इंदौर की चोइथराम आलू-प्याज मंडी एशिया की सबसे बड़ी मंडियों में गिनी जाती है, लेकिन यहां का हाल देखने लायक है। करोड़ों रुपये टैक्स वसूलने के बावजूद मंडी की व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है।
बारिश में किसानों की मेहनत बह जाती है
बरसात की थोड़ी-सी बौछार भी किसानों की साल भर की मेहनत पर पानी फेर देती है। पूरी उपज कीचड़ और पानी में डूब जाती है। किसानों को खुले आसमान के नीचे खड़े होकर अपनी मेहनत बर्बाद होते देखना पड़ता है।
सिर्फ कागजों पर व्यवस्था
मंडी प्रशासन व्यवस्था के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति करता है। न पानी की निकासी की कोई योजना है, न ही उपज को सुरक्षित रखने के लिए पुख्ता इंतजाम। हकीकत और कागजों में जमीन-आसमान का फर्क नजर आता है।
यही सब्ज़ियां पहुंचती हैं आपके किचन तक
यह आलू-प्याज जो अंत में आपके रसोईघर तक पहुंचता है, उससे पहले मंडी में बारिश और गंदगी का सामना करता है। ऐसे में यह स्थिति न सिर्फ किसानों को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि आम जनता को भी प्रभावित कर रही है।
प्रशासन की गहरी नींद
मंडी का हाल साफ बताता है कि केवल दिखावे से किसानों की समस्याएं हल नहीं होंगी। असली ज़रूरत पुख्ता व्यवस्था और ईमानदारी से काम करने की है। लेकिन अफसोस, प्रशासन इस मुद्दे पर गहरी नींद में सोया हुआ प्रतीत होता है।