MP में बाघों के साम्राज्य में राम बन जाते है कन्हैया, साल में जन्माष्टमी के दिन ही होते है दर्शन

भगवान राम और कृष्ण एक है यह हमने कई बार भजनों में सुना है, कहा जाता है कि जगत में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम, तो हमारे मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों के साम्राज्य के रूप में जाने जाने वाले जंगल के बीच बने किले में भगवान राम को ही श्रीकृष्ण स्वरूप माना जाता है इसके साथ ही माता सीता को राधा रानी मान कर पूजा-अर्चना की जाती है। यह अनुठा परंपरा रीवा राजघराने के दवारा वर्षों से चली आ रही है। बताया जाता है कि यह मंदिर साल में एक बार जन्माष्टमी के दिन ही खोला जाता है जहां भक्त 15 किलोमीटर  पैदल चल कर जंगल के बीच भगवान राम के दर्शन करने पहुंचते है।

बाघों के साम्राज्य के बीच विराजते है भगवान श्री राम
उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को बाघों के साम्राज्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। इस दिन जंगल के बीच बने प्राचीन किले में स्थित श्रीराम-जानकी मंदिर साल में सिर्फ जन्माष्टमी के दिन ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला जाता है। इस दिन यहां भगवान श्रीराम को कान्हा के रूप में और माता सीता को राधारानी के रूप में पूजा जाता है।

रीवा राजघराने की है परंपरा
बांधवगढ़ किले के भीतर स्थित इस मंदिर की परंपरा सदियों पुरानी है। रीवा राजघराने के सदस्य आज भी जन्माष्टमी पर यहां पहुंचते हैं। इस बार भी सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह समेत राजपरिवार के सदस्य पूजन-अर्चन में शामिल हुए।

रीवा रियासत ने रखी थी शर्त
कभी रीवा रियासत की राजधानी रहा बांधवगढ़, बाद में 1970 के दशक में टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। उस समय महाराजा मार्तंड सिंह ने जंगल सरकार को सौंपते समय शर्त रखी थी कि जन्माष्टमी पर लगने वाला मेला और मंदिर में पूजा की परंपरा समाप्त नहीं होगी। यही कारण है कि हर साल इस दिन वन्यजीव संरक्षण कानून (Wildlife Act) को शिथिल कर श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने की अनुमति दी जाती है।

15 किलोमीटर पैदल चलकर जाते है भक्त
जन्माष्टमी पर बांधवगढ़ में सुबह से ही श्रद्धालुओं का जत्था मंदिर की ओर निकल पड़ता है। ताला गांव से करीब 15 किलोमीटर पैदल की कठिन चढ़ाई पार कर भक्तों ने भगवान श्रीराम और माता जानकी के दर्शन करते है। मान्यता है कि एक झलक पाते ही भक्तों की सारी थकान मिट जाती है और वे ऊर्जा के साथ वापसी करते हैं।

भगवान राम ने दिया था लक्ष्मण को उपहार
पौराणिक मान्यता में बांधवगढ़ किले का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यहां वनवास से लौटने के बाद भगवान श्रीराम ने यह किला अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उपहार स्वरूप दिया था। इसी वजह से इसका नाम पड़ा “बांधवगढ़ यानी भाई का किला”  नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस मंदिर का जिक्र स्कंध पुराण और शिव संहिता में भी मिलता है। पहले यह जगह रीवा राजघराने की राजधानी थी और तभी से जन्माष्टमी का पर्व यहां धूमधाम से मनाया जाता रहा है।