आज 19 अगस्त 2025 को भोपाल में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने प्रेस वार्ता कर चुनावी प्रक्रिया में बढ़ती अनियमितताओं और मतदाता सूचियों से जुड़ी गड़बड़ियों पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि पिछले चुनावों में कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता संख्या में अचानक वृद्धि हुई, जिससे विपक्षी दलों के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा और सत्तारूढ़ दल को अप्राकृतिक लाभ मिला।
मतदाता वृद्धि पर आँकड़ों से सवाल
प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किए गए डेटा के अनुसार, 5 जनवरी से 2 अगस्त 2023 तक लगभग 4.64 लाख मतदाता सूची में जुड़े, लेकिन इसके बाद के मात्र दो महीनों (2 अगस्त से 4 अक्टूबर) में 16.05 लाख नए मतदाता जोड़ दिए गए। यानी औसतन हर दिन करीब 26,000 मतदाता सूची में शामिल हो रहे थे। उमंग सिंघार ने कहा कि यह प्रवृत्ति बेहद असामान्य है और इसके पीछे गहरी साजिश की आशंका है।
चुनाव आयोग के आदेशों पर उठे सवाल
उन्होंने आगे बताया कि 9 जून 2023 को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम) के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को आदेश दिया था कि 1 जनवरी से 30 जून 2023 के बीच मतदाता सूची में किए गए जोड़-घटाव को न तो सार्वजनिक किया जाए और न ही किसी को साझा किया जाए। प्रेस वार्ता में यह भी कहा गया कि बाद में इस आदेश का दायरा बढ़ाकर इसे पूरे देश पर लागू कर दिया गया।
डुप्लीकेट प्रविष्टियों की अनदेखी
मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने 2 दिसंबर 2022 को जिलों को लगभग 8.5 लाख नकली या डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ हटाने का निर्देश दिया था। लेकिन किसी भी जिले ने इस काम की सार्वजनिक रिपोर्ट जारी नहीं की। आरटीआई के जरिए भी इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। साथ ही, जिस गरुड़ा ऐप से डेटा तैयार किया गया, उसका स्रोत डेटा भी गुप्त रखा गया। सिंघार ने इसे पारदर्शिता के खिलाफ बताया।
नियम 32 और रिकॉर्ड संरक्षण का उल्लंघन
प्रेस वार्ता में यह मुद्दा भी उठाया गया कि Electors Rules, 1960 के नियम 32 के तहत हर ERO को मतदाता सूची और उससे जुड़े दस्तावेज कम से कम तीन साल तक सुरक्षित रखने अनिवार्य है। लेकिन कई जगहों पर रिकॉर्ड छुपाए या नष्ट कर दिए गए, जो सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है।
27 सीटों पर मतदाता वृद्धि बनाम हार का अंतर
उमंग सिंघार ने डेटा-आधारित प्रस्तुति में 27 विधानसभा क्षेत्रों की तालिका पेश की। इसमें दिखाया गया कि कांग्रेस के प्रत्याशी बहुत मामूली अंतर से हारे, लेकिन उन्हीं क्षेत्रों में मतदाताओं की वृद्धि का आंकड़ा उस हार के अंतर से कहीं अधिक था। उन्होंने आरोप लगाया कि यह मतदाता वृद्धि सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई।
फ़ोटो और पारदर्शिता पर दोहरा मापदंड
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि चुनाव आयोग ऑनलाइन मतदाता सूची में फोटो शामिल करने से “गोपनीयता” और “फ़ाइल साइज” का बहाना बनाता है। लेकिन सरकार अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में बड़े-बड़े विज्ञापनों और पोर्टलों पर लाभार्थियों के फोटो और वीडियो सार्वजनिक करती है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब वहाँ गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होता तो पारदर्शिता के लिए मतदाता सूची में फोटो क्यों नहीं जोड़े जाते?
CEO वेबसाइट का संदिग्ध व्यवहार
प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा गया कि जैसे ही मतदाता सूची की गड़बड़ियों पर सवाल उठते हैं, मध्यप्रदेश के CEO की वेबसाइट या तो बंद कर दी जाती है या “Under Maintenance” दिखा दी जाती है। यह तकनीकी खराबी है या जानबूझकर पारदर्शिता से बचने का तरीका — इस पर भी सवाल खड़े किए गए।
चुनाव आयोग की भूमिका पर सीधा निशाना
उन्होंने आरोप लगाया कि 17 अगस्त को दिल्ली में हुई ECI की प्रेस कॉन्फ्रेंस निष्पक्षता दिखाने के बजाय भाजपा के पक्ष में ज्यादा नजर आई। आयोग ने CCTV फुटेज सार्वजनिक करने से यह कहते हुए इनकार किया कि इससे मतदाताओं की प्राइवेसी प्रभावित होगी। जबकि सवाल यह उठाया गया कि यदि CCTV लगाए ही गए हैं तो उन्हें स्वतंत्र जाँच के लिए सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा? इसके अलावा “हाउस नंबर 0” जैसी प्रविष्टियों को भी संदेहास्पद बताया गया और कहा कि इन्हीं बहानों से फर्जी वोटरों को जोड़ा गया होगा।
विपक्ष की मुख्य माँगें
अंत में उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग से कुछ ठोस कदम उठाने की माँग की:
1. फाइनल रोल को फ्रीज़ किया जाए और उस पर सभी राजनीतिक दलों के हस्ताक्षर लिए जाएँ।
2. मतदाता सूची को केवल PDF इमेज के बजाय CSV/Excel फॉर्मैट में सार्वजनिक किया जाए, ताकि स्वतंत्र जांच संभव हो।
3. प्रत्येक प्रविष्टि के साथ फोटो प्रकाशित किया जाए ताकि मृतक, डुप्लीकेट या फर्जी वोटरों की पहचान हो सके।
4. संशोधन-लॉग सार्वजनिक किया जाए, जिसमें Form 9, 10, 11 और सभी PSE/DSE की सूची समयबद्ध रूप से उपलब्ध हो।