Tejashwi Yadav का दावा, बिहार चुनाव सर्वेक्षण सूची से उनका नाम गायब, चुनाव आयोग ने किया पलटवार

Tejashwi Yadav: बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को एक बड़ा दावा करते हुए कहा कि बिहार में आगामी चुनावों के लिए प्रकाशित की गई संशोधित मतदाता सूची में उनका नाम शामिल नहीं है। इस दावे के बाद सियासी हलकों में हलचल मच गई, लेकिन चुनाव आयोग ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इस आरोप को “भ्रामक और तथ्यहीन” बताया।

तेजस्वी यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना इलेक्शन फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) नंबर साझा करते हुए चुनाव आयोग के आधिकारिक मोबाइल ऐप पर जानकारी खोजी, जहां “कोई रिकॉर्ड नहीं मिला” का संदेश दिखाई दिया। उन्होंने सवाल उठाया, “जब मेरा ही नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, तो मैं चुनाव कैसे लड़ूंगा?”

Tejashwi Yadav के इस दावे के तुरंत बाद, चुनाव आयोग ने उनकी वोटर लिस्ट की प्रति जारी कर दी, जिसमें स्पष्ट रूप से उनके नाम और पते का उल्लेख था। आयोग ने बताया कि यादव का नाम पटना के वेटरनरी कॉलेज क्षेत्र के एक बूथ पर क्रम संख्या 416 पर दर्ज है।

आयोग ने बयान में कहा, “यह हमारे ध्यान में आया है कि तेजस्वी यादव ने यह भ्रामक दावा किया है कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है। यह दावा पूरी तरह से झूठा और तथ्यविहीन है।”

चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) के तहत दावा और आपत्ति दर्ज कराने की प्रक्रिया 1 अगस्त से शुरू होकर 1 सितंबर तक चलेगी। इस दौरान कोई भी नागरिक या पार्टी नाम छूटने या गलत नाम शामिल होने पर आपत्ति दर्ज करा सकता है।

आयोग ने यह भी बताया कि तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 47,506 बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) को 1 अगस्त को संशोधित सूची दी गई थी, लेकिन पिछले 24 घंटों में किसी भी BLA ने कोई दावा या आपत्ति दर्ज नहीं की है।

चुनाव आयोग के अनुसार, Tejashwi Yadav को अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से सूची की ठीक से जांच करवानी चाहिए और यदि कोई गड़बड़ी मिलती है तो निर्धारित प्रक्रिया के तहत दावा दाखिल करना चाहिए।

हालांकि, इस बीच एक और पेच तब सामने आया जब चुनाव आयोग द्वारा जारी EPIC नंबर और तेजस्वी यादव द्वारा साझा किया गया EPIC नंबर मेल नहीं खा रहा था। इससे मामला और पेचीदा हो गया।

इस पूरे विवाद के बीच तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने सवाल उठाया कि 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना सूचना के हटाए गए, और यह जानबूझकर एक खास समुदाय और वोट बैंक को निशाना बनाने की साजिश है। उन्होंने पूछा, “क्या इन 65 लाख मतदाताओं को अपील करने का मौका दिया गया था? क्या उन्हें नोटिस मिला?”

राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। विपक्ष इसे लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास बता रहा है, जबकि चुनाव आयोग पारदर्शिता और निष्पक्षता की बात कह रहा है।

अब देखना यह होगा कि तेजस्वी यादव अपने दावे को लेकर क्या अगला कदम उठाते हैं और क्या यह मामला अदालत या चुनाव आयोग में औपचारिक रूप से चुनौती के रूप में जाता है।