आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में अच्छी नींद का महत्व जितना बढ़ा है, उतनी ही जटिल हो गई हैं नींद से जुड़ी समस्याएं। इन्हीं में से एक नया और कम समझा गया विकार है ड्रीम रीकॉल डिसऑर्डर, जो धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बन रहा है। अगर आप रात में बार-बार डरावने या उलझे सपने देखते हैं, नींद बार-बार टूटती है और दिनभर मानसिक थकावट बनी रहती है, तो ये संकेत हो सकते हैं कि आपको इस डिसऑर्डर की समस्या है।
क्या है ड्रीम रीकॉल डिसऑर्डर?
ड्रीम रीकॉल डिसऑर्डर (Dream Recall Disorder) एक प्रकार की नींद संबंधी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सपने असामान्य रूप से स्पष्ट, लगातार और बार-बार याद आते हैं। यह केवल सामान्य सपने देखने तक सीमित नहीं है, बल्कि ये सपने मानसिक अशांति, नींद में रुकावट और थकावट का कारण बनते हैं। यह विकार नींद के REM फेज़ के दौरान ज्यादा एक्टिव होता है, जब मस्तिष्क सबसे अधिक सक्रिय होता है और सपने सबसे ज्यादा आते हैं।
कैसे पहचानें इस समस्या के लक्षण?
इस विकार के प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
- नींद के दौरान बार-बार जागना
- नींद पूरी न होना
- सपनों का अत्यधिक याद रहना
- बार-बार एक ही सपना देखना
- जागने के बाद भी सपने का दिमाग में बने रहना
- दिनभर मानसिक थकान और बेचैनी
कुछ मामलों में व्यक्ति को यह भ्रम भी हो सकता है कि सपना असल जीवन की कोई घटना थी, जिससे वह मानसिक रूप से और अधिक परेशान हो सकता है।
क्यों होता है ड्रीम रीकॉल ज्यादा?
विशेषज्ञ मानते हैं कि जब व्यक्ति की नींद में व्यवधान आता है, जैसे बार-बार जागना, स्ट्रेस, ट्रॉमा, या अवसाद तो REM sleep बढ़ जाती है और सपनों की आवृत्ति भी। इसके अलावा देर रात मोबाइल या लैपटॉप का अत्यधिक उपयोग, असंतुलित जीवनशैली, अनियमित सोने का समय, कैफीन या भारी भोजन का सेवन भी इसे बढ़ावा देते हैं। कुछ केसों में यह समस्या जेनेटिक भी हो सकती है।
क्या असर पड़ता है सेहत पर?
जब नींद में बार-बार बाधा आती है तो शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता। इससे व्यक्ति दिनभर सुस्ती, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, एकाग्रता में कमी, और इम्यून सिस्टम कमजोर होने जैसी समस्याओं से जूझ सकता है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो हाई ब्लड प्रेशर, हार्मोनल असंतुलन और गंभीर मानसिक विकार जैसे डिप्रेशन और एंग्जायटी भी उत्पन्न हो सकते हैं।
कैसे करें बचाव और इलाज?
- ड्रीम रीकॉल डिसऑर्डर से निपटने के लिए सबसे जरूरी है स्लीप हाइजीन यानी नींद से जुड़ी आदतों में सुधार।
- हर दिन एक ही समय पर सोना और उठना
- सोने से पहले मोबाइल या लैपटॉप का प्रयोग कम करना
- हल्का और जल्दी रात का भोजन करना
- ध्यान, प्राणायाम और रिलैक्सेशन तकनीकों को अपनाना
अगर इसके बाद भी समस्या बनी रहती है तो किसी नींद विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक या साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए। कई बार थेरेपी या दवाओं की भी आवश्यकता हो सकती है।