मासूम बच्चों को किन्नर बाड़े में छोड़ देता हैं सभ्य समाज, महामंडलेश्वर ने दिखा दिया सभ्य समाज को आईना

नंदलालपुरा स्थित किन्नर समुदाय में धार्मिक आयोजन हुआ। इस अवसर पर संत भोज और सम्मान से पहले भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें किन्नर अखाड़ा, नई दिल्ली की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी सहित कई संत उपस्थित रहे।आयोजन के दौरान डॉ. त्रिपाठी ने समाज को आईना दिखाते हुए कहा कि ‘जो किन्नर आज घर-घर जाकर बधाई मांगते हैं, वे दरअसल उसी सभ्य समाज की देन हैं, जो अपने मासूम बच्चों को किन्नर बाड़े में छोड़ तो देता है लेकिन उनकी आजीविका के लिए पर्याप्त सहयोग नहीं करता।’

बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता?
सभ्य समाज जब किन्नरों के द्वारा मांगी जाने वाली राशी का विरोध करता क्यों करता है?  इसको लेकर त्योहारों और खास अवसरों पर किन्नरों द्वारा मांगी जाने वाली राशि का समर्थन करते हुए कहा कि जब समाज खुद बच्चों को किन्नर बाड़े में छोड़ता है तो उनके भविष्य और आजीविका की जिम्मेदारी भी समाज को ही समझनी चाहिए। सोचिए, जब वे बड़े होते हैं तो उनके मन में समाज के प्रति क्या भावनाएं रहती होंगी। अगर लोग अपने बच्चों को किन्नर बाड़े में छोड़ना बंद कर देंगे तो नए किन्नर बनना ही बंद हो जाएंगे, उन्होंने कहा।

समाज को क्यो करता है प्रताड़ित?
डॉ. त्रिपाठी ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी किन्नर एक जैसे नहीं होते। पढ़े-लिखे और योग्य होने के बावजूद समाज उन्हें बराबरी का हक, नौकरी या सम्मानजनक अवसर नहीं देता। उन्होंने ने कहा ‘मैं खुद भी गोरखपुर के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थी, पढ़ाई-लिखाई की, योग्य भी थी। लेकिन किन्नर होने की वजह से मुझे समाज में प्रताड़ना झेलनी पड़ी और किसी ने मुझे आजीविका का साधन नहीं दिया’। उन्होंने कहा कि समाज को यह समझना चाहिए कि ‘घोड़ा अगर घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?’ यानी अगर किन्नरों को बधाई से पर्याप्त आय नहीं होगी तो वे जियेंगे कैसे।