Shri Krishna Janmashtami 2025: मध्यप्रदेश सरकार इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को विशेष और भव्य तरीके से मना रही है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और लीलाओं से जुड़े ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों का दौरा करेंगे। उनका यह कार्यक्रम रायसेन जिले के महलपुर पाठा, धार जिले के अमझेरा और इंदौर के जानापाव तक फैला होगा। यहां वे प्राचीन कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना करेंगे और प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि एवं शांति की प्रार्थना करेंगे। साथ ही सीएम उज्जैन के प्रसिद्ध गोपाल मंदिर में आयोजित जन्मोत्सव कार्यक्रम में भी सम्मिलित होंगे। इसके अलावा वे महलपुर पाठा में आयोजित “हलधर महोत्सव एवं लीला पुरुषोत्तम प्रकटोत्सव” में भाग लेंगे।
यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “विरासत से विकास” संकल्पना से प्रेरित बताई जा रही है। मुख्यमंत्री अपने दौरे के दौरान उज्जैन स्थित सांदीपनि आश्रम, गोपाल मंदिर और महिदपुर के पास नारायणा धाम भी जाएंगे। ये स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों के साक्षी रहे हैं। प्रदेश सरकार ने इन स्थलों को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विकसित करने के लिए “श्रीकृष्ण पाथेय न्यास” की स्थापना की है। मुख्यमंत्री की यह पहल राज्य की संस्कृति और आस्था को नई पीढ़ी से जोड़ने का प्रयास है। यह यात्रा “श्रीकृष्ण पाथेय अभियान” का हिस्सा है, जिसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को ऐतिहासिक धरोहर और परंपराओं से जोड़ना है।
सीएम मोहन यादव युवाओं को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराने पर विशेष जोर दे रहे हैं। उनका मानना है कि नई पीढ़ी को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े ऐतिहासिक स्थानों की जानकारी और अनुभव होना जरूरी है। धार जिले के अमझेरा गांव में रुक्मणी हरण और युद्ध से जुड़े प्रसंग मिलते हैं, वहीं उज्जैन का गोपाल मंदिर अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का द्वार सोमनाथ से लाकर कंधार पहुंचाया गया था, जिसे बाद में सिंधिया शासनकाल में पुनः वापस लाया गया। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि विद्यार्थियों को इन स्थानों के शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाकर उन्हें अतीत से जुड़ने और उससे प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
रायसेन जिले का महलपुर पाठा मंदिर भी मुख्यमंत्री के दौरे का हिस्सा रहेगा। यह प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर 13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और खासियत यह है कि यहां राधा, कृष्ण और रुक्मणी की प्रतिमा एक ही श्वेत पत्थर पर उकेरी गई है। इस मंदिर के पास परमार काल का किला, 51 बावड़ियां और कई प्राचीन मूर्तियां मौजूद हैं। मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर विशाल मेला और विष्णु यज्ञ आयोजित किया जाता है। यहां मिले शिलालेख से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण संवत 1354 यानी 1297 ईस्वी में हुआ था। मंदिर के आसपास शिवलिंग, नंदी, गणेश, नाग देवता और नटराज की मूर्तियां भी पाई जाती हैं, जो इसे और अधिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करती हैं।