के साथ बनाया जाता हैं। जिससे दूध और दही साथ को एक साथ मिलाने पर भी यह स्वादिष्ट लगती है। वहीं दही से पानी को निकाल दिया जाता है, शिकंजी बनने में 24 घंटे लगते हैं। इसमें स्वाद के लिए दही व शकर की मात्रा समान रखी जाती है। किशमिश मिलाने का भी अपना ही तरीका है। यह दिखने में रबड़ी जैसी होती है।सर्दी और बारिश के मुकाबले इस शिकंजी की मांग गर्मी में सबसे ज्यादा होती है।