Janmashtami Special : गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण का एक अतिप्राचीन मंदिर है, जिसे वैष्णव संप्रदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। इस मंदिर को जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। हम बात कर रहे है द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर की। ये मंदिर सनातन धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि द्वारका नगरी को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था और ये स्थान उनकी लीलाओं से जुड़ा है। माना जाता है कि इस मंदिर का मूल निर्माण लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने कराया था। वर्तमान संरचना 15-16वीं शताब्दी में विस्तारित की गई थी। पौराणिक मान्यता है कि द्वारकाधीश मंदिर उसी स्थान पर है, जहां भगवान कृष्ण ने द्वारका नगरी बसाई थी।
ये मंदिर अपनी भव्यता और सुंदर नक्काशी के लिए विश्व विख्यात है। मंदिर का शिखर लगभग 78.3 मीटर ऊंचा है और इस पर एक विशाल ध्वज हमेशा लहराता है। मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है। इस ध्वज को दिन में पांच बार बदला जाता है, लेकिन प्रतीक चिन्ह समान ही रहता है।
द्वारकाधीश मंदिर में हर साल जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि द्वारका यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब भेंट द्वारका की भी यात्रा करते है। खास बात ये है कि जन्माष्टमी पर इस मंदिर में श्री कृष्ण जन्मोत्सव के बाद धनकाना लुटाने की अनोखी परंपरा निभाई जाती है। धनकाना लुटाने की ये पावन परंपरा कई सालों से तली आ रही है।
ये परंपरा हर साल केवल एक दिन जन्माष्टनी के पर्व पर ही मनाई जाती है। इस परंपरा में मंदिर की छत से दर्जनों व्यक्ति खड़े होकर मिठाईयों को कागज के छोटे-छोटे पैकेट्स में बंद करके लुटाते है और नीचे खड़े भक्त उस प्रसाद को लुटते है।