भारत के शहरी परिदृश्य में यदि कोई एक शहर सतत नवाचार, सुशासन और जनसहभागिता का जीवंत प्रतीक बनकर उभरा है, तो वह है इंदौर — वह शहर जिसने स्वच्छता को आदत, नवाचार को संस्कार और विकास को साझा संकल्प में बदल दिया है।
पिछले तीन वर्षों में इंदौर नगर निगम ने यह दिखाया है कि स्थानीय शासन भी नीतिगत दूरदृष्टि और संकल्पशक्ति के साथ राष्ट्रीय परिवर्तन का वाहक बन सकता है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव के नेतृत्व में इंदौर की जो विकास यात्रा चली है, वह सिर्फ योजनाओं की श्रृंखला नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित बदलाव की कथा है।
नगर निगम द्वारा ग्रीन बॉन्ड के ज़रिए ₹244 करोड़ की पूंजी एकत्र कर सोलर प्लांट स्थापित करना, प्रशासनिक वित्तीय विवेक का अद्वितीय उदाहरण है। इससे न केवल हरित ऊर्जा को बढ़ावा मिला, बल्कि जल प्रदाय लागत में 50% तक की संभावित बचत ने आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव भी रखी।
इंदौर की यातायात व्यवस्था में लागू किया गया इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (ITMS), सिर्फ तकनीकी उन्नयन नहीं, बल्कि समय, सुरक्षा और नियंत्रण की त्रि-दिशात्मक सोच का परिणाम है। साथ ही, डिजिटल पोर्टल, पेपरलेस बजट, और डिजिटल पते जैसे नवाचारों ने प्रशासन को पारदर्शी और दक्ष बनाया है।
शासन का मानवीय पक्ष भी पीछे नहीं रहा — ‘इंटर्नशिप विद मेयर’ जैसी पहलें युवाओं को सीधे प्रशासन से जोड़कर नेतृत्व निर्माण की जमीनी प्रयोगशाला बन गई हैं। 1200 से अधिक छात्र इस व्यवस्था से लाभान्वित हुए हैं।
इंदौर क्लाइमेट मिशन के तहत दो लाख यूनिट बिजली बचत और ‘नो कार डे’ जैसे प्रयास यह साबित करते हैं कि यहां पर्यावरण सिर्फ भाषण का विषय नहीं, नीतिगत प्राथमिकता है। ‘ऑन डिमांड वेस्ट कलेक्शन’ जैसी सेवाएं नागरिक सुविधा के साथ नवाचार को भी आत्मसात करती हैं।
लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने के लिए ज़ोन अध्यक्षों के चुनाव, अपील समितियों की स्थापना जैसे निर्णय प्रशासन को लोगों के और निकट ले आए हैं। इससे सत्ता के विकेंद्रीकरण और जवाबदेही को व्यवहारिक धरातल पर साकार किया गया है।
*लेकिन इस पूरी यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पहलू है — असंभव कार्यों को संभव बनाने का साहसिक प्रयास*
दशकों से लंबित हुकुमचंद मिल के मजदूरों को भुगतान, अतिक्रमित भूमि की वापसी, अवैध कॉलोनियों को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ना — ये सब सिर्फ समस्याओं का समाधान नहीं थे, बल्कि यह विश्वास की पुनर्स्थापना थी कि प्रशासन अगर चाहे तो हर जटिलता का हल खोज सकता है।
राजस्व वसूली में ₹1000 करोड़ से अधिक की प्राप्ति, वन टाइम सेटलमेंट स्कीम, वर्षों से अटके ठेकेदार बिलों का भुगतान — ये सब वित्तीय पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की मजबूत नींव बन चुके हैं। SCADA सिस्टम और शहरी ऑटोमेशन ने इंदौर को भविष्य की स्मार्ट सिटी की ओर अग्रसर किया है।
यातायात की दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्नपूर्णा-फूटी कोठी लिंक रोड और तिलक नगर-रिंग रोड कनेक्टिविटी जैसी सड़क परियोजनाएं वर्षों पुराने अवरोधों का समाधान बनी हैं। वहीं ‘महापौर केसरी’ जैसे आयोजन स्थानीय खेल और सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने का सफल प्रयास हैं।
इन सभी पहलों के केंद्र में एक ही दर्शन है — सशक्त नेतृत्व, पारदर्शी शासन और सक्रिय जनभागीदारी। इंदौर अब केवल एक नगरपालिका नहीं, बल्कि विकास और नवाचार का मॉडल बन चुका है। यह यात्रा विजन 2047 की दिशा में पहला ठोस कदम है — और एक ऐसा मार्ग है जिसे देश के अन्य नगर निकाय भी अपना सकते हैं।
इंदौर ने यह साबित किया है कि जब नीति और नीयत मिलती हैं, तो “असंभव” केवल एक भ्रम होता है।
यदि शहरी भारत को आगे बढ़ना है, तो उसे इंदौर से प्रेरणा लेनी होगी — क्योंकि यहां हर योजना एक क्रियान्वयन है, हर नागरिक एक सहभागी है, और हर लक्ष्य एक वास्तविकता बन चुका है।