Balochistan: जुलाई 2009 में मिस्र के शर्म अल-शेख शहर में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी की मुलाकात हुई थी। यह बैठक गुटनिरपेक्ष देशों के शिखर सम्मेलन (NAM Summit) के मौके पर हुई थी। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में एक ऐसी बात कही गई, जिसे भारतीय कूटनीति की एक बड़ी चूक माना गया — और वह थी बलूचिस्तान का ज़िक्र।
Balochistan का ज़िक्र क्यों बना विवाद?
संयुक्त बयान में कहा गया, “प्रधानमंत्री गिलानी ने उल्लेख किया कि पाकिस्तान के पास बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में खतरों को लेकर कुछ जानकारियाँ हैं।”
यही वाक्य पाकिस्तान को एक ऐसा हथियार दे गया, जिसे उसने वर्षों तक भारत के खिलाफ प्रयोग किया। पाकिस्तान ने इस एक पंक्ति को ऐसे प्रस्तुत किया जैसे भारत ने बलूचिस्तान में हस्तक्षेप की बात कबूल कर ली हो — जबकि भारत हमेशा इस बात से इनकार करता रहा है कि उसका बलूचिस्तान की अशांति से कोई लेना-देना है।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक संसाधन संपन्न लेकिन उपेक्षित प्रांत है, जहां लंबे समय से अलगाववादी आंदोलन चल रहा है। पाकिस्तान इस आंदोलन के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराता रहा है, जबकि भारत ने सदैव इसे पाकिस्तानी आंतरिक मामला बताया है और किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से इनकार किया है।
जयशंकर ने क्यों उठाया Balochistan का मुद्दा?
2025 में राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शर्म अल-शेख की इस घटना को “यूपीए सरकार की कूटनीतिक भूल” करार दिया। उन्होंने कहा कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद, जिसमें 166 निर्दोष भारतीय मारे गए थे, भारत को सख्त कदम उठाने चाहिए थे। लेकिन इसके बजाय, तत्कालीन सरकार ने पाकिस्तान से आतंकवाद पर चर्चा करते हुए बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दे को संयुक्त बयान में शामिल कर लिया।
जयशंकर ने यह भी कहा कि “आज लोग कह रहे हैं कि अमेरिका या रूस भारत को पाकिस्तान के साथ जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन उस वक्त खुद भारत सरकार ने दोनों देशों को एक ही तरह की आतंकवाद की समस्या से ग्रस्त बताया था।”
विपक्ष की आलोचना और भाजपा की आपत्ति
शर्म अल-शेख के इस बयान पर उस समय भारतीय जनता पार्टी ने संसद में तीखी प्रतिक्रिया दी थी। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, यशवंत सिन्हा और अरुण जेटली जैसे नेताओं ने इसे भारत की पाकिस्तान नीति में एक खतरनाक मोड़ बताया। सुषमा स्वराज ने सवाल किया, “बलूचिस्तान को बयान में शामिल करके हमने कौन सा राष्ट्रीय हित साधा?”
एल. के. आडवाणी ने कहा था कि “पिछले 60 वर्षों में पहली बार भारत ने ऐसा बयान जारी किया है जो आगे जाकर भारत को ही परेशान करेगा।”
Balochistan: मनमोहन सिंह की सफाई
बाद में मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि “भारत बलूचिस्तान में कुछ नहीं कर रहा, और न ही करना चाहिए। भारत का आचरण एक खुली किताब की तरह है और हम किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने से नहीं डरते।”
लेकिन समस्या ये रही कि संयुक्त बयान में भारत की तरफ से बलूचिस्तान पर आरोपों को खारिज करने वाली कोई सीधी बात नहीं थी। इसी चुप्पी का लाभ पाकिस्तान ने उठाया और इसे भारत की ‘स्वीकृति’ की तरह प्रस्तुत किया।