इंदौर में बढ़ता ट्रेफिक बड़ी समस्या बना चुका है। शहर में महात्मा गांधी मार्ग का महत्वपूर्ण कोठारी मार्केट से लेकर गांधी हाल शास्त्री ब्रिज तक तक के मार्ग के क्षेत्र में देश के चार प्रमुख स्तंभ न्याय पालिका, कार्य पालिका और पत्रकारिता के बुद्धिजीवी लोगों के केंद्र हैं।
यहां इंदौर कमिश्नर का कमिश्नर कार्यालय, जिला न्यायालय में डिस्ट्रिक जज,और बुद्धिजीवी वर्ग पत्रकारों का इंदौर प्रेस क्लब का मुख्यालय हैं। वहीं दूसरी ओर सेंट्रल कोतवाली और शहर का ट्रैफिक सुधारने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाले लोगों का दफ्तर हैं। शास्त्री ब्रिज उतरते ही इंदौर पुलिस का मुख्य केंद्र और प्रदेश की मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर की खंडपीठ भी है।
पूरे शहर का मुख्य केंद्र कोठारी मार्केट हैं, जहां शहर का सबसे ज्यादा बुद्धिजीवी वर्ग आता हैं।
एम जी रोड़ वन वे ट्रैफिक रोड हैं और पूरा शहर को नियंत्रित करने वाले लोग इस रोड़ से गुजरते हैं।
लेकिन इस मार्ग के कमिश्नर कार्यालय, जिला कोर्ट और इंदौर प्रेस क्लब के इस क्षेत्र में आकर नहीं लगता कि हम नंबर वन सिटी इंदौर में हैं।
ऐसा लगता हैं किसी तहसील में रह रहे हैं और जितना ट्रैफिक इंदौर के कानून के रखवालों के वाहन सड़क पर खड़े हैं, कोई सोच ही नहीं सकता। पूरे जिला कोर्ट के बाहर चार पहिया वाहन और दो पहिया वाहन सड़क पर पड़े हैं। जबकि सड़क पर पार्किंग की एक ही लाइन खींची हैं।
लेकिन कानून के रखवालों के साथ-साथ कोर्ट में फरियादी वादी भी कहीं भी वाहन खड़े करके चले जाते हैं।
इस क्षेत्र से इंदौर पुलिस कमिश्नर, इंदौर कमिश्नर, जिला कोर्ट के सभी जज, कुछ ही दूरी पर स्थित नगर निगम कमिश्नरऔर शहर के सभी प्रेस के पत्रकार और राजनेता भी रोज रोज ये जाम देखते हैं।
लेकिन सभी की आंखों पर पट्टी चढ़ी हुई हैं। पूरे शहर ट्रैफिक सुधार करने वाले भी नजदीक ही बैठे हैं। आज पूरे शहर का मुख्य केंद्र बिंदु का ट्रैफिक भी बिगड़ा हुआ है और शासन प्रशासन के नियंत्रण में नहीं हैं और ना कोई इस बिगड़ी व्यवस्था को लेकर चिंतित है। ये मुख्य मार्ग का हिस्सा प्रति दिन जाम ही रहता हैं और ट्रैफिक रेंगते हुए चलता हैं। तो सोचिए पूरे इंदौर का क्या हाल होगा?
और जब बुद्धिजीवी वर्ग ही सुधरने को तैयार नहीं हैं तो कौन क्या करके शहर को सुधार देगा।
सबसे ज्यादा दिक्कत ये भी हैं। सभी कानून के रखवाले ही वन वे ट्रैफिक रोड पर रांग साइड आते है
और कोई रोक टोक करे तो काले कोट का रूबाब बताते है। इनके आगे ट्रैफिक पुलिस भी असहाय हैं। शहर को सुधारने के लिए कितने भी हेलमेट पहनादो, पर शहर के लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। शायद शहर के रखवाले बुद्धिजीवी और चिंता करने वाले शायद कुछ आंखों की पट्टी खोल लें।